पंचतत्त्व क्या हैं? पंचतत्त्व का महत्व, पंचतत्त्व का जीवन में उपयोगFive Elements Of Hinduism – भगवान पंचतत्त्व से ही बने है-
पंचतत्त्व क्या हैं? भगवान शब्द में पंचत्व का महत्व छिपा हुआ है। अगर इन शब्दों को अलग-अलग कर दिया जाये तो पंचतत्वों का निर्माण स्वत: ही हो जाता है।
भ ग व्+आ न अर्थात
भ से भूमि(पृथ्वी)
ग से गगन(आकाश)
व् से वायु
अ से अग्नि
और न से नीर(जल)
- विद्वानों के मत के अनुसार पंचतत्त्व क्या हैं? प्रकृति का निर्माण पंचतत्वो से हुआ है अर्थात प्रकृति ही ईश्वर है और ईश्वर ही प्रकृति इसे हम ऐसे समझे जो प्रकृति में होकर भी प्रकृति से परे इस प्रकृति को संभाले हुए है जैसे की हम सभी जानते है महादेव जो सदैव ध्यान मुद्रा में इस जगत को थामे हुए है और आवश्यकता पड़ने पर हलाहल विष का पान करने वाले इस ब्रह्माण्ड की सुन्य् ता को दर्शा रहे है ऐसे योगी जो देवो में महादेव कहलाते है।
- सांख्य दर्शन के अनुसार – पंचतत्त्व क्या हैं? सांख्य दर्शन में प्रकृति को सभी बातो का मूल कारण माना है। और स्मस्त विषयों का अनादि मूल स्रोत होने के कारण वह प्रकृति को निरपेक्ष मानता है क्योंकि सापेक्ष व् अनित्य पदार्थ जगत का मूल कारण नहीं हो सकते हैI मन, बुद्धि और अहंकार जैसे सूक्षम कार्यो का आधार होने के कारण प्रकृति एक गहन, अनंत और सूक्षम शक्ति हैl जिसके द्वारा संसार की सृष्टि और लय का चक्र निरंतर प्रवाहित होता रहता है।
- सांख्य मानता है की आत्मा का अस्तित्व स्वयं सिद्ध होता है और इसकी सत्ता का कभी खंडन नहीं किया जा सकता l सांख्य पुरुष को निर्गुण विवेकी, व् ज्ञाता मानता है साथ ही यह भी मानता है की पुरुष प्रत्येक शरीर में भिन्न है पुरुष को वह चेतन, अपरिणामी, अपरिवर्तनशील, निष्क्रिय भी मानता है सांख्य अनेक पुरुषो का अस्तित्व मानता है क्योंकि अलग अलग आत्मा होती हैl अलग अलग ही इन्द्रियाँ होती हैl नैतिक गुण भी अलग होते हैl कुछ में सत्व होता है तो कुछ में रजस होता है व् तमस l सांख्य मत के आनुसार आत्मा, शरीर, इन्द्रिय, मन और बुद्धि से भिन्न है यह सांसारिक विषय नहीं
शास्त्रों और ब्रह्माण के रचनाकारको के अनुसार इन पाँच तत्वों में विशेष प्रकार के गुण होते है जिन्हें अनुभव करने के लिए हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेंद्रिया होती है और सभी तत्वों का अस्तित्व भी विशेष होता है
जैसे पांच ज्ञानेन्द्रियाँ का महत्व-पंचतत्त्व क्या हैं?
- आकाश तत्त्व – पहला मूल तत्त्व उसका भौतिक गुण शब्द (ध्वनि) है जिसका ज्ञान कराने वाली इन्द्री हमारे कान है। और इस तत्व का अस्तित्व स्थान हैI मन में भावनाएं और दिमाग में विचार इसी तत्त्व के कारण उत्पन्न होते है।
- वायु तत्त्व – दुसरा महाभुत इसका विशेष गुण स्पर्श है। जिसकी ज्ञानेद्री हमारी त्वचा है। इसके अस्तित्व वेग है इसमें आकाश तत्त्व गुण शब्द भी होता है क्योंकि यह तत्त्व समय की गति से प्रेरित हो कर आकाश तत्व मे होने वाले विकार से ही उत्पन्न होता है। यहाँ तक की व्यक्ति के प्राणों में भी वायु तत्त्व होता हैI तभी तो प्राणों को प्राण वायु कहा जाता है
- अग्नि तत्व अर्थात तेज – प्रकाश है इसका विशेष गुण है “जिसे आखों से अनुभव करते हैं और देखने की शक्ति यही तत्त्व प्रदान करता है और इसका अस्तित्व अग्नि या ताप कहलाता है इस तत्व में आकाश और वायु दोनो के गुण होते हैं।
- जल तत्व – चौथा तत्त्व जिसका विशेष गुण रस अर्थात – स्वाद है इसका ज्ञान हमारी जिह्वा के माध्यम से होता है और इसका अस्तित्व तरल है शारीर में मौजूद खून, रस व् एंजाइम जल तत्त्व के ही अधीन है। और इसमें आकाश वायु और तेज के भी गुण होते हैं।
- पृथ्वी तत्व – पांचवा अन्तिम भौतिक तत्त्व इसका विशेष गुण गंध है जिसे हम नाक से अनुभव करते हैं। इसका अस्तित्व द्रव्य है शरीर के हाड़, मांस, मानसपेसियाँ, त्वचा, व् कोशिकाएं आदि पृथ्वी तत्त्व से ही निर्मित है इसमें आकाश, वायु, तेज, जल, व सभी के गुण होते हैं. इन पाँच तत्वों से निर्मित मानव शरीर में’ 36 गुण होते है जिनका महत्व ज्योतिष शास्त्र मे उल्लेखित है तो आइये पंचतत्वों का ज्योतिषिय महत्व भी जान लेते है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आकाश तत्व की कोई विशेष राशि नही होती है परन्तु पुरा राशि चक्र ही आकाश तत्व के अंदर स्थित है मात्र सभी बारह राशियों में यह तत्त्व विद्यमान होता है।
पंचतत्व जाने हिन्दू धर्म में इसका ज्योतिषीय रहस्य-पंचतत्त्व क्या हैं?
- वायु तत्व की – तीन प्रधान राशियाँ मिथुन, तुला, कुम्भ है वायु में परिवृतन, स्पर्श तथा चंचलता का गुण है इन राशियों के जातक परिवर्तन प्रिय तथा मानसिक रूप से सबल तथा प्रभावशाली होते हैं इनके जातक सदैव प्रसिद्धि तथा नाम कमाने के लिए तत्पर रहते है आधुनिक युग में अच्छे ड्रेस, इंटीरियर व् ज्वेलरी डिज़ाइनर वायु तत्त्व के गुण हैI शांत स्वभाव वाले होते है व्यक्ति एक स्थान पर ज्यादा समय नहीं रह पाते I एक से अधिक ज्ञान को प्राप्त करने की इच्छा वाले वायु तत्त्व के गुण है। अल्प आहार, कमजोर यादास्त, व एक कार्य को करते हुए दुसरे कार्य को आरंभ करने वाले वायु तत्त्व के ही गुण है।
- जल तत्व की – प्रधान राशियां कर्क, वृश्चिक, मीन में ग्रहण की क्षमता होती है इस कारण इन राशियों के जातकों में आत्म विश्लेषण खोज और ज्ञान ग्रहण करने का विशेष गुण होता है। और जल विशेष गुण रस के कारण यह बहुत भावुक होते है। जो दूसरों के दुख से भी जो दुखी हो जाते हैं। जल तत्त्व के मनुष्य भोजन प्रेमि कह्लाते है या भोजन में कभी कमी नहीं निकालते, बुद्धिमान् तेज याददास्त, बड़ी आंखें, धन को संचय करने वाले जल तत्त्व के गुण है।
- अग्नि तत्व की – प्रधान राशियां है मेष, सिंह, धनु तेज तत्व के सबसे प्रधान गुण तत्व रूप है- इन राशियों के जातक बड़े रूपवान होते है। इस तत्व का विशेष गुण रूप होता है। अर्थात इसके जातक तेजस्वी और रूपवान होते हैं यह अन्तः गुण के कारण में बहुत क्रियात्मक और अभिन्न गुस्सेल स्वभाव के भी होते और इनकी इच्छा शक्ति बहुत अधिक होती है। कार्यो में शीघ्रता, व् स्वादिष्ट भोजन प्रिय अग्नि तत्त्व के गुण है।
- पृथ्वी तत्व की – प्रधान राशि वृषभ, कन्या, मकर पृथ्वी तत्व पांचों तत्व के गुण धर्म होते है। जिसके कारण पृथ्वी तत्व के जातक सर्वगुण सम्पन्न होते है। और इससे पुर्णता और यथार्थता का भाव होता है और ये जातक भौतिकता वादी होने के साथ ही भोजन, मिष्ठान, वस्त्र, कला, संगीत और यात्रा में रुचि रखते है।
