भूमि पूजन विधि –
इस पृथ्वी पर उचित रूप से निवास बनाने, नया निर्माण करने या नींव खुदवाने का कार्य शुरू करने से पहले हमें नियम अनुसार भूमि पूजन करने के उपरांत उस भूखंड या भूमि से आज्ञा लेकर ही कार्य आरम्भ करना चहिये। पूजन के दौरान भगवान गणेश जी व भगवान विष्णु के साथ प्रकृति के पांच तत्वों की भी पूजा की जाती है, जो एक नए घर के निर्माण की शुरुआत से पहले भूमि पूजन देवी-देवताओं के सम्मान स्वरुप किया जाता है।
भूमि पूजन विधि में मुहुर्त व नक्षत्रों का ध्यान आवश्यक – चौथ, नौवमी और चौदस तिथि को भूमि पूजन न करें, अगर इन तिथियों में कोई अच्छा योग बन रहा है तो किसी अच्छे विद्वान पंडित से पूछकर ही इन तिथियों का चयन करें। क्योंकि ये तिथियाँ किसी भी शुभ कार्य के लिये त्याज्य हैं, अतः गृह निर्माण या भूमि पूजन के लिए भी शुभ नहीं मानी जाती हैं। भूमि पूजन और गृह निर्माण शुरू करने के लिए शुभ तिथियों का चयन करते समय, यह जांचना चाहिए कि क्या वह महीना शुभ है, जिसमें शुभ मुहूर्त, तिथियाँ और अगर कोई त्रुटी न हो तो (अश्विनी, चित्रा, मूल, रेवती) , ध्रुवनक्षत्र, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्र, स्वाति, पुष्य ,धनिष्ठ, शतभिषा, हस्त, मूल तथा पुनर्वसु नक्षत्र शामिल हैं। इसलिए घर बनाने के लिये नींव की खुदाई से पहले अच्छे विद्वानों से शुभ-मुहुर्त अवश्य जान लें।
पंडित और वास्तु शास्त्री की परामर्श ले कर पहले यह निश्चित कर लें नींव खुदाई किस दिशा से आरम्भ की जाय, इसके निश्चय के लिये राहू का मुख, पीठ एवं पुच्छ किस दिशा में स्थित है उसके बाद ही भूमि पूजन व नींव खुद्वानी चाहिये। नींव खोदने में वास्तु शास्त्री की परामर्श से चिन्हित स्थान जिस गृह नक्षत्र में वास्तु पुरुष का शरीर भेदन न हो उस स्थान या बिंदु से ही नींव खोदना आरंभ करना चाहिये।
अतः खुदाई उस स्थान से हो जहाँ पर राहू का कोई अंग पीड़ित न हो। यदि सभी कार्य सही समय और सही विधि से कियें जाए, तो इससे भूमि पर बिना किसी परेशानी के काम पूरा हो जाता है। और इसमें रहने वाले लोगो को सदैव सुख़-समृद्धि प्रदान होती है। इसमें कोई संशय नही।
भूमि पूजन शिलान्यास के लिए दिशा-निर्देश
भूमि पूजन या गृह निर्माण के दौरान रखी जाने वाली पहली नींव को शिलान्यास कहते हैं। वास्तु के अनुसार, नींव खोदने के लिए सही स्थान और सही समय का पता लगाना जरूरी है। नींव शुभ मुहूर्त और घर के मालिक के नाम के आधार पर चुनी जाती है।
नींव खुदवाने से पहले कुछ आवश्यक बातो का रखें ध्यान – वास्तुशास्त्र हमें इस बात के लिए सावधान करता है की घर बनाने के लिए भूमि पूजन नींव की खुदाई किस दिशा से शुरू की जाये इसके निश्चय के लिए राहू के मुख, पीठ, एवं पूछ की स्थिति उस भूखण्ड में किस उप दिशा में एवं दिशा में हैं – यह जान लेना आवश्यक है,
ऐसा कहा गया है। राहू सर्प के आकार में प्रत्येक भूखंड में अपने शरीर को शिर से पैर तक प्रसारित कर लेटा रहता है। उसकी स्थिति सूर्य की तीन-तीन राशियों के भोग के उपरांत बदलती रहती हैं। यह सौर राशियों की गणना स्थिर राशियों से प्रारंभ की जाती है। अतः वास्तुशास्त्र हमें सावधान करता है कि खनन प्रारंभ करते समय उस सर्पाकार राहू के किसी अंश अंग पर प्रहार न हो जाये। ऐसा होने पर गृह स्वामी का अनिष्ट होता है। अतः खुदाई उस स्थल से आरम्भ हो, जहाँ पर राहू के शरीर का कोई अंग पीड़ित न हो।
अपने नए घर की नींव व भूमि पूजन करते समय भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान को पूजा जाता है। क्योंकि इन्होंने ही अपने फन पर पृथ्वी को संभाला हुआ है। भूमि पूजन के समय नींव में चांदी के नाग-नागिन की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना होता है।
नींव में नाग-नागिन रखकर यह माना जाता है कि जिस प्रकार शेष नाग ने पृथ्वी को संभाला हुआ है उसी प्रकार शेष नाग उनके भवन को भी संभाल कर रखेंगें। भवन सुरक्षित और दीर्घायु होगा।
यह राहू गृह-निर्माण हेतु सिंहादी तीन राशि के क्रम से ईशानादि कोणों से उल्टा चलता है। जिस दिशा में राहू का मुख होता है, उससे पिछली दो विदिशाओ में क्रमशः पीठ तथा पुंछ होती है। जैसे की सिंह, कन्या, तुला राशियों के निरयन सूर्य में राहू का मुख ईशान कोण में होता है तब उसकी पीठ वायव्य में तथा पूंछ नैऋत्य (दक्षिण पश्चिम) कोण में होती है। यह दिशाए भूखंड के मध्य से देखनी चाहियें।
यहाँ यह स्मरणीय है कि भूखंड में नींव खोदनें का प्रारम्भ सदैव मुख्य दिशाओं (पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण) से न होकर इशानादी दिशाओं (कोणों) से होता है। बस नींव की खुदाई का आरंभ राहू के मुख तथा पूंछ वाली प्रष्ठभूमि से आरम्भ न कर खाली दिशा या कोण से आरम्भ करें ।
खननारम्भ मुहुर्त
अधोमुख नक्षत्रों (मूल,श्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी) पूर्वाआषाढ़, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, भरणी, कृतिका,नक्षत्रों में शुभ दिन(सोमवार, बुधवार, गुरुवार,तथा शुक्रवार) में जब कर्ता को चंद्रबल तथा ताराबल प्राप्त हो तब खनन प्रारम्भ करना शुभ है।
विमर्श — अधोमुख नक्षत्रो(अर्थात भूमि के नीचे के स्वामी) में वापी, कूप, तालाब, तहखाना, गर्तखन्न, निधिखन्न, तथा खान में प्रवेश आदि शुभ है।
