वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – जिस प्रकार ‘आत्मा ‘ का स्थान शरीर में है, उसी प्रकार से व्यक्ति का निवास स्थान गृह में होता है। अतः गृह वास्तव में मनुष्य की काया या व्यक्तित्व का शरीर ही है। वास्तु का अर्थ है निवास के लिए सही भवन और शास्त्र का अर्थ है अध्ययन।
हिंदू संस्कृति का मूल ज्ञान, ही “विज्ञान” से ओतप्रोत है। जिसमे परम्परागत स्थापत्य कला और शिल्प से सम्बन्धित वैदिक ज्ञान, वास्तु के नाम से जाना गया। इसी श्रंखला में छ्टे वेदांग, यानि ज्योतिष का महत्वपूर्ण स्थान है। असत से सत् तक ले जाने वाली ज्योति-इश, ईश्वर की ज्योति ही ज्योतिष कहलाई और इसे वेदों का नेत्र माना गया। इस ब्लॉग वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या के अनुसार गृहनिर्माण में पूजनीय गुरु देव द्वारा प्राप्त अपने अल्प ज्ञान से संक्षिप्त में वास्तु एवं ज्योतिष को नियम अनुसार वर्णन किया है इस विषय की प्रेरणा हमें विश्वकर्मा प्रकाश, अपराजिता पृच्छा व अन्य गुरुजनों से मिली है। अगर मेरे लेखन में कोई गलती हुई हो तो कृपया मार्गदर्शन दें।
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या के अनुसार गृहनिर्माण व शिलान्यास मुहुर्त
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – ज्योतिष तथा वास्तु का आपस में निकटम परस्पर संबंध है अगर आम भाषा में कहा जाये तो ज्योतिष और वास्तु एक ही सिक्के के दो पहलु है। क्योंकि ज्योतिष ही तय करता की हमें कैसे घर में जन्म मिलेगा और (घर)वास्तु तय करता है की हमारे जन्म के समय जन्म पत्री में कोन से ग्रह किस भाव में किस स्थान पर मिलेंगे। परन्तु जब किसी जातक की महादशा-अन्तर्दशा आदि अशुभ होती है तो यह वास्तु कुण्डली की दशाओं को पुर्णतः प्रभावित करता है। जैसे की महादशा-अन्तर्दशा आने पर उस उचित स्थान से उन दशाओं ग्रहों की वस्तुओं को हटा देने मात्र से वास्तु और ज्योतिष के उपायों से सफलता पा सकते है। इस विषय पर चर्चा के पूर्व पहले देख लें कि हिन्दू माह के अनुसार सूर्य कौन सी राशि में है और कौन सी ऋतू चल रही है। मुहुर्त एक सामान्य नियम है किसी भी शुभ कार्य के लिए (जैसे वास्तु शिल्प ) के लिए उत्तरायण, पवित्र मास, शुक्ल पक्ष, नक्षत्र शुभ तिथि शुभ दिवस गुण सहित दिवस होना चाहिये।
- अपराजिता पृच्छा श्री भुवेनदेव की रचना है जो वास्तु का वृहद ग्रन्थ और शिल्प ज्ञान का श्रोत है।
- विश्वकर्मा प्रकाश (2/7, 18, 19) विश्वकर्मा कृत
- समरांगणसूत्रधार, (48/6, और 7) शिल्प और शिल्पियों का बेहतरीन विवरण राजाभोज कृत
- (मंडन) (1/7) राजवल्लभ कृत
ज्योतिष तथा वास्तु के मध्य बहुत निकट का संबंध है —
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – ज्योतिष तथा वास्तु के मध्य बहुत निकट का संबंध है मनुष्य ईश्वर(प्रकृति) द्वारा निर्मित एक अद्भुत कृति है। गृह-निर्माण आरंभ करने से लेकर, उसमें प्रवेश करने तक हर कदम पर उचित मुहुर्त का निर्धारण किया जाना चाहिये। अन्यथा मनोरथ सिद्ध नहीं होते, क्योंकि कार्य प्रारम्भ होने पर ही ईश्वर उस कार्य की नियति तय कर देतें हैं। इसीलिये कार्य की प्रकृति से मेल न रखने वाले निषेध समय का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिये।