योग सुत्र के अनुसार पंचतत्वों का हमारे शरीर के ऊर्जा चक्रों से भी विशेष महत्व है जैसे-
- आकाश तत्व का विशुद्धि चक्र से विशेष संबंध है मनुष्य का विशुद्धि चक्र जाग्रत है और उसे शब्द गुण की सिद्धी प्राप्त हो जाती है, वह मनुष्य एक प्रखर वक्ता, नेता तथा प्रबंध अधिकारी होते है इनकी वाणी बहुत ही प्रभावशाली होती है।
- वायु तत्त्व का अनाहत चक्र से सम्बन्ध है- अतः इसकी जागृति से स्पृश गुण की सिद्धी होती है जिस कारण मनुष्य किसी के भी मन मस्तिष्क को छु सकता है अर्थात आर्कषित कर सकता इसके अतिरिक्त अनाहत चक्र जागृत व्यक्ति सभी में प्रेम भाव जगा सकता है।
- अग्नि तत्व यानि मणिपुर चक्र से संबन्ध है अर्थात जिस मनुष्य का यह चक्र जागृत हो वह रूप गुण की सिद्धि प्राप्त कर लेता है जिससे वह परम उर्जावान, बलवान और परम तेजस्वी हो जाता है। इसी प्रकार-
- जल तत्व का स्वाधिष्ठान चक्र से सम्बन्ध होने के कारण इस गुण की सिद्धी होती है जिस कारण वह मनुष्य सदैव आनंद में रहता है। और वह किसी को भी मोहित करके उसकी मानसिकता और मनोभाव बदलने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
- पृथ्वी तत्व का मुलाधार चक्र विशेष संबंध है जिसकी जागृति से ही अन्य चक्रों की जागृति का मार्ग खुलता है इसकी जागृति से ही मानव स्वस्थ शुध्द, निरोगी, प्रबल इच्छा शक्ति वाला हो जाता है तो हमने देखा की पंचतत्व हमारे जीवन में कितना महत्व रखते है।
महर्षि चरक द्वारा रचित चरक संहिता के अनुसर
पंचतत्वो से ही स्वाद का भी निर्माण होता है जैसे –
- मीठे स्वाद में पृथ्वी और जल तत्त्व शामिल होते है।
- खट्टा स्वाद पृथ्वी और अग्नि ।
- तीखे स्वाद में वायु में अग्नि होती है।
- कड़वा स्वाद वायु और आकाश ।
- कसैला स्वाद में वायु और पृथ्वी शामिल होते है।
हम अपने शारीर के रजस,सत्व,तमस को ही संतुलित कर सकते है आचार, विचार, और व्यवहार से परन्तु आकाश व् पृथ्वी एक स्थिर तत्त्व है। दैनिक दिनचर्या में इन्हें हम ध्यान योग, प्राणायाम की मदद से संतुलित कर सकते है।
FAQ
प्रश्न – पंचतत्व का मतलब क्या होता है?
उत्तर –पंचतत्त्व क्या हैं? हमारे सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड का मूल पंचतत्व है जिनसे सृष्टि निर्मित है। यह पंच तत्त्व हमे आकाश, वायु, अग्नि, पृथ्वी, जल, के रूप में दिखते हैं। पृथ्वी तत्व को इस सम्पूर्ण श्रष्टि का अंतिम भौतिक तत्त्व माना गया है। इसी प्रकार पृथ्वी तत्व के प्रदार्थों की तथा स्वयं पृथ्वी के भी लुप्त हो जाने पर जो शेष रह जाता है वह जल तत्व है और जल के न रहने पर संसार मे शेष रह जाता है वह तेज अर्थात अग्नि भी तत्व है। तेज के न रहने पर भी जो रह जाती है वह वायु तत्व हे और वायु की अनुपस्थिती में केवल आकाश शेष रह जाता है, इस लिए आकाश वह प्रथम तत्त्व है जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहता है।
प्रश्न – शरीर में आकाश तत्व क्या है?
उत्तर – पंचतत्त्व क्या हैं? शारीर में आकाश तत्त्व हमारे मस्तिषक(स्मरण शक्ति) को दर्शाता है।आकाश तत्व का विशुद्धि चक्र से विशेष संबंध है मनुष्य का विशुद्धि चक्र जागृत होने से उसे शब्द गुण की सिद्धी प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न – पांचवा तत्व कौन सा है?
उत्तर –पंचतत्त्व क्या हैं? पृथ्वी तत्व को इस सम्पूर्ण श्रष्टि का अंतिम भौतिक तत्त्व माना गया है। इसी प्रकार पृथ्वी तत्व के प्रदार्थों की तथा स्वयं पृथ्वी के भी लुप्त हो जाने पर जो शेष रह जाता है वह जल तत्व है और जल के न रहने पर संसार मे शेष रह जाता है वह तेज अर्थात अग्नि भी तत्व है। तेज के न रहने पर भी जो रह जाती है वह वायु तत्व हे और वायु की अनुपस्थिती में केवल आकाश शेष रह जाता है, इस लिए आकाश वह प्रथम तत्त्व है जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त रहता है। आकाश ही वह तत्त्व जो सारी सृष्टि को अपने में समाये हुए है। अर्थात कहा जा सकता है पांचवा तत्त्व आकाश ही है।