मार्गशीर्ष तीन-तीन सौर मासों अर्थात वृश्चिकादि के सूर्य में पूर्व-दक्षिण पश्चिम-उत्तर दिशाओं में क्रमशः राहू रहता है। अतः राहू की दिशा में यदि स्त्म्भारोपण किया जाय तो वंश विनाश, द्वार करने पर अग्नि भय, यात्रा करने पर, कार्य हानि तथा गृहारंभ करने पर कुलक्षय होता है।
मतान्तर से दिशा राहू का विचार
दिग राहू चक्र
पूर्व दिशा में | दक्षिण दिशा में | पश्चिम दिशा में | उत्तर दिशा में | दिग्राहु की दिशा |
वर्श्चिक-धनु-मकर | कुम्भ-मीन-मेष | वृष-मिथुन-कर्क | सिंह-कन्या-तुला | सूर्यराशि में |
वंश विनाश | वंश विनाश | वंश विनाश | वंश विनाश | स्तंभ निवेश का फल |
अग्निभ्य | अग्निभ्य | अग्निभ्य | अग्निभ्य | द्वार निवेश का फल |
कार्यहानि | कार्यहानि | कार्यहानि | कार्यहानि | यात्रा का फल |
कुलक्षय | कुलक्षय | कुलक्षय | कुलक्षय | ग्रहारम्भ फल |
रविवार आदि दिनों में क्रमशः दक्षिण-उत्तर आग्रेय-पश्चिम-दक्षिणी तथा वायव्य दिशाओं में राहू रहता है। मूलतः इन दिशाओं में उक्त वारों में गमन करना तथा गृह निर्माण वर्जित है।
यह राहु सिंहादि तीन सौर मासों में अग्निकोण में कुक्षि के आश्रित होता हैं, अतः इसी प्रकार ‘खन्नन कर्म करना चाहिये।
गृहनिर्माण हेतु नक्षत्र चयन
गृहारंभ के जो नक्षत्र है, उनमे से नक्षत्र का चयन करें। नक्षत्रों का न्यास सप्त शलाका विधि से करें। चन्द्रमा तथा वास्तु (गृहनिर्माण) का अग्र तथा पृष्ठ भाग में श्रेष्ठ नहीं होता है। लग्न तथा नक्षत्र दोनों से विचारा गया चन्द्रमा शीघ्र फल देता है।
गृहनिर्माण में चन्द्रमा की दिशा का फल
गृहनिर्माण में चन्द्रमा सम्मुख तथा पृष्ठ पर शुभ नहीं होता है। उनमें तो चन्द्रमा वाम तथा दक्षिण होना चाहिये।
विमर्श: – यद्यपि गृहारंभ रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराअषाढ़, उत्तराभाद्रपद, इन्ही नक्षत्रों में करना चाहिये परन्तु इन नक्षत्रों के चयन में घर का द्वार जिस दिशा में रखना है उसके अनुसार पूर्व में दिए गए दिग्द्वार नक्षत्र चक्र के अनुसार शुभता-अशुभता का ध्यान भी रखना परमआवश्यक।
विमर्श:
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- पूर्व-पश्चिम दिशावाले मुख्यद्वार के लिए शुभ नक्षत्र — उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरभाद्रपद, रेवती ।
- उत्तार्-दक्षिण दिशा में द्वार के लिए शुभ नक्षत्र — रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, उत्तराअषाढ़, अनुराधा ।
गृहनिर्माण से पूर्व नींव खोदने की विधि
सर्वप्रथम लोहदंड (सब्बल, कुदाली, फावड़ा, या लम्बी खुरपी) आदि उपकरण जिससे भूमि खोदनी हो तथा भैरव का पूजन करें, फिर दिग्पालों का पूजन करें, फिर पृथ्वी का पूजन तथा नमस्कार करते हुवे उमासहित भगवान शिव का ध्यान करें।
भूमि पूजन शुभ मुहूर्त कैसे चुनें?
