भूमि पूजन
भूमि पूजन भूमि पूजन की सम्पूर्ण विधि, भूमि पूजन मन्त्र – इस पृथ्वी पर उचित रूप में अनुकूलन के साथ निवास बनाने, या कोई नया निर्माण करने या कोई भी कार्य शुरू करने से पहले हमें नियम अनुसार भूमि पूजन करके उस भूखंड या भूमि से आज्ञा लेकर ही कार्य आरम्भ करना चहिये। पूजन के दौरान प्रकृति के पांच तत्वों की भी पूजा की जाती है, जो एक नए घर के निर्माण की शुरुआत से पहले भूमि पूजन और देवी-देवताओं के सम्मान स्वरुप किया जाता है।
भूमि पूजन – भूमि पूजन की सम्पूर्ण विधि, भूमि पूजन मन्त्र व शिलान्यास के लिए दिशा-निर्देश
भूमि पूजन करते समय चौथी, नौवीं और चौदहवीं तिथि से बचना चाहिए, क्योंकि ये गृह निर्माण या भूमि पूजन के लिए शुभ नहीं मानी जाती हैं। भूमि पूजन और गृह निर्माण शुरू करने के लिए शुभ तिथियों का चयन करते समय, यह जांचना चाहिए कि क्या वह महीना शुभ है, जिसमें शुभ मुहूर्त, तिथियाँ और नक्षत्र शामिल हैं। इसलिए भूमि पूजन से पहले अच्छे से सलाह लें
पंडित और वास्तु शास्त्री की परामर्श से पहले यह निश्चित कर लें के राहू का मुख, पीठ एवं पुच्छ किस दिशा में स्थित है उसके बाद ही भूमि पूजन व नींव खुद्वानी चाहिये । नींव खोदने में वास्तु शास्त्री की परामर्श से चिन्हित स्थान जिस गृह नक्षत्र में वास्तु पुरुष का शरीर भेदन न हो उस स्थान या बिंदु से ही नींव खोदना आरंभ करना चाहिये। यदि सभी कार्य सही समय और सही विधि से कियें जाए, तो इससे भूमि पर बिना किसी परेशानी के काम पूरा हो जाता है। और इसमें रहने वाले लोगो को सुख़-समृद्धि प्रदान करता है।
भूमि पूजन या गृह निर्माण के दौरान रखी जाने वाली पहली नींव को शिलान्यास कहते हैं। वास्तु के अनुसार, नींव खोदने के लिए सही स्थान और सही समय का पता लगाना जरूरी है। नींव शुभ मुहूर्त और घर के मालिक के नाम के आधार पर चुनी जाती है।
नींव खुदवाने से पहले कुछ आवश्यक बातो का रखें ध्यान – वास्तुशास्त्र हमें इस बात के लिए सावधान करता है की घर बनाने के लिए भूमि पूजन नींव की खुदाई किस दिशा से शुरू की जाये इसके निश्चय के लिए राहू के मुख, पीठ, एवं पूछ की स्थिति उस भूखण्ड में किस उप दिशा में एवं दिशा में हैं – यह जान लेना आवश्यक है, ऐसा कहा गया है। राहू सर्प के आकार में प्रत्येक भूखंड में अपने शरीर को शिर से पैर तक प्रसारित कर लेता रहता है। उसकी स्थिति सूर्य की तीन-तीन राशियों के भोग के उपरांत बदलती रहती हैं। यह सौर राशियों की गणना स्थिर राशियों से प्रारंभ की जाती है। अतः वास्तुशास्त्र हमें सावधान करता है कि खनन प्रारंभ करते समय उस सर्प कार राहू के किसी अंश अंग पर प्रहार न हो जाये । ऐसा होने पर गृह स्वामी का अनिष्ट होता है । अतः खुदाई उस स्थल से आरम्भ हो, जहाँ पर राहू के शरीर का कोई अंग पीड़ित न हो।
अपने नए घर की नींव व भूमि पूजन करते समय भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान को पूजा जाता है। क्योंकि इन्होंने ही अपने फन पर पृथ्वी और को संभाला हुआ है। भूमि पूजन के समय नींव में चांदी के नाग-नागिन की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना होता है।
नींव में को नाग-नागिन रखकर यह माना जाता है कि जिस प्रकार शेष नाग ने पृथ्वी को संभाला हुआ है उसी प्रकार शेष नाग उनके भवन को भी संभाल कर रखेंगें। भवन सुरक्षित और दीर्घायु होगा। पूजन के समय कलश पूजन का भी यही तात्पर्य है शेषनाग क्षीरसागर में निवास करते है अपितु उनको कलश में दूध, दही व मिठाई अर्पित कर शेषनाग का आवाहन किया जाता है।
कलश में चांदी, व सुपारी, सिक्का आदि डाल कर श्री लक्ष्मी जी व प्रथम पूज्य भगवान् गणेश जी की कृपा पाने के लिए कलश की स्थापना की जाती है। कलश की स्थापना ब्रह्मांड स्वरुप और भगवान् विष्णु का प्रतीक मानकर उनसे प्रार्थना की जाती है की माँ लक्ष्मी के साथ इस भूमि पर विराजमान रहें । ऐसे ही विघ्नविनाशक भगवान गणेश कार्यो को सफल बनायें। व भगवान् शेषनाग हमेशा भूमि पर बने भवन को संभाले रखें।
भूमि पूजन शुभ मुहूर्त कैसे चुनें?
गृह आरम्भ के लिये कालनिर्णय जिसको जानकार गृह का निर्माण कार्य प्रारम्भ करना चाहिये गृह आरम्भ हेतु काल के स्थूल अवयवो को पीछे बताया गया है। वहाँ गृह आरम्भ हेतु अयन-ऋतू-मास आदि का वर्णन है। अब सूक्ष्म अवयवो नक्षत्र, मुहर्त, लग्न आदि का विवरण देखते है।
गृह आरम्भ मृदु नक्षत्र | (अश्विनी, चित्रा, मूल, रेवती) , ध्रुवनक्षत्र, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्र, स्वाति, पुष्य ,धनिष्ठ, शतभिषा, हस्त, मूल तथा पुनर्वसु । |
शुभ मास | पौष, वैशाख (बैसाख), अग्रहायण, फाल्गुन, श्रावण, कार्तिक, माघ और भाद्रपद |
शुभ वार | सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार(रविवार, मंगलवार छोड़कर) |
शुभ तिथि | द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी त्रयोदशी तथा पूर्णिमा |
शुभ लग्न | वृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या, वृषिका, धनु और कुंभ |
नींव पूजन या शिलान्यास के लिए शुभ नक्षत्र | उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्र, और रोहिणी, |
गृह निर्माण के लिए शुभ नक्षत्र | मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा, धनिष्ठा, हस्त और पुष्य |
यह राहु सिंहादि तीन सौर मासों अग्निकोण में कुक्षि के आश्रित होता हैं, अतः इसी प्रकार ‘खन्नन कर्म करना चाहिये।
रविवार आदि दिनों में क्रमशः दक्षिण-उत्तर आग्रेय-पश्चिम-दक्षिणी तथा वायव्य दिशाओं में सूर्या रहता है। मूलतः इन दिशाओं में उक्त युद्धों में गमन करना तथा गृह निर्माण वर्जित है।
यह राहू गृह-निर्माण हेतु सिंहादी तीन राशि के क्रम से ईशानादि कोणों से उल्टा चलता है। जिस दिशा में राहू का मुख होता है, उससे पिछली दो विदिशाओ में क्रमशः पीठ तथा पुंछ होती है। जैसे की सिंह, कन्या, तुला राशियों के निरयन सूर्य में राहू का मुख ईशान कोण में होता है तब उसकी पीठ वायव्य में तथा पूंछ नैऋत्य (दक्षिण पश्चिम) कोण में होती है। यह दिशाए भूखंड के मध्य से देखनी चाहियें।
यहाँ यह स्मरणीय है कि भूखंड में नींव खोदनें का प्रारम्भ सदैव मुख्य दिशाओं (पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण) से न होकर इशानादी दिशाओं (कोणों) से होता है। बस नींव की खुदाई का आरंभ राहू के मुख तथा पूंछ वाली प्रष्ठभूमि से आरम्भ न कर खाली दिशा या कोण से आरम्भ करें ।
गृह आरम्भ में अशुभ तिथियाँ – प्रतिपदा (विशेषकर शुक्लपक्ष) में गृह आरम्भ करने से दरिद्रता प्राप्त होती है। चतुर्थी में धनहरण होता है। अष्टमी में बनाने वाले तथा कारीगर एवं मजदूरो का मन उचट जाता है। जिसके कारण कार्य पूर्ण में बाधा उत्पन्न हो जाती है। नवमी तिथि में श्स्त्रघात का भय होता है । अमावस्या में राजभय तथा चतुर्दशी में पुत्र एवं पत्नीआदि की विनाश होता है।
दिग राहू चक्र
पूर्व दिशा में | दक्षिण दिशा में | पश्चिम दिशा में | उत्तर दिशा में | दिग्राहु की दिशा |
वर्श्चिक-धनु-मकर | कुम्भ-मीन-मेष | वृष-मिथुन-कर्क | सिंह-कन्या-तुला | सूर्यराशि में |
वंश विनाश | वंश विनाश | वंश विनाश | वंश विनाश | स्तंभ निवेश का फल |
अग्निभ्य | अग्निभ्य | अग्निभ्य | अग्निभ्य | द्वार निवेश का फल |
कार्यहानि | कार्यहानि | कार्यहानि | कार्यहानि | यात्रा का फल |
कुलक्षय | कुलक्षय | कुलक्षय | कुलक्षय | ग्रहारम्भ फल |
धनिष्ठआदि पञ्चक का विचार
धनिष्ठ, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन पांच नक्षत्रो में स्तंभ खम्बे या पिलर की स्थापना नहीं करनी चहिये, किन्तु इन पांच नक्षत्रो में अर्थात पंचक में सूत्रधार (राजमिस्त्री, कारीगर) को बुलाकर शिलान्यास तथा प्रकारादी परकोटे, चारदीवार, आदि का निर्माण किया जा सकता है।
धनिष्ठ, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन पांच नक्षत्रो में गृह आरम्भ प्रशस्त कहे ही गयें है अतः, घर पर छत डालना, चोखट-बाजु, पटना आदि लगाने में ही पंचक वर्जित होता है। नींव लगाने में पंचक का विचार नहीं होता है।
भूमि पूजन की विधि –भूमि पूजन की सम्पूर्ण विधि, भूमि पूजन मन्त्र
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भूमि पूजन में कलश स्थापना तथा उस पर देवादि का आवाहन पूजन
तत्र कुम्भं निवेश्यादौ हेमगर्भं जलैर्युतम।
सर्वधान्ययुतं सर्वगन्धसर्वौषधैर्युतम् ॥ 89 ॥
पुष्पान्वितं रक्तवर्णं सवस्त्रं मंत्रमंत्रितम्।
तस्मिन्नावाहयेत् खेतान वरुणप्रमुखांस्तथा ॥ 90 ॥
तस्मिन्नावाहयेद् भूमिं सशैलवनकाननम्।
नदीनदसमायुक्तां कर्णिकाभिश्च भूषितम् ॥ 91 ॥
सागरैर्वेष्टितां दिक्पालाय पूज्येत्प्रार्थयेत्ततः।
कुलदेवीन्श्च देवान्याक्षस्तथोरगान् ॥ 92 ॥
बालिञ्च दत्तवा विधिवज्जलयेति जपेत्ततः।
षडऋचं रुद्रजापञ्च कार्ययेद् विधिपूर्वक ॥ 93 ॥
तस्मिन्सम्पूजयेद् वास्तु प्रार्थयेत् पूजयेत्ततः।
भूमि पूजन भूमि पूजन की सम्पूर्ण विधि, भूमि पूजन मन्त्र – सर्वप्रथम एक छिद्ररहित कलश में स्वर्णधातु डालकर उसमें जल भर दें। उसी में सर्वधान्य, सर्वगंध, सर्वौषधि, पुष्प डालकर रक्तवर्ण के वस्त्र से कलश को वेष्टित कर दें। फिर मंत्रोच्चारित नवग्रहों, वरुणादि देवताओं का उस कलश पर आह्वान करें। एक ही समय में पर्वत, वन, नदियाँ, नदी और कर्णिका सहित पृथ्वी का आवाहन करें। सागर से वेस्टित पृथ्वी देवी की पूजा तथा प्रार्थना करें, दश दिक्पालों, कुलदेवी, कुलदेवता, यक्ष तथा नागों की पूजा करें तथा उन्हें बलि(भोग) विधि से ‘जलाय’ मंत्रों, षडऋचाओं तथा रुद्रसूक्त का जाप करें। फिर अंत में उस कलश पर वास्तुदेवता की पूजा और प्रार्थना करें ॥
वास्तुप्रार्थना मंत्र
ॐ नमो भगवते वास्तुपुरुषाय कपिलाय च ॥
पृथ्वीधरा देवाय प्रधानपुरुषाय च।
सकलगृहप्रसादपुष्करोदयनकर्मणि॥
गृहारम्भप्रथमकाले सर्वसिद्धिप्रदायक।
सिद्धदेवमनुष्यश्च पूज्यमान् दिवानीषम् ।। ..
गृहस्थाने प्रजापतिक्षेत्रेऽस्मिन्स्तिष्ठ संप्रतम्।
इहागच्छ इमां पूजां गृहाण वरदो भव ॥
वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु भूमिशायारत प्रभो।॥
मद् गृहं धनधान्यदिसमृद्धं कुरु सर्वदा ॥
भूमि पूजन मंत्र का अर्थ- हे कपिल वर्ण के वास्तु पुरुष! पृथ्वी को धारण करने वाले प्रधान पुरुष ! आपको नमस्कार है। आप सभी प्रकार के भवन, प्रसाद, उद्यानादि-निर्माण के कार्यों में तथा गृहारंभ के प्रथम काल में संपूर्ण सफलता को प्रदान करते हैं। आपके सिद्ध, देवता गण और मनुष्य रात्रि-दिन की पूजा करते हैं। आप यहां इस गृह निर्माण के उद्देश्य से भूमि पर प्रजापति के क्षेत्र में इस समय (इस अवसर पर) आकर विराजमान हों तथा यहाँ आकर इस पूजा एवं बलि आदि को स्वीकार करने की कृपा करें।
हे वास्तु पुरुष! आपको नमस्कार है, आप भूमि की शैया पर शयन कर रहे है। हे प्रभु। आप मेरे इस गृह को धन-धान्य से सर्वदा समृद्ध करते रहें
इस प्रकार से प्रार्थना करके भूमि पर वास्तु पुरुष की मूर्ति का लेखन आटे से या चावल से करेंI
वास्तु पुरुष नाग जैसे आकार का बनायें।
वास्तुपुरुष का आवाहन व पूजन तथा नींव की खुदाई
आहयेद् वेदमंत्रैः पूज्येच्च स्वशक्तितः।
मन्त्र-“आवाहयाम्यहं देवं भूमिस्थं च अधोमुखम् ॥ 100 ॥
वास्तुनाथं जगत्प्राणं पूर्वस्यां प्रथमाश्रितम्।”
विराश्रतेति मंत्रेण पूज्येत्सर्पनायकम् ॥
नमोस्तु सारेभ्यो इति वा पूज्येत्सस्वशक्तितः।
कुक्षिप्रदेशे निखनेद्वस्तुनागस्य मन्त्रतः ॥
भूमि पूजन – वास्तुपुरुष का आह्वान वेदमंत्रों से करें तथा अपनी मूल भावना के अनुसार पूजन करें आवाहन का अर्थ – “मै भूमि में अधोमुखस्थित वास्तु पुरुष रूपी वास्तुनाथ जो कि जगत के प्राण हैं तथा पूर्व ईशान दिशाओं में प्रथम आश्रित हुए हैं, उनका आवाहन करता हूँ।”
इसके अतिरिक्त ‘विष्णोरराटमसि’ इस मंत्र से सर्पनायक की पूजा करें, नमोस्तु सपेभ्यो इस मन्त्र से भी पूजा की जा सकती है। या दोनों से की जा सकती है।
फिर वास्तुपुरुष के कुक्षिप्रदेश में नागमंत्र के उच्चारण (नमोस्तु सारेभ्यो0) से खुदाई आरम्भ करन चाहियें।
भूमि पूजन में भूखाण्ड की पवित्रता का विचार-भवन की नींव खोदने के लिए सर्वप्रथम आठों दिशाओं की शुद्धि का विचार आवश्यक रूप से कर लिया जाना चाहिए। यहाँ भूखण्ड से अर्थ है वर्गाकार या आयताकार भूखण्ड; क्योंकि इसी आकार में दिशा-निर्देश का प्रमाण होता है। दरअसल भूखण्ड या गृह भूखण्ड भूमि का भाग वह होता है, जिस पर गृह का निर्माण कार्य किया जाता है। घर के आगे-पीछे की पृष्ठभूमि या रिक्त भूमि, भू-खंड के अंतर्गत नहीं आती हैं। और भूमि पूजन करते समय दिशाओ का ध्यान रखें।
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FAQ –
नींव में को नाग-नागिन रखकर यह माना जाता है कि जिस प्रकार शेष नाग ने पृथ्वी को संभाला हुआ है उसी प्रकार शेष नाग उनके भवन को भी संभाल कर रखेंगें। भवन सुरक्षित और दीर्घायु होगा। इन सामग्री के द्वारा चावल, हल्दी, रोली, मोली, नारियल, सरसों, चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा, 5 कौड़ियां, 5 सुपारी, लाल वस्त्र, घास, बताशे, पंच रत्न और पांच नई ईंटें, पांच कलश रखना व पूजन करना शुभ माना जाता है।
प्रश्न – भूमि पूजन कब नहीं करना चाहिए?