गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति

 

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1 गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति में चन्द्रमा, कुबेर व ब्रहस्पति का महत्व – वैदिक ज्योतिष में श्री राम जन्म कुंडली, श्री तिरुपति बालाजी व वास्तु के द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति के लिये सरल प्राचीन उपाय को जानने हेतु हम गजकेसरी योग की गहरी समझ के लिये ज्योतिष, वास्तु और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्देवी-देवताओं और ग्रहों के बीच के रहस्यों को समझने की कोशिश करते हैं। गजकेसरी योग में एक रहस्य यह भी है की यह योग जितना उत्तम और विशेष है उतना ही इस योग में उत्पन्न होने वाले दोष भी पायें गयें हैं। विशेषतः सभी ग्रह हमारे जीवन में सुनियोजित ढंग से अपना कार्य करते हैं। परन्तु यह हमें दर्शाते हैं की हम अपने ऋणों से कैसे मुक्त हों और अपने कार्यो में कैसे प्रगति करें –
2 तो आइयें समझतें हैं divinepanchtatva.com से इस योग से भरपूर लाभ प्राप्त करने के उपाय व दोषों को दूर करने के तरीके —-
2.1 गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति के कुछ सरल उपाय – ज्योतिष और वास्तु में चन्द्रमा व कुबेर का स्थान उत्तर दिशा को माना जाता है। एक जातक की जन्मपत्रिका के अनुसार चतुर्थ भाव(उत्तरदिशा) का नैसर्गिक अधिपति स्वामी चंद्रमा है जो न केवल हमारी माता अथवा हमारे घर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि चंद्रमा हमारी पृथ्वी का भी प्रतिनिधि है, हमारे जीवन की सभी इच्छाएं चंद्रमा से उत्पन्न होती हैं और इसीलिए ज्योतिष व वास्तु के अनुसार इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं जो धन के स्वामी धनपति, धनद, अलकापति आदि नामों से पुकारें जातें है। हमारी जन्म पत्रि में चौथा घर(भाव) व वास्तु शास्त्र के अनुसार इनका स्थान उत्तर दिशा में माना गया है। जिसका आधिपत्य कुबेर करतें है।
2.2 गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति – मनुष्यों पर “कुबेर का ऋण” – पृथ्वी पर रहने के लिए प्रत्येक मानव पर कर के रूप में कुबेर का ऋण है। अगर-आप या आपके घर पर कुबेर का कर्ज है तो आप अपने घर का कैदी बन जातें है। यहाँ तक की आप अपनी पत्नी व परिवार के भी कैदी बन जाते हैं। यहाँ पर कैदी होने का अर्थ किसी के बकाया ऋण चुकाने से है आइये इसे एक पौराणिक कथा से समझते —
2.2.1 कथा के अनुसार माता लक्ष्मी ने छोड़ दिया ” वैकुण्ठ ” – भृगु ऋषि के भगवान विष्णु के छाती पर लात मारने पर लक्ष्मी जी नाराज हो गई। माता चाहती थी की भगवान भृगु ऋषि को दण्ड दें भगवान नें ऐसा करने से साफ़ इनकार कर दिया। इस वजह से माता रुष्ट हो कर वैकुण्ठ छोड़कर चली गयी।

गजकेसरी योग

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति – गजकेसरी योग जातक के जन्म के समय में ग्रहों के अनुसार जातक की जन्म पत्रिका में बनता है जब गुरु और चंद्रमा एक साथ लग्न या केंद्र में किसी शुभ राशि में साथ होते हैं 

  • अथवा केंद्र से त्रिकोण में होने पर एक दूसरे को देखते हों। या और बहुत से कारण है जैसे – 
  • लग्न रूप में चंद्रमा-बृहस्पति की युति होने पर देखा जाता है, या 
  • फिर गुरु जिस स्थान या राशि में हों उस स्थान या राशि से चौथे, सातवें, या दसवें घर में अगर चन्द्रमा विराजमान हों तो
  • यदि बृहस्पति चंद्रमा कर्क राशि में हो और कोई पाप ग्रह इन्हें ना देख रहा हो तो ऐसे में प्रबल गज केसरी योग का निर्माण होता है।
  • ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि गुरु को कर्क राशि में उच्च का माना गया है, ओर चंद्रमा को कर्क राशि का स्वामी होने के कारण स्वराशि माना है।
  • जब किसी जातक की में नौवें व दसवें घर में शुभ ग्रह बैठें हो तो, 

गजकेसरी योग का निर्माण होता है। इसे एक फलदाई योग के रूप में माना जाता है। वैसे किसी भी जन्मपत्रिका में इन दोनों ग्रहों की स्थितियों का शुभ होना आवश्यक है, परंतु इसमें भाव, राशि, नक्षत्र का भी अपना महत्व है, बृहस्पति को ज्ञान, दान पुण्य, धार्मिक कार्य, पिता, अपने पूर्वजों और संतान का कारक माना जाता है। ओर वहीं चंद्रमा को मन, मानसिक स्थिति, माता, परिवार, परिवार की स्थिति, घर, सुख शांति, मनोबल, विचार, द्रव्य, वस्तुएँ, धन संपति आदि का कारक माना जाता है। इसके प्रभाव की चर्चा बहुत से मनीषियों ने की है – 

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति में चन्द्रमा, कुबेर व ब्रहस्पति का महत्व वैदिक ज्योतिष में श्री राम जन्म कुंडली, श्री तिरुपति बालाजी व वास्तु के द्वारा शुभ फलों की प्राप्ति के लिये सरल प्राचीन उपाय को जानने हेतु हम गजकेसरी योग की गहरी समझ के लिये ज्योतिष, वास्तु और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्देवी-देवताओं और ग्रहों के बीच के रहस्यों को समझने की कोशिश करते हैं। गजकेसरी योग में एक रहस्य यह भी है की यह योग जितना उत्तम और विशेष है उतना ही इस योग में उत्पन्न होने वाले दोष भी पायें गयें हैं। विशेषतः सभी ग्रह हमारे जीवन में  सुनियोजित ढंग से अपना कार्य करते हैं। परन्तु यह हमें दर्शाते हैं की हम अपने ऋणों से कैसे मुक्त हों और अपने कार्यो में कैसे प्रगति करें –

तो आइयें समझतें हैं divinepanchtatva.com   से इस योग से भरपूर लाभ प्राप्त करने के उपाय व दोषों को दूर करने के तरीके —- 

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति में रत्नों का महत्व – गजकेसरी दो शुभ गुरु-चन्द्र ग्रहों की युति से बनता है। ज्योतिषियों के अनुसार जन्म पत्रिका दिखाने के उपरांत आप ब्रहस्पति पीला पुखराज अपनी तर्जनी ऊँगली में व सफ़ेद मोती चन्द्रमा के लिए कनिष्ठा ऊँगली में पहन सकते हैं। व ॐ नाम: शिवाय: से शिव लिंग पर जल अभिषेक करें। 

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति के कुछ सरल उपाय – ज्योतिष और वास्तु में चन्द्रमा व कुबेर का स्थान उत्तर दिशा को माना जाता है। एक जातक की जन्मपत्रिका के अनुसार चतुर्थ भाव(उत्तरदिशा) का नैसर्गिक अधिपति स्वामी चंद्रमा है जो न केवल हमारी माता अथवा हमारे घर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि चंद्रमा हमारी पृथ्वी का भी प्रतिनिधि है, हमारे जीवन की सभी इच्छाएं चंद्रमा से उत्पन्न होती हैं और इसीलिए ज्योतिष व वास्तु के अनुसार इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं जो धन के स्वामी धनपति, धनद, अलकापति आदि नामों से पुकारें जातें है। हमारी जन्म पत्रि में चौथा घर(भाव) व वास्तु शास्त्र के अनुसार इनका स्थान उत्तर दिशा में माना गया है। जिसका आधिपत्य कुबेर करतें है।

कुबेर कौन हैं?

कुबेर धन के स्वामी हैं। वें यक्षों के राजा हैं। और उन्हें लोकपाल(संसार के रक्षक) भी माना गया है, भगवान शिव के द्वारा वरदान प्राप्त पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई थे, परन्तु माना जाता है की पूर्व जन्म में कुबेर का नाम गुणनिधि था, परंतु उसमे एक अवगुण था की वह एक चोर था,  एक चोर जो धन चुराने के बाद भाग रहा था और भागते हुवे त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष काल के दौरान जब वह शिवलिंग पर अपना सिर टकराने से मर गया – और भगवान शिव के आशीर्वाद से धन का स्वामी बन गया- कुबेर शिव के कारण धन कुबेर बन गये, शिव वह है जिन्होंने कुबेर के पिता को दक्षिणा में लंका दान में दे दी जो की बाद में कुबेर से रावण को मिली।

                कुबेर यक्षों के राजा हैं। जो की अलकापुरी में रहते हैं। यह एक जगमगाती नगरी है। कुबेर को धन-कुबेर, खजांची, व धन-भंडार के स्वामी के रूप देखा जाता है। क्योंकि ज्योतिष में कई योग और जीवन की गुणवत्ता धन के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इसका एक बहुत मजबूत कारण यह भी है, कि मानव युग की शुरुआत से ही मानव जीवन में धन एक महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए मानव युग के प्रारम्भ से आज के युग में भी धन-संपदा मानव जीवन यापन का प्रमुख श्रोत है।

        वास्तु के अनुसार उत्तर(दिशा) में कुबेर का शासन होता है और कुबेर का वाहन वराह(शुकर) है, व कुबेर के पास एक नेवला(नकुल) है जो मुंह खोलता है तो जवाहरात उगलता है, ऐसा माना गया है। परन्तु यहाँ कुबेर का वाहन मनुष्य को माना है, जिसका अर्थ है मनुष्य, यह मनुष्य की ही इच्छा है जो इस धरती पर धन के द्वारा सब कुछ चलाती है, मनुष्य की अनंत इच्छाएं होती हैं और इन इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, लेकिन इन इच्छाओं की गुणवत्ता को नियंत्रित किया जा सकता है चन्द्रमा को प्रभावित करने वाले ग्रह से यदि गुरु-चन्द्र ग्रह की उत्तम युति हो तो जातक की इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं। और जातक की चेतना एक अलग स्तर पर उभरने लगती है। और दूसरी ओर —   

चन्द्र ग्रह के स्वामी शिव-उमा हैं। जो शिव से शिव की ही शक्ति हैं। जो शिव से प्रश्न पूछती हैं क्योंकि शिव सब कुछ जानते हैं। लेकिन यह केवल उमा के प्रश्न हैं जिसके कारण भगवान शिव का सारा साहित्य सामने आया है। और जब ये दोनों ग्रह चंद्र-ब्रहस्पति एक दूसरे का समर्थन करते हैं जन्म पत्रिका, में यह संयोजन चमत्कार करता है क्योंकि यह संयोजन जातक को जीवन में बड़ा काम करने के लिए प्रेरित करता है और अमर प्रसिद्धि देता है।

       उत्तर दिशा में चंद्रमा का शासन है और यह रात के 1-3 बजे घोर अंधकार की समयावधि है जब आप गहरी नींद में होते हैं, जो इस बात का भी प्रतिनिधित्व करता है कि इस जीवन में जब आपको पता नहीं है कि आप क्यों पैदा हुए हैं? तुम्हारा उद्देश्य क्या है? जैसे अधिकांश लोग बिना प्रश्न किए जीवन को जारी रखने में समय बर्बाद कर देते हैं क्योंकि वे माया और अपने कंधों पर कुबेर के भार से इतने अधिक प्रभावित होते हैं कि वे अपने जीवन के उद्देश्य को नहीं पहचान पाते हैं। और अपने जीवन के उद्देश्य पाने के बाद जो आनन्द प्राप्त हो सकता था उसे भोग नहीं पाते हैं।

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति – मनुष्यों पर “कुबेर का ऋण” – पृथ्वी पर रहने के लिए प्रत्येक मानव पर कर के रूप में कुबेर का ऋण है। अगर-आप या आपके घर पर कुबेर का कर्ज है तो आप अपने घर का कैदी बन जातें है। यहाँ तक की आप अपनी पत्नी व परिवार के भी कैदी बन जाते हैं। यहाँ पर कैदी होने का अर्थ किसी के बकाया ऋण चुकाने से है आइये इसे एक पौराणिक कथा से समझते —  

        भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर की बहुत मान्यता है। तिरुपति बालाजी भगवान वेंकटेश्वर को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। और इन्हें गोविंदा और श्रीनिवासन नाम से भी जाना जाता है। 

 

कथा के अनुसार माता लक्ष्मी ने छोड़ दिया ” वैकुण्ठ ” भृगु ऋषि के भगवान विष्णु के छाती पर लात मारने पर लक्ष्मी जी नाराज हो गई। माता चाहती थी की भगवान भृगु ऋषि को दण्ड दें भगवान नें ऐसा करने से साफ़ इनकार कर दिया। इस वजह से माता रुष्ट हो कर वैकुण्ठ छोड़कर चली गयी।

 

भगवान विष्णु ने वैकुण्ठ छोड़कर माता लक्ष्मी को ढूंडना आरम्भ कर दिया लेकिन माता लक्ष्मी कहीं न मिलने पर विष्णु जी एक वेंकटाद्रि नामक पहाड़ी पर रहने लगे। बाद में अन्य मान्यताओं के अनुसार विष्णु जी को वहाँ के राजा अक्सा की पुत्री पद्मावती से विवाह करना पड़ा और पुत्री से विवाह करने के लिए कुबेर से ऋण लेना पड़ा और बालाजी तिरुपति में श्रीनिवासं वेंकटेश्वर के रूप में कुबेर का ऋण चुकाने की प्रथा के रूप में देखा गया। इसलिये आज भी तिरुपति बालाजी में जाकर लोग अपने व्यपार में बालाजी को हिस्सेदार बनाकर उन्हें अपने लाभ का कुछ प्रतिशत दान करते हैं जो की सरकार के खजाने में जमा होता है। अर्थात कुबेर के पास जमा होता है जो की खजाने के अधिपति है। और इस प्रकार तिरुपति बालाजी का ऋण भी चुकाया जाता है।   

      जब हम निधिपति का ऋण चुकाने के लिए बालाजी मंदिर जाते हैं, तो हमारे जीवन पर लगा ऋण समाप्त होता है जिससे हमारे जीवन में सुधार होता है,यह केवल बालाजी का मंदिर है जहाँ आप कुबेर के दर्शन और प्रार्थना करते हैं तो आपको ऋण से मुक्ति मिलती है, वैवाहिक जीवन अच्छा हो जाता है, क्योंकि बृहस्पति का स्वामित्व घर के उत्तरपूर्व दिशा में है जबकि – 

जन्मपत्रिका के अनुसार शुक्र ग्रह 7वें भाव(घर) का स्वामी है। शुक्र ग्रह घर के दक्षिण-पूर्व के स्वामी हैं जो की इसके ठीक विपरीत दिशा में होता है। भारत के मान चित्र पर देखने से पता चलता है। की तिरुपति बालाजी मंदिर भी दक्षिण-पूर्व में ही विराजमान है। इस दिशा में दोष उत्पन्न होने से वैवाहिक जीवन में समस्या आती है। यह एक वास्तु का विषय है।

वास्तु-शास्त्र के बारे में अधिक जानकारी के लिये वास्तु-शास्त्र व ज्योतिष के अनुसार ग्रह निर्माण

ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति ग्रह को (उत्तर पूर्व)दिशा के दिक्पाल कहा गया है। और इस दिशा में स्वयं शिव का आधिपत्य है। जो एक अतिचेतन अवस्था में हैं। जो जानते है, कि किस समय क्या घटना होने जा रही है। क्योंकि भगवान शिव समय के बंधनों से मुक्त है। भगवान शिव समय की सीमाओं से परे हैं। वह अतीत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं। और इसलिए वह एक स्थान पर बैठकर गहरे ध्यान में लीन रहते हुए भी मुस्कुरातें रहतें है। 

 ज्योतिष व वास्तु के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा  – की समय अवधि में सुबह 4 से 5 बजे के बीच का समय निर्धारित है जिसे ब्रम्ह-मुहूर्त भी कहा जाता है- यह दिन का जादुई समय है। जब आप अपने चेतन स्तर को ऊपर उठाने और ध्यान करने का अभ्यास कर सकते हैं। इस समय किया हुआ यह ध्यान, आपको वापस जीवन में आगे ले जाने को प्रेरित करेगा। बस आप इस समय का सद उपयोग् करते हुवें  ध्यान के लिए बैठें, परिणाम आपको चौंका देंगे क्योंकि यह एकमात्र समय अवधि है जब आप हर दिन अंतरिक्ष-समय सीमा की निरंतरता को तोड़ सकते हैं और अपनी चेतना की मदद से एक दुसरे ही आयाम में यात्रा कर सकते हैं। 

इसी तरह, यदि आप अपने जीवन में कभी बृहस्पति की समस्याओं को देखते हैं, तो उन्हें दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है की आप अपने बुजुर्गो, पुरोहितों से आशीर्वाद लें, भगवान शिव, विष्णु जी व  देवी-देवताओं के मंदिर में दर्शन लगातार करने जायें और उसके अनुसार प्रार्थना करें।

स्वर शास्त्र के अनुसार – अगर आपकी सूर्य-नाडी में दोष है, तो आपके घर के दक्षिण-पूर्व में दोष उत्पन्न होगा। अर्थात अग्नि कोण यानि दक्षिण-पूर्व में अग्नि विकार उत्पन्न होने लगता है। जिसके परिणाम स्वरूप घर की महिलओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव होने लगता है यह बुरा प्रभाव उत्तर दिशा के दोष से शुरु होता है। जब उत्तर दिशा में हवा का व धुप का प्रभाव बाधित हो जाये तो यह दक्षिण पूर्व अपने दोष देने लगता है। जिससे घर की महिलायें पीड़ित होती हैं। 

 

गजकेसरी योग भंग और उपाय

गजकेसरी योग – यह योग जितना सुंदर और विशेष है उतने ही दोषपूर्ण परिणाम इसमें देखने को मिलते है। इसका कारण यह है कि कुंडली में चंद्र व गुरु अत्यधिक पीड़ित हों। या फिर दोनों ही जन्मपत्री में एक अच्छी स्थिति में न हो तो, जैसा कि फलदीपिका में श्लोक कहता है, इस संयोजन को पूर्ण परिणाम देने के लिए जन्मपत्रिका में लाभकारी भाव व ग्रहों के द्वारा देखा जाना चाहिए क्योंकि यह सभी जन्म पत्रिकाओं में संभव नहीं हो सकता है, लेकिन अलग-अलग पत्रिकाओं के अनुसार उपायों का उपयोग करके इसका ध्यान रखा जा सकता है। क्योंकि इस योग में कई पारंपरिक उपाय और अनुष्ठान हैं। एक बार जातक जब प्रदर्शन करने की कोशिश करता है तो किसी भी अन्य उपाय की तुलना में यह एक अच्छा परिणाम देता है लेकिन याद रखें कि यह बृहस्पति और चंद्रमा – शिव और शक्ति का एक उपाय है जिसका अर्थ है कि परिणाम समय के साथ बढ़े हुए रूपों में आएंगे जिनकी आपने उम्मीद नहीं की होगी।

 

आइए श्री राम की कुंडली का उपयोग करके एक उदाहरण देखें –

गजकेसरी योग से शुभ फल प्राप्ति

      श्री रामचंद्र जी की कुंडली में भी आप देखते हैं कि बृहस्पति और चंद्रमा की युति शक्तिशाली तुला राशि के शनि के द्वारा दृष्ट है जो इस कुंडली को एक दोषपूर्ण कुंडली बनाती है, साथ ही ज्योतिष शास्त्र में मकर राशि में मंगल उच्च का माना जाता है। मंगल मकर राशि में 7 वें भाव से इस युति को देख रहा है जिसके परिणामस्वरूप गज केसरी योग विफल होना चाहिए। लेकिन अब हम अपवादों को देखते हैं।

        मूल रूप से लंका का निर्माण माता पार्वती व शिव जी के लिए एक सुन्दर महल का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया था, परन्तु गृहप्रवेश के समय आचार्य विश्र्वा और उनकी पत्नी कैकसी को सोने की लंका देख मन में लालच आगया और जब भगवान शिव ने उनसे दक्षिणा मागने को कहा तो उन्होंने दक्षिणा स्वरुप लंका को भगवान् शिव से मांग लिया इस पर माता पार्वती ने क्रोध में धधकते हुए लंका को श्राप दे दिया एक दिन इस लंका को महादेव का अंश ही जला कर भस्म कर देगा। और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरम्भ हो जायेगा। 

              ऋषि विश्र्वा ने अपनी दूसरी पत्नी इलविल्ला के पुत्र कुबेर व यक्षों को लंका रहने के लिये प्रदान की, और फिर कुछ समय उपरांत लंका पर रावण द्वारा कब्जा कर लिया गया, श्री राम को रावण से लड़ने के लिए लंका जाना पड़ा, गुरु-चंद्र की युति (शिव और कुबेर) दोनों चार्ट के लग्न में स्थित हैं। श्री राम की कुंडली शनि मंगल से अत्यधिक पीड़ित।

 

गजकेसरी योग के मुख्य उपाय – “श्री राम चंद्र जी के द्वारा किये गये पूजा-अनुष्ठान” के रूप में उपाय 

प्रथम उपाय – श्री राम ने समुंद्र पार करने से पहले रामेश्वरम नाम के तट पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव से प्रार्थना की, इस पर फिर से विचार करें कि पुरे भारतवर्ष में केवल दक्षिण भाग में ही क्यों करना पड़ा और कहीं क्यों नहीं क्योंकि मंगल मकर राशि में है जो दक्षिण का भी प्रतिनिधित्व करता है जैसा कि शनि मकर राशि में दक्षिण का स्वामी है, उसने ईशान के देवता से प्रार्थना की जो की  उत्तर पूर्व  कैलाश पर स्थित हैं और विशेष रूप से रुद्राष्टकम का प्रसिद्ध मंत्र गाया, जो नमामि शमी शां निर्वाण रूपम से शुरू होता है।

जिसका अर्थ है- मैं उत्तर पूर्व में निवास करने वाले भगवान को प्रणाम करता हूं।

दूसरी बात, श्री राम ने पहले हनुमान को पहाड़ों से शिवलिंग लाने का निर्देश दिया था, जो श्री राम का मंगल के अशुभ प्रभावों को शांत करने का तरीका था क्योंकि हनुमान जी देर से आए थे इसलिए श्री राम ने कुछ बहुत ही अभिनव किया, मिट्टी से शिव लिंगम बनाने के लिए ( मंगल-दक्षिण की मिट्टी) मिटटी का उपयोग किया मंगल की दशा को शांत करने के लिए। यह रावण के साथ युद्ध से ठीक पहले की बात है और उन्होंने बृहस्पति के उपाय के रूप में एक शिव लिंगम का पूजा अनुष्ठान सम्पन्न किया।

दूसरा उपाय  ज्योतिष में (चौथा भाव)चंद्रमा को माता कारक माना जाता है। उनके चौथे घर में शनि देव विराजमान थे। 

द्वितीय उपाय

श्री राम की शक्ति पूजा – छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” द्वारा रचित राम की शक्ति पूजा को बहुत ही सुन्दरता से दर्शया है। कवि के अनुसार इस कविता का मुख्य प्रसंग मिथिकीय राम-रावण युद्ध के उस बिंदु पर आधारित है, राम जो बाण रावण पर चलाते वें सभी बाण महाशक्ति के शरीर में बुझकर नष्ट हो जा रहे थे। जब राम और उनकी सेना रावण से युद्ध में पराजित होकर अपने शिविर में लोटती हैं और राम का मन व्याकुल है और रावण की विजय का भय उनके मन में बार-बार उठ रहा है।

स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय ,रह-रह उठता जग जीवन में रावण-जय-भय,

जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपु-दम्य-श्रान्त, एक भी, अयुत-लक्ष में रहा जो दुराक्रान्त,

कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार – बार, असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।

फिर देखी भीम मूर्ति आज रण,  देखी जो आच्छादित किये हुए सम्मुख समग्र नभ को,

ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ बुझ कर हुए क्षीण, पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन;

विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण, हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर, तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन। छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो, रघुनन्दन! 

यह अन्तिम जप, ध्यान में देखते चरण युगल
राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।
कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,
ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।
देखा, वह रिक्त स्थान, यह जप का पूर्ण समय,
आसन छोड़ना असिद्धि, भर गये नयनद्वय।

धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका,
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय, 

“यह है उपाय”, कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन-
“कहती थीं माता मुझे सदा राजीवनयन।
दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।”

ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन
ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन
जिस क्षण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय,
काँपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय-
“साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

 

अब राम युद्ध को छोड़ कर महाशक्ति की साधना में लग जाते हैं। पूजा समाप्त होने से पहले देवी दुर्गा राम की परीक्षा लेना चाहती हैं। साधना के अंतिम दिन देवी दुर्गा छिपकर आती हैं और एक कमल के फूल को चुपके से उठा ले जाती हैं। 

राम सोचते हैं कि अब साधना पूरी नहीं हो पाएगी और मैं सीता को कैसे छुड़ाऊंगा ? किन्तु यह स्थिति राम को स्वीकार नहीं थी। इसी बिंदु पर राम का वह मन – जो न तो कभी किसी से पराजित हुआ था और न ही कभी थका था, जो किसी की विनम्रता और दीनता को स्वीकार नहीं करता – आत्मविश्वास की भावना से भर जाता है।

राम का यह व्यक्तित्व अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। राम को इस बिंदु पर याद आता है कि बचपन में उनकी माँ यह कहती थी कि उनके नेत्र कमल के समान हैं। अतः राम अंतिम पुष्प के रूप में अपने नेत्र को अर्पित करने के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं।

जैसे ही राम अपना नेत्र अर्पित करने के लिए अपने हाथ में अस्त्र उठाते हैं, उसी क्षण देवी दुर्गा प्रगट को जाती हैं और राम के हाथ को ऐसा करने से रोक लेती हैं।

राम देवी को प्रणाम करते हैं और देवी दुर्गा राम को विजय का आशीर्वाद देती हैं तथा राम के मुख में लीन हो जाती हैं –

श्री राम के द्वारा नौं दिन तक 108 नील कमल फूल जगत जननी माँ शक्ति को अर्पित किये यह इसलिए क्योंकि शनि के चौथे घर में होने के कारण मां शक्ति को नील कमल के फूल चढ़ाए क्योंकि चंद्रमा की देवी भगवान् शिव की अर्धांगिनी जगत जननी माँ स्वयं शक्ति हैं।

भगवान श्री राम जब युद्ध क्षेत्र में रावण के साथ युद्ध लड़ रहे थें, तो श्री राम को स्मरण हो गया था की इस धर्म-अधर्म के युद्ध में रावण का अधर्म के साथ होने पर भी दैवीय शक्ति उसकी सहयता कर रही हैं। उस दिन जब युद्ध समाप्त होने पर श्री राम ने हताश होकर जामवंत जी के साथ मंत्रणा करते हुए यह बात रखी तो जामवंत जी ने कहा की हम युद्ध का कार्य भार संभालतें हैं और आप अपना ध्यान-अनुष्ठान कीजिये, फिर अनुष्ठान के नौंवे दिन के बाद माँ दुर्गा ने उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया उसके दसवें दिन श्री राम ने रावण का वध किया। और इस प्रकार उनकी जन्मपत्री से दोनों दोष दूर हुए। और उनका गज केसरी योग फलित हुआ।

साधारणत: उपायों से गजकेसरी योग के दोष दूर होने पर लोगों को यही अनुभव होता है।

 

FAQ 

प्रश्न – गजकेसरी योग कैसे बनता है?

उत्तर – ब्रहस्पति और चंद्रमा केंद्र या त्रिकोण भाव या 5वें या 9नवें में हो इन ग्रहों की युति होने से यह गजकेसरी योग बनता है।

 

 प्रश्न – गजकेसरी योग में कौन से रत्न धारण करें?

उत्तर – गजकेसरी योग में ज्योतिषियों के अनुसार जन्म पत्रिका दिखाने के उपरांत आप ब्रहस्पति पीला पुखराज अपनी तर्जनी ऊँगली में व सफ़ेद मोती चन्द्रमा के लिए कनिष्ठा ऊँगली में पहन सकते हैं। 

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