गृह आरम्भ के लिये कालनिर्णय जिसको जानकार गृह का निर्माण कार्य प्रारम्भ करना चाहिये।
गृह आरम्भ हेतु काल के स्थूल अवयवो को पीछे बताया गया है। वहाँ गृह आरम्भ हेतु अयन-ऋतू-मास आदि का वर्णन है। अब सूक्ष्म अवयवो नक्षत्र, मुहर्त, लग्न आदि का विवरण देखते है।
गृह आरम्भ मृदु नक्षत्र | (अश्विनी, चित्रा, मूल, रेवती) , ध्रुवनक्षत्र, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्र, स्वाति, पुष्य ,धनिष्ठ, शतभिषा, हस्त, मूल तथा पुनर्वसु । |
शुभ मास | पौष, वैशाख (बैसाख), अग्रहायण, फाल्गुन, श्रावण, कार्तिक, माघ और भाद्रपद |
शुभ वार | सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार(रविवार, मंगलवार छोड़कर) |
शुभ तिथि | द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी त्रयोदशी तथा पूर्णिमा
(प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमीं को छोड़ कर) |
शुभ लग्न | वृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या, वृषिका, धनु और कुंभ |
नींव पूजन या शिलान्यास के लिए शुभ नक्षत्र | उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्र, और रोहिणी, |
गृह निर्माण के को लिए शुभ नक्षत्र | मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा, धनिष्ठा, हस्त और पुष्य |
दूषित ग्रहों की पूजा का कथन
जो ग्रह सूर्य के समीप में आने से अस्त हो या अपनी नीच राशि में स्थित हों, या सत्रु राशिगत हों या बालत्व दोष या वृद्धत्व दोष को प्राप्त हों अथवा वक्री या अतिचारी हों अथवा शत्रुग्रह से दृष्ट हों अथवा उल्कापात से दूषित हों तो उस ग्रह के गोचर में अनुकूल स्थान में होनें पर भी उसकी पूजा करके ही गृहारंभ करना चाहिये ।
गृह आरम्भ में अशुभ तिथियाँ – प्रतिपदा (विशेषकर शुक्लपक्ष) में गृह आरम्भ करने से दरिद्रता प्राप्त होती है। चतुर्थी में धनहरण होता है। अष्टमी में बनाने वाले तथा कारीगर एवं मजदूरो का मन उचट जाता है। जिसके कारण कार्य पूर्ण में बाधा उत्पन्न हो जाती है। नवमी तिथि में श्स्त्रघात का भय होता है । अमावस्या में राजभय तथा चतुर्दशी में पुत्र एवं पत्नीआदि की विनाश होता है।
गृह-निर्माण में की कृष्ण-पक्ष में षष्ठी तिथि से लेकर शुक्ल-पक्ष की षष्ठी पर्यन्त तिथियाँ त्याग दें। इसी प्रकार गंड-नक्षत्र, सूर्य-संक्रांति का दिन, रविवार एवं मंगलवार, मासदग्ध तिथियाँ, भाद्रकरण, व्यतिपात तथा वैधृति योग (गणितागत क्रन्तिसाम्य) – इन सबको त्याग देना चाहिये ।
धनिष्ठआदि पञ्चक का विचार
धनिष्ठ, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन पांच नक्षत्रो में स्तंभ खम्बे या पिलर की स्थापना नहीं करनी चहिये, किन्तु इन पांच नक्षत्रो में अर्थात पंचक में सूत्रधार (राजमिस्त्री, कारीगर) को बुलाकर शिलान्यास तथा प्रकारादी परकोटे, चारदीवार, आदि का निर्माण किया ज सकता है।
धनिष्ठ, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन पांच नक्षत्रो में गृह आरम्भ प्रशस्त कहे ही गयें है अतः, घर पर छत डालना, चोखट-बाजु, पटना आदि लगाने में ही पंचक वर्जित होता है। नींव लगाने में पंचक का विचार नहीं होता है।
गृहारंभ मुहुर्त हेतु लग्नशुद्धि
गृहारंभ में चर लग्न तथा चरनवांश सर्वथा त्याज्य हैं। जब कर्ता के जन्म राशि या लग्न से उपचय स्थानों में लग्न हो, उसमें गृहआरम्भ करें, परन्तु गृहारंभ लग्न से अष्टम भाव में कोई गृह न हो तथा जन्म लग्न एवं राशि से आठवीं लग्न एवं राशि भी गृहारंभ के समय नहीं होनी चाहिये।
गृहारंभ लग्न कुंडली में पापग्रहों को 3/6/12 भाव स्थानों में होना चाहिये तथा शुभग्रह केंद्र एवं त्रिकोण में हो तब बुद्धिमान पुरुष गृह-निर्माण आरम्भ करे। यदि गृह-निर्माण लग्न से आठवें भाव में पापग्रह हों तो गृहस्वामी क्षेम होता है।
सौ वर्ष की आयु के गृह का योग
यदि गृहारंभकालीन लग्न में गुरु बैठा हो, सूर्य छ्ठे भाव में हो, बुद्ध सप्तम में हो, सुकर चौथे में तथा शनि तीसरे घर में हो तो ऐसे योग में निर्मित गृह की आयु एक सौ(100)वर्ष होती है।
गृह की अस्सी वर्ष की आयु का योग
जिस गृह का निर्माणकार्य चतुर्थ भाव में गुरु, दशम में चन्द्रमा तथा ग्यारहवे भाव में मंगल एवं सूर्य होने पर प्रारम्भ हो उसकी आयु अस्सी वर्ष होती है।
गृहारंभ के शुभ योग
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- यदि गृहारंभ के समय चंद्रमा कर्क लग्न में तथा गुरु केंद्र में बैठा हो तथा अन्य मित्रक्षेत्री, स्वक्षेत्री आदि हों तो इस योग में निर्मित गृह में लक्ष्मी का निवास चिरकाल तक रहता है।
- पुष्य, उ फा, उ अषाढ़ा, उ भा, श्लेषा, मृगशिरा, श्रवण, रोहिणी, पूर्वाषाढा, शतभिषा, इनमें निर्मित गृह लक्ष्मी से युक्त होता है।
- विशाखा, चित्रा, आद्रा, पुनर्वसु, धनिष्ठा, शतभिषा तथा शुक्रवार में निर्मित गृह धन-धान्यप्रद होता है।
- हस्त, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा अश्वनी, अनुराधा, – इन नक्षत्रों में तथा बुधवार में निर्मित गृह धन-पुत्र तथा सुख़ देनेवाला होता है।
लक्ष्मी विनाशक योग
यदि गृह आरम्भ करते समय लग्न से छठेभव में नीच अथवा पराजित ग्रह स्तिथ हो तो इस योग में बनने वाले गृह की लक्ष्मी(धन) नष्ट हो जाता है।
गृह निर्माण में वर्जित योग
यदि कर्ता पुरुष की कुंडली में जिस ग्रह की दशा चल रही हो वह निर्माण समय में निर्बल हो तथा उसके वर्ण का स्वामी ग्रह निर्बल हो साथ ही सूर्य पीड़ित हो तो गृह निर्माण न करें।
कृपण योग
यदि गृहारंभ के समय – ज्येष्ठा, अनुराधा, पूर्वाषाढा, पूर्वाफाल्गुनी, भरणी, स्वाति, पूर्वाभाद्रपद, धनिष्ठा –इन नक्षत्रों में कोई नक्षत्र हो तथा शनिवार हो तो यह कृपण योग होता है किन्तु उसमें उसमें जन्म लेने वाले बालकों को यक्ष-राक्षस(भुत-प्रेत) आदि लगते रहते हैं।
गृहारंभ में विभिन्न बातों का फल
- यदि लग्न भाव में मकर, वृश्चिक, कर्क लग्नों में गृहारंभ किया जाये तो गृहस्वामी की हानि होती है।
- मेष, तुला, धनु, इनमें से किसी लग्न में हो तो मकान बनने में देर होती है।
- कन्या, मीन, मिथुन लग्नों में धनलाभ होता है।
- कुम्भ, सिंह, तथा वृष लग्नो में सफलतादायक होता है।
ग्रहों की उच्चादि स्थितियों से फल में भिन्नता
- जो ग्रह अपनी उच्च राशि में होता है, वह अपना शुभ-अशुभ फल पूरा देता है।
- जो ग्रह स्वराशी में होता है वह पादोन(पौना-तीन-चौथाई=3/4) शुभ-अशुभ फल देता है।
- जो ग्रह अपने मूल त्रिकोण में होता है वह अपने शुभ-अशुभ फल का आधा फल देता है।
- जो ग्रह मित्र राशि होता है, वह अपने शुभाशुभ फल का पादांश(चतुर्थांश=एक चरण=1/4=0.25) शुभाशुभ फल किसी भाव में देता है।
- समराशिगत ग्रह समफल तथा
- शत्रु राशिगत ग्रह कष्ट फल देता है।
- नीच राशिगत ग्रह निष्फल होता है।
- वर्गोत्तम ग्रह श्रेष्ठ फल देता है।
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भूमि पूजन में कलश स्थापना तथा उस पर देवादि का आवाहन पूजन
∼ कलश स्थापना ∼
तत्र कुम्भं निवेश्यादौ हेमगर्भं जलैर्युतम।
सर्वधान्ययुतं सर्वगन्धसर्वौषधैर्युतम् ॥ 89 ॥
पुष्पान्वितं रक्तवर्णं सवस्त्रं मंत्रमंत्रितम्।
तस्मिन्नावाहयेत् खेतान वरुणप्रमुखांस्तथा ॥ 90 ॥
तस्मिन्नावाहयेद् भूमिं सशैलवनकाननम्।
नदीनदसमायुक्तां कर्णिकाभिश्च भूषितम् ॥ 91 ॥
सागरैर्वेष्टितां दिक्पालाय पूज्येत्प्रार्थयेत्ततः।
कुलदेवीन्श्च देवान्याक्षस्तथोरगान् ॥ 92 ॥
बालिञ्च दत्तवा विधिवज्जलयेति जपेत्ततः।
षडऋचं रुद्रजापञ्च कार्ययेद् विधिपूर्वक ॥ 93 ॥
तस्मिन्सम्पूजयेद् वास्तु प्रार्थयेत् पूजयेत्ततः।
भूमि पूजन भूमि पूजन की सम्पूर्ण विधि, भूमि पूजन मन्त्र – सर्वप्रथम एक छिद्ररहित कलश में स्वर्णधातु डालकर उसमें जल भर दें। उसी में सर्वधान्य, सर्वगंध, सर्वौषधि, पुष्प डालकर रक्तवर्ण के वस्त्र से कलश को वेष्टित कर दें। फिर मंत्रोच्चारित नवग्रहों, वरुणादि देवताओं का उस कलश पर आह्वान करें। एक ही समय में पर्वत, वन, नदियाँ, नदी और कर्णिका सहित पृथ्वी का आवाहन करें। सागर से वेस्टित पृथ्वी देवी की पूजा तथा प्रार्थना करें, दश दिक्पालों, कुलदेवी, कुलदेवता, यक्ष तथा नागों की पूजा करें तथा उन्हें बलि(भोग) विधि से ‘जलाय’ मंत्रों, षडऋचाओं तथा रुद्रसूक्त का जाप करें। फिर अंत में उस कलश पर वास्तुदेवता की पूजा और प्रार्थना करें ॥
∼ वास्तुप्रार्थना मंत्र ∼
ॐ नमो भगवते वास्तुपुरुषाय कपिलाय च ॥
पृथ्वीधरा देवाय प्रधानपुरुषाय च।
सकलगृहप्रसादपुष्करोदयनकर्मणि॥
गृहारम्भप्रथमकाले सर्वसिद्धिप्रदायक।
सिद्धदेवमनुष्यश्च पूज्यमान् दिवानीषम् ।।
गृहस्थाने प्रजापतिक्षेत्रेऽस्मिन्स्तिष्ठ संप्रतम्।
इहागच्छ इमां पूजां गृहाण वरदो भव ॥
वास्तुपुरुष नमस्तेऽस्तु भूमिशायारत प्रभो।॥
मद् गृहं धनधान्यदिसमृद्धं कुरु सर्वदा ॥
भूमि पूजन मंत्र का अर्थ- हे कपिलवर्ण के वास्तुपुरुष! पृथ्वी को धारण करनेवाले प्रधान पुरुष ! आपको नमस्कार है। आप सभी प्रकार के भवन, प्रसाद, उद्यानादि-निर्माण के कार्यों में तथा गृहारंभ के प्रथम काल में संपूर्ण सफलता को प्रदान करते हैं। आपके सिद्ध, देवतागण और मनुष्य रात्रि-दिन की पूजा करते हैं। आप यहां इस गृह निर्माण के उद्देश्य से भूमि पर प्रजापति के क्षेत्र में इस समय (इस अवसर पर) आकर विराजमान हों तथा यहाँ आकर इस पूजा एवं बलि आदि को स्वीकार करने की कृपा करें।
हे वास्तुपुरुष! आपको नमस्कार है, आप भूमि की शैया पर शयन कर रहे है। हे प्रभु। आप मेरे इस गृह को धन-धान्य से सर्वदा समृद्ध करते रहें।
इस प्रकार से प्रार्थना करके भूमि पर वास्तुपुरुष की मूर्ति का लेखन आटे से या चावल से करेंI
वास्तुपुरुष नाग जैसे आकार का बनायें।
वास्तुपुरुष का आवाहन व पूजन तथा नींव की खुदाई
आहयेद् वेदमंत्रैः पूज्येच्च स्वशक्तितः।
मन्त्र-“आवाहयाम्यहं देवं भूमिस्थं च अधोमुखम् ॥ 100 ॥
वास्तुनाथं जगत्प्राणं पूर्वस्यां प्रथमाश्रितम्।”
विराश्रतेति मंत्रेण पूज्येत्सर्पनायकम् ॥
नमोस्तु सारेभ्यो इति वा पूज्येत्सस्वशक्तितः।
कुक्षिप्रदेशे निखनेद्वस्तुनागस्य मन्त्रतः ॥
भूमि पूजन – विश्वकर्मा प्रकाश द्वारा वास्तुपुरुष का आह्वान वेदमंत्रों से करें तथा अपनी मूल भावना के अनुसार पूजन करें आवाहन का अर्थ – “मै भूमि में अधोमुखस्थित वास्तु पुरुष रूपी वास्तुनाथ जो कि जगत के प्राण हैं तथा पूर्व ईशान दिशाओं में प्रथम आश्रित हुए हैं, उनका आवाहन करता हूँ।”
इसके अतिरिक्त ‘विष्णोरराटमसि’ इस मंत्र से सर्पनायक की पूजा करें, नमोस्तु सपेभ्यो इस मन्त्र से भी पूजा की जा सकती है। या दोनों से की जा सकती है।
फिर वास्तुपुरुष के कुक्षिप्रदेश में नागमंत्र के उच्चारण (नमोस्तु सारेभ्यो0) से खुदाई आरम्भ करन चाहियें।
भूमि पूजन में भूखाण्ड की पवित्रता का विचार– भवन की नींव खोदने के लिए सर्वप्रथम आठों दिशाओं की शुद्धि का विचार आवश्यक रूप से कर लिया जाना चाहिए। यहाँ भूखण्ड से अर्थ है वर्गाकार या आयताकार भूखण्ड; क्योंकि इसी आकार में दिशा-निर्देश का प्रमाण होता है। दरअसल भूखण्ड या गृह भूखण्ड भूमि का वह भाग होता है, जिस पर गृह का निर्माण कार्य किया जाता है। घर के आगे-पीछे की पृष्ठभूमि या रिक्त भूमि, भू-खंड के अंतर्गत नहीं आती हैं। और भूमि पूजन करते समय दिशाओ का ध्यान रखें। https://divinepanchtatva.com/ द्वारा बताई गयी सभी जानकारियाँ विश्वकर्मा प्रकाश व अपराजितापरीछा से ली गयीं है अतः आशा है की आप घर बनाने से पूर्व दी गयी बातों का ध्यान रखें। क्योंकि कार्य के आरम्भ में ही कार्य के अंत का परिणाम छुपा होता है।