घर या इमारत के वास्तु की जागृति लगभग 21 माह, 7 वर्ष, या 15 वर्ष तक हो जाती है। इसे क्रमशः बाल्य अवस्था, युवा अवस्था, व पूर्ण अवस्था के रूप में देखा जाता है अर्थात 15 वर्ष की अवधि के बाद ही घर के सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
इस आधुनिक युग में वास्तु शास्त्र पर आधारित मकान का बनना लगभग लुप्त हो रहें है। वास्तुकला के नाम पर अर्किटेकचर जो नक़्शे बनाते है वह देखने में कुछ दिन सुन्दर लगते है परन्तु उनमे वास्तु के नियमो का प्रयोग नहीं किया जाता। इसलिए अधिकांशत: घर वास्तु दोष युक्त होतें हैं। क्योंकि आजकल मकान अजीब डिजाईन के बन रहे है। और कुछ नईं बिमारियाँ सुनने को मिलती हैं जैसे की संतान न होना, समय से पहले प्रसव होना ,बैक पेन, व्यपार में हानि , आदि हम इन्हें पूर्व जन्मो का फल मान कर दुखी होते रहते हैं जबकि यह समस्याएँ वास्तु दोष से उत्पन्न हो रही हैं। जिसका की थोडा स्थान में हेर-फेर कर समस्या का निवारण किया जा सकता है।
आइये पहले जान लेते है वास्तु का उपयोग
वैदिक वास्तु और मॉडर्न वास्तु उपयोग
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण — वास्तु शास्त्र का अर्थ जिससे मानव जीवन को सुख़ समृद्धि प्रदान की जा सके। जीवन पर निर्मित वातावरण के प्रभाव का वैदिक अध्ययन भी वास्तु शास्त्र कहलाता है। इसमें कुछ विद्वानों का अपना मत है की वैदिक वास्तु और मॉडर्न वास्तु में मॉडर्न वास्तु सरल हैं और दोनों एक ही है। और ज्यादा जल्दी परिणाम देता है। इसमें मेटल्स का प्रयोग कर वास्तु दोषों का उपचार किया जा सकता है। वैदिक वास्तु 16 दिशायें व 45 देवता को बलि देने अर्थात जैसे कुछ विशेषः सामग्री का भोग देना या उन्हें संतुलित करने से है। और वही मॉडर्न वास्तु में मेटल(धातु) का उपयोग कर दोष का उपाय किया जाता हैं। दोनों पद्धतियों का परिणाम वास्तु दोषों को दूर करना है।
16 दिशायें
- जैसे — अग्नि(South) के स्थान पर रंग लाल, तांबा धातु,
- जल(North) — रंग नीला, अल्मीनियम धातु का उपयोग,
- वायु(East) — हरा रंग, स्टेनलेस स्टील
- पृथ्वी(SW) — को पीले रंग, धातु ब्रास
- आकाश(West) — सफ़ेद और ग्रे रंग, धातु आयरन/माइल्ड स्टील है।
उस स्थान पर इनका प्रयोग करके वास्तु का संतुलन बनाया जाता है। दोनों ही पद्धतियों का महत्व एक ही है वास्तु में उपाय करना व वास्तु के संतुलन को बनाये रखना।
वास्तु में दिखाई देने वाले प्रभाव –
- अगर आप कुछ चीज खरीदते हैं जब आप घर पहुचते हैं तो आपको महसूस होता है कि आपने यह खरीदारी बेवजह की इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी।
- दूसरी तरफ आपको नये कपड़े खरीदने का मन है आपको उनकी जरुरत है खरीदारी के सही बजट, डिज़ाइन और ब्रांड को लेकर आपका नजरियाँ साफ़ नहीं है। और वापस आ जाने के बाद आपको एहसास होता है कि आपको यह खरीद लेना चाहिये था। बस यही उर्जाओ के खेल है।
हालाँकि आपका संचालन ग्रहों, पृथ्वी के प्रभावों, भूमि एवं आपके घर में वातावरण को आकार देने वाली उर्जा से होता है। फिर भी आप स्वयं के मास्टर है और अपना भाग्य खुद बनाते हैं। आप भाग्य को बदलने वाली शक्तियों और उनके प्रयोग को समझने के साथ अपने वर्तमान एवं भविष्य को स्वयं मनचाहा रूप दे सकते है और एक बेहतर जीवन का निर्माण कर सकते है।
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहा है कि किसी क्षेत्र की भगौलिक स्थिति वहाँ की जमीन, नदियाँ, पहाड़ आदि का वहाँ रहने वाले निवासियों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है, तो इसका जवाब है: हाँ क्योंकि
- कुछ विशेष स्थानों पर रहने वाले लोगों का सोचने और व्यवहार का तरीका बेहद आक्रामक होता है
- तो कुछ स्थानों पर रहने वाले लोग डरपोक किस्म के होतें हैं।
- कुछ लोग घुमने-फिरने के शौकीन होतें हैं उन्हें देखना और समझना अच्छा लगता है।
- कुछ लोगो का रुझान कला कि ओर अपने आप स्वतः ही होता है।
- यही वह मूल कारण है की लघु रूपांतरण पर सबसे ज्यादा रिसर्च कार्य जपान में हुए हैं।
- तकनीकी विकास कार्य अधिकतर जर्मनी में ही किये जाते हैं।
- भविष्य की नई-नई तकनीक सिलिकोन वैली में ही निर्मित होती है।
- विश्व की बेहतरीन फार्मास्युटिकल्स कंपनियां स्विट्जरलैंड में ही क्यों स्थित हैं।
- अधिकतर लोग शादी के बाद घुमने स्विटज़रलैंड ही जाना पसंद क्यों करते हैं।
बहुत शोध होने के पश्चात लम्बे वर्षो से रह रहे लंदन के भारतीय लोगों को देखा गया तो बड़ी हैरानी हुई की उन परिवारों की तीसरी पीढ़ी लंदन के लोगों जैसी ही दिखने लगी है जबकि उनके बच्चों का विवाह लंदन के स्थानीय निवासियों से नहीं भारतीय लड़के-लड़कियों से ही हुआ था। इसका अर्थ यह है की यह सब वहाँ के भौगोलिक परिदृश्य का प्रभाव है।
कुछ अन्य परीक्षाएं नीचे दी गयी हैं जो निवास लायक भूमि की और पुष्टि करती हैं :
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- देख कर महशुस करके: यदि भूमि देखने में अच्छी लगे व आँखों को सुख़ दे तो ऐसी भूमि बच्चो के लिए शुभ होती है। यदि भूमि ठोस हो तो धन कारक मानी जाती है। यदि भूमि उबड़-खाबड़ है तो यह शुभ नहीं मानी जाती है।
- भूमि पर चोट करने से उठने वाली ध्वनि: यदि भूमि पर चोट की जाये और भारी सी ध्वनि उत्त्पन्न हो ऐसी भूमि अच्छी मानी जाती है।
- वनस्पति: यदि भूमि पर भरपूर घास हो तो भुद्धिमान संतान होती है। यदि घास नर्म है तो बच्चे निडर होते हैं। और यदि फलों के वृक्ष हैं तो यह धन संपदा के लिए अच्छी मानी जाती है।
- दरार: यदि किसी भूमि में पत्थर, गड्ढे, छेद अथवा दरार हो तो वह भूमि शुभ नहीं मानी जाती।
शल्य विचार
शल्य | फल |
गाय की अस्थि | राजा या सरकार से भय |
अश्व की अस्थि | रोग |
कुत्ते की अस्थि | आंतरिक कलह, नाश |
खर(गधे की अस्थि) | हानि |
ऊंट की अस्थि | संतान हानि |
बकरे की अस्थि | अग्नि भय |
समरांगण सूत्रधार के अध्याय 8/63 और 64 के अनुसार:
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- यदि लकड़ी मिले तो आग का भय रहता है।
- यदि इंट मिले तो धन लाभ समझा जा सकता है।
- यदि पत्थर पाये जांये तो भूमि शुभ मानी जाती है।
- यदि हड्डियाँ मिले तो वंश नाश संभव है।
- यदि विषैले सरीसर्प निकले तो चोरी का भय रहता है।
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – भूखंडो की आकृति:
सामान्य तौर पर जो आकार चलन में हैं तथा बहुत ही आसानी से उपलब्ध होतें हैं उनके शुभत्व की बात नीचे क्रमानुसार की गयी है।
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- वर्गाकार भूखंड सबसे शुभ और उत्तम माना जाता है। कारण साफ़ है कि इसमें प्रकृति का संतुलन पूर्ण रूप में उपस्थित है और प्राकृतिक दिशाओं से मेल खाता है।
- आयताकार भूखंड भी शुभ माना जाता है परन्तु तभी जब लम्बाई तथा चौड़ाई में एक तय अनुपात हो जैसे कि 1:2 अत्ति-उत्तम है।
- षट्कोणीय भूखंड भी शुभ माने जाते है क्योंकि प्राकृतिक संतुलन उपस्थित है।
- वृत्ताकार भूखंड भी शुभ है क्योंकि प्राकृतिक संतुलन उपस्थित है और साथ ही यह ध्यान देना होगा कि अन्दर निर्माण भी वृत्ताकार हो।
- अष्टकोणीय भूखंड भी शुभ माना जाता है क्योंकि प्राकृतिक संतुलन उपस्थित है।
- गौमुखी-सिंहमुखी —- ये दोनों आकृतियाँ लगभग एक समान हैं परन्तु अंतर सिर्फ इतना है कि गौमुखी भूखंड में प्रवेश की भुजा संकरी है तथा सिंहमुखी की प्रवेश भुजा विस्तृत है गौमुखी को आवासीय तथा सिंहमुखी को व्यावसायिक तथा निर्माण के लिए उत्तम माना जाता है।
- अंडाकार भूखंड में रहने पर धन हानि होती है।
- विषमकोणीय भूखंड दिशायें प्राकृतिक दिशाओं से मेल नहीं खाती हैं। इसमें निवास करना अशुभ माना जाता है और हानि व मतभेद की संभावना रहती है।
त्रिकोणीय भूखंड में रहने पर संतान हानि की संभावना होती है।
1 जो भूमि देखने में मनोरम हो वह भूमि सुखदायनी होती है।
2 जिस भूमि का ढाल उत्तर-पूर्व या ईशान की ओर हो, वह भूमि वास्तु में धनप्रद होती है।
3 गंभीर शब्दवाली भूमि गंभीर आवाज वाले पुत्रों को प्रदान करती है।
4 समभूमि सुखप्रद होती है।
5 कुश(दर्भ) तथा काश से युक्त भूमि में वास्तु करने पर ब्रह्मतेज से संपन्न पुत्र उत्पन्न होतें हैं।
वास्तु में आधारभुत प्रणाली –
वास्तु विश्लेष्ण की चार मुख्य विधियाँ –
- प्रवेश द्वार का प्रभाव,
- 16 दिशा क्षेत्रो में कमरों की स्थिति,
- पंचतत्व का संतुलन व,
- वस्तुओं का प्रभाव (घर में रखी वस्तुओं)
वास्तु कैसे कार्य करता है –
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – वास्तु शास्त्र में जिस भी भू-भाग पर निर्माण करना हो उस भू-भाग को 16 वास्तु भाग में विभाजित करके देखा जाता है। हर भाग जीवन के एक विशेष पक्ष को संचालित करता है ये भाग वहाँ होने वाली गतिविधियों या संबंधित वस्तुओं, रंगों, या तत्वों के अनुसार मजबूत या कमजोर होतें हैं वास्तुशास्त्र के दर्शन में इन 16 भागो की प्राकृतिक शक्ति को पहचानना और उसी के अनुसार आपके घर या कार्यस्थल की योजना, डिजाइन या उसे सु-व्यवस्थित करना है। ताकि आपको अच्छे परिणाम प्राप्त हो सके।
जीवन में वास्तु अपना प्रभाव तीन स्तर पर दिखता है:
- शारीरिक स्तर
- मानसिक स्तर
- आध्यत्मिक स्तर
वास्तु के नियमो का पालन करते हुए हम तीनो का लाभ उठा सकते है —
- शारीरिक स्तर यानी स्वास्थ्य सबसे महत्व पूर्ण है ताकि हम जीवन के सुख़ का आनंद ले सकें और दुखो को आराम से सह सकें। यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं तो जीवन विपदा के समान प्रतीत होता है।
- मानसिक स्तर पर वास्तु का प्रभाव। वास्तव में सुख़ और दुःख के अनुभव के लिए मन की आवश्यकता है। शरीर स्वस्थ्य हो तब भी जीव को मानसिक तौर पर दुःख व तनाव सता सकते है। इसके विपरीत ,मानसिक संतोष से जीव किसी भी स्थिति में सुखमय जीवन व्यतीत कर सकता है। जीव का मानसिक स्तर पर स्वस्थ्य रहना भी नितांत आवश्यक है।
- अध्यात्मिक स्तर, जिस से अधिकतर जीव अनभिज्ञ रहते हैं। मानसिक स्तर पर क्षणिक सुख़ की अनुभूति तो होती है परन्तु वह सुख़ चिरकाल तक नहीं रहता। चिरकाल तक रहने वाला सुख़ अध्यात्मिक सुख़ है। इसकी अनुभूति होने के बाद अन्य कोई भी सुख़ इसके समान प्रतीत नहीं होता। मानसिक सुख़ बाह्य स्थितियों पर आधारित है। जबकि अध्यात्मिक सुख़ ह्रदय के भीतर से प्रस्फुटित होता है। अध्यात्मिक सुख़ बाह्य स्थितियों से प्रभावित नहीं होता।
Note — मनुष्य के जीवन में 70% समस्यायें चाहे मानसिक हो या शारीरिक, सामाजिक हो या आर्थिक, वास्तु दोष उत्पंन होने से ही आती हैं।
पंच महा भुत तत्त्व
भगवान कहते हैं की उनकी प्रकृति आठ गुणों में विभाजित है : पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, और अहंकार। यहाँ भी, भगवान ने सबसे अधिक स्थूल तत्व पृथ्वी से शुरुवात की और आकाश तक पहुचें । मन, बुद्धि और अहंकार उस क्रम में और अधिक सूक्ष्म हैं।
ॐ रूपी प्रस्फुटित नाद (ध्वनी), से पंच तत्वों की उत्पत्ति हुई जिसमें सर्वप्रथम आकाश (या अन्तरिक्ष) था
- आकाशाद्वायु: आकाश से वायु की उत्पत्ति
- वायोरग्नि: वायु से अग्नि की उत्पत्ति हुई
- अग्नेराप: अग्नि से जल की उत्पत्ति हुई
- अद्भ्य: पृथिवी: जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई
- पृथिव्या ओषध्य: पृथ्वी से जीवन रक्षक औषधियों की उत्पत्ति हुई
- ओषधीभ्योन्नम औषधियों से अन्न की उत्पत्ति हुई
- अन्नात्पुरुष: और अंत में अन्न से जीव उत्पन्न हुए।
और अंत में यही कहेगें कि इन पांच तत्वों में एक अद्रश्य और सतत सम्बन्ध हमेशा रहता है। हमारा शरीर और उसके आस-पास का सम्पूर्ण वातावरण इन्ही पांच तत्वों से निर्मित है। (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) आइये सबसे पहले इन पांच तत्वों को समझते हैं —
शक्ति चक्र – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – एक कम्पास की मदद से किसी भी प्लाट या माकन की डिग्री निकलने के बाद आप किसी प्लाट या घर के नक़्शे पर शक्ति चक्र की डिग्री के साथ मिलान करके सही दिशा डिग्री के अनुसार 16 दिशाओ(जोन) का अध्यन्न कर सकते हैं
पृथ्वी तत्व –
पृथ्वी तत्व को नैऋृत्य कोण (South West) रूप में देखा जाता है। घर का नैऋृत्य कोण (SW) में पृथ्वी तत्व तथा राहू का स्थान माना जाता है। राहू ग्रह का चिन्ह सांप का मुंह है और उसी सांप की पूंछ को केतु कहते हैं। आपको ये जानकारी होगी की पृथ्वी शेषनाग पर स्थिर है। पृथ्वी में गुरुत्व आकर्षण होने से, पृथ्वी तत्व स्थिरता का प्रतीक है। व वास्तु-पुरुष के पैर पृथ्वी तत्व में आते हैं। यह कोना सदियों के लिए स्थिरता, पॉवर, दूरंदेशी, आयोजन, बुद्धिमत्ता देता है।
नैऋृत्य कोण (SW) – के दोष होने वाली कुछ बीमारियाँ —
- पृथ्वी कोन कटा होने से दुर्घटना में पैर व घुटने से नीचे के हिस्से में चोट आती है।
- पृथ्वी तत्व में पानी की टंकी या बोर होने से घर में एक व्यक्ति को पावं के दर्द की समस्या होना संभव हैं।
- पृथ्वी तत्व में पितरों का स्थान माना गया है।
नैऋृत्य कोण (SW) – में रसोई होने से उत्त्पन्न दोष —
- स्त्री को पैरो से लेकर कमर तक दर्द की शिकायत दवाई लेने के बावजूद रहेगी।
- 15 साल के बाद स्त्री को गर्भाशय की थैली निकलने का योग आयेगा।
- यहाँ बनी रसोई सास-बहु के झगडे को आमंत्रण देती है।
- घर में पैसों की तकलीफ बनी रहेगी।
नैऋृत्य कोण (SW) – बाथरूम व टॉयलेट होने से —
- आप अस्थिर रहेंगें।
- आपकी प्रगति रुक जाएगी।
- आपको पैसों की खींच हमेशा रहेगी।
नैऋृत्य कोण (SW) – में सीढी होने से —
- पैरों में दर्द रहेगा।
- किसी प्रोजेक्ट पर काम चलता रहेगा परन्तु लाँच नहीं कर पायेंगें।
नैऋृत्य कोण (SW) – में पानी होने से —
- यहाँ पर पानी की टंकी जमीन में नीचे न हो।
- अंडरग्राउंड हो या पानी का बोर हो।
- सेफ्टी-टैंक हो या स्विमिंग-पूल हो।
- दुर्गति ही देता है। पति पत्नी में तलाक भी यही से देखा गया है।
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वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण परामर्श :—— घर में वास्तु परिवर्तन करने से पूर्व मंगलवार या शनिवार को श्री हनुमान जी का हवन व पूजन अवश्य करवा लेना चाहिये। और मंगलवार व शनिवार के दिन वास्तु के उपाय भी नहीं करने चाहियें, अन्यथा आपको उर्जाओं(दानवों) की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। आम तौर पर देखा गया है की किसी भी वास्तु परिवर्तन करने पर अस्पताल का योग खड़ा हो जाता है।
जल – जल तत्व जीवन की उत्पत्ति का मुख्य कारण है। जल तत्व को ईशान कोण(North East) से दर्शाया जाता है। यहाँ बृहस्पति गृह विद्यमान हैं अगर ईशान कोना कटा है तो वास्तु पुरुष का सर कटा है। अर्थात वह मकान कोमा में है आप जितनी मेहनत करे आपको 10 % ही परिणाम मिलेंगे।
ईशान कोण(NE) – में रसोई होने से —
- बेटी का ससुराल में दुखी होने का योग।
- घर में तनाव का वातावरण।
- घर की स्त्री की सेहत अच्छी नहीं रहेगी।
- अचानक धन हानि।
ईशान कोण(NE) – में टॉयलेट बाथरूम —
- जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष का प्रतीक है।
- बच्चो की पढाई खराब।
- लाइलाज बीमारी।
ईशान कोण(NE) – में जल संग्रह —
- ईशान में पानी की टंकी धन लाभ का कारक है।
- ईशान में पानी का संग्रह जमीन के नीचे ही शुभ माना जाता है।
ईशान कोण(NE) – में बेडरूम होने से —
- यहाँ नव-विवाहित जोडा रहे तो बच्चा होने में समस्या या न के बराबर।
- ईशान के कमरे व अन्य वास्तु दोष से डाईवोर्स या सेपरेशन का योग उत्पन्न होता है।
- ईशान का कमरा शादी-शुदा जीवन में संघर्ष पैदा करता है
- यह कमरा पूजा-घर व बुजुर्गो के लिए सही माना जाता है।
- ईशान कोण का कमरा पढाई व उच्च- शिक्षा के लिए बहुत अच्छा है।
- यहाँ सोने वाले को नौकरी जाने का खतरा बना रहता है।
ईशान कोण बढ़ने पर धन लाभ व काटने पर धन हानि कराता है।
अग्नि(South) – यह उर्जा तत्व है। अग्नि कोण में अग्नि तत्व विद्यमान है। तथा यहाँ शुक्र गृह विराजमान हैं। अग्नि ही जीवन को सुरक्षा व दृष्टि प्रदान करती है। जो भी वस्तु आपको आकर्षित करे वो अग्नि है। स्त्री को शुक्र गृह से देखा जाता है, स्त्री का दूसरा नाम अग्नि ही है। इसलिये जब भी अग्नि कोण विकृत होगा तो उसका असर सीधा असर स्त्री पर ही पड़ेगा।
अग्नि तत्व जीवन में जोश एवं उत्साह को दर्शाता है इसलिए आधुनिक जीवन में अग्नि तत्व धन का भी प्रतिनिधित्व करता है।
अग्नि कोण — में रसोई होने से —
- अग्नि कोण में रसोई होने से धन लाभ होता है धन सम्बन्धी समस्यायें नहीं होती हैं।
- घर की स्त्री का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
- रसोई घर के लिये उत्तम स्थान (south east से south) तक माना गया है।
अग्नि कोण(South) — में बाथरूम, व टॉयलेट होने से —
- आत्महत्या के विचार आयेंगें। लेकिन सिर्फ विचार आते हैं।
- अग्नि और पानी दोनों ही विरोधी तत्व हैं।
- बेटी को मातृत्व देने में रुकावट डालता है।
- स्त्री रोग अवश्य होता है।
- अग्नि कोण में सीढी होने से घुटनों में रोग का कारक बनता है।
अग्नि कोण — में बेडरूम होने से —
- अग्नि कोण में अगर आपका पलंग पूर्व और दक्षिण की दिवार से जुड़ा है। और अगर आपने गर्भ धारण किया और आपने प्रेगनेंसी यहीं मेचुयोर की तो आपको प्री-मेचुयोर बेबी की संभावना प्रबल हो जाती है।
- अगर आपको बच्चा नहीं होता हैं तो आप विशेष तौर पर अग्नि कोने के कमरे में पलंग को दक्षिण की दिवार से लगाकर रखिये और अपना सर दक्षिण की दिवार पर रखें। स्त्री अपने पति के दाहिने हाथ पर सोये।
- आपको यकीनन शुभ सन्देश मिलेगा और उसके 5 महीने बाद प्रेगनेंसी मचुयोर होने पर पलंग को सरका लें क्योंकि प्री-मचुयोर बेबी जन्म कोई नहीं चाहेगा।
वायव्य(NorthWest) – वायव्य में जल तत्व है। और यहाँ पर चन्द्र गृह विराजमान हैं। जल तत्व, की प्रकृति बहने की है, वह भाप बन कर उड़ने का गुण रखता है और दुबारा से द्रव का रूप ले लेता है। जिस किसी में भी पानी की विशेषताये मौजूद है वह जल है। जैसे किसी भी प्रकार का बहाव – चाहे वह ख्याल(विचार) हो या भाव हो वह जल तत्व से ही आता है।
वायव्य(NW) — वायव्य में रसोई होने से —
- जिस प्रकार अग्नि में रसोई मानी जाती है। उसी प्रकार वायव्य की रसोई भी ठीक मानी जाती है।
- यहाँ बनी रसोई में स्त्री को तरह-तरह के पकवान बनाने की इच्छा होती है।
वायव्य(NW) — वायव्य कोण में बाथरूम, टॉयलेट होने से —
- यहाँ पर बाथरूम व टॉयलेट बनाया जा सकता है।
वायव्य(NW) — वायव्य कोने में सीडी और स्टोर होने से —
- यह जगह सीडी और स्टोर बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है।
- आपके यहाँ अधिक मेहमान आयेगें।
वायव्य(NW) — वायव्य में पानी होने से —
- आपके मित्र कम होंगे।
- क़ानूनी समस्या भी आती है।
- पानी की टंकी पर रख सकते है। परन्तु कमरे या जमीन में नहीं।
आकाश — आकाश तत्व में मकान का पश्चिम और केंद्र बिंदु है। आकाश तत्व को ही ब्रहम स्थान भी कहा गया है पुराने समय में हर मकान में ब्रह्म स्थान में खुला चौक हुआ करता था। अब ऐसे मकान नहीं बनते हैं। इसलिए हम सबको इस तत्व का आभाव है। ब्रह्म स्थान में रखा वजन आपकी कमर, पीठ के दर्द का कारण होगा। यह स्थान पूजा-पाठ व ध्यान के लिए उत्तम है —-
ब्रह्म स्थान(Center) — ब्रह्म स्थान में सीढ़ी होने से —
- ब्रह्म स्थान पर कोई वजन न रखें।
- ब्रह्म स्थान सीडी होने से रीढ़ की हड्डी में समस्यायें आती हैं।
- ब्रह्म स्थानअल्सर, एसिडिटी की प्रॉब्लम हो सकती हैं।
ब्रह्म स्थान(Center) — पानी और गहरा होने से —
- मृत्युदोष कारक माना जाता है।(जलियाँवाला बाग़ का किस्सा, उस बाग़ के ब्रह्म स्थान में कुआँ था।
- ब्रह्म स्थान में खड्डा, बाथरूम होने से बच्चे बिन ब्याहे रह जाते हैं।
- ज्यादातर स्पाइन सर्जरी और पेट की बिमारियाँ इसी वास्तु दोष से होती हैं।
- ब्रह्म स्थान में पानी होना दरिद्रता का प्रतीक है।
- ब्रह्म स्थान में कभी कोई नया निर्माण जैसे खुदाई या कोई भारी सामान न रखे।
- ब्रहम स्थान घर का मध्य स्थान है। और यह स्थान वास्तु पुरुष की नाभि कहलाता है इस स्थान से ही आपके घर में स्थित सभी 43 देवताओं को उर्जा प्राप्त होती है।
- अत: इस स्थान को बहुत महत्व पूर्ण माना जाता है।
W | NE | |
ब्रह्मस्थान | ||
SW | East |
उपाय – ब्रहम स्थान में सुबह के समय कच्चा दूध व केसर के छींटे देतें रहें।
आकाश या अन्तरिक्ष(West) – इसे समझना थोडा कठिन है और इसलिये इसे बहुत कम समझा गया है। यह सबसे सूक्ष्म तत्व है। कुछ लोग आकाश(West) को ब्रह्म स्थान मानते है तो कुछ इस स्थान को वायु आदि नाम से संबोधित करतें हैं।
- ज्योतिष के अनुसार यह स्थान शनि व
- वास्तु में इस स्थान के अधिपति देवता वरुण कहे गए हैं।
- १४ रत्नों में तरु देवीय वृक्ष का स्थान है कल्पतरु वृक्ष जिसके नीचे बैठकर सम्पूर्ण ज्ञान व मनोकामनायें सहज ही अर्जित हो जाती हैं।
- बच्चों की पढ़ाई के लिये उत्तम स्थान है।
- पश्चिम स्थान में सफ़ेद व ग्रे रंग का प्रयोग सही होता है।
जो सभी स्थानों पर अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्मांड में समान रूप से उपस्थित है। अन्य शब्दों में कहे तो हर व वस्तु आकाश तत्व में ही विराजमान है। यह अनंत क्षेत्र आकाश तत्व का ही स्वरूप है जिसमें न केवल हमारा सौरमंडल बल्कि पूरी आकाश गंगा मौजद है। इसकी प्रभावी ताकतों प्रकाश, गर्मी, गुरुत्वाकर्षण बल और आकाशीय तरंगें, चुम्बकीय क्षेत्र और अन्य ताकतें शामिल है। बिना आकाश महाभूत के अन्य समझाए गए चार महाभूत तत्वों का कोई भी अस्तित्व नहीं है। इसका मुख्य गुण ध्वनी (शब्द) और घर्षणहीनता इसकी विशेषता है। इस तत्व को शीर्ष पर एक अवर्ण के रूप में देखा जा रहा है जिसे पिता के रूप में जाना जाता है और ब्रह्म या ब्रहं स्थान के समान ही माना गया है।
वास्तु में ज्योतिष संबंध – ज्योतिष में ध्यान देने योग्य कुछ बातें है जिन्हें हर मनुष्य जो घर का निर्माण करने जा रहा है उसे करनी चाहिये
- सर्व-प्रथम उसे किसी अच्छे विद्वान से शुभ मुहुर्त निकलवा कर शिलान्यास करवाना चाहिये।
- अपनी जन्मपत्रिका में शनि का स्थान देखने पर ही पता चलता है की एक व्यक्ति के लिए मकान शुभ या अशुभ रहेगा।
- यानि माकन बनाने से पूर्व अपनी जन्म में शनी के अनुसार उपाय करने के बाद गृह-निर्माण शुरू करे अक्सर घर बनवाते समय बुरे प्रभावों को देखा गया है।
ज्ञानेंद्रियाँ | तत्व | दायित्व/मूल क्षमता |
कान | आकाश | शब्द |
त्वचा | वायु | स्पर्श |
चक्षु | अग्नि | तेज |
जिह्वा | जल | रस |
नाक | पृथ्वी | घ्राण |
ज्योतिष में 3 संख्या का विशेष महत्व है जिसका उल्लेख अथर्ववेदके कांड 1/सूक्त1 में किया गया है। संख्या 3 व संख्या 7 ब्रह्मांड के आधार है जो सभी में व्याप्त है।
सर्वशक्तिशाली, सर्वव्यापक ब्रह्म जब भी अपने को प्रकट करता है सर्वप्रथम स्वयं को तीन अलग-अलग रूपों अथवा प्रकृतियों में दिखता है जिसे त्रिगुणात्मक प्रकृति कहते हैं। और जब उस प्रभु को अपना संपूर्ण रूप प्रदर्शित करना होता है तो वह 7 रूपों में प्रदर्शित करता है।
त्रिदेव | ब्रह्मा, विष्णु, महेश |
त्रिदोष | वात, पित्त, कफ |
त्रिगुण | सत, रज, तम |
शरीर | स्थूल, सूक्ष्म, कारण |
राशियां | चर, स्थिर, द्विस्वभाव |
काल | भुत, वर्तमान, भविष्य |
शक्तियाँ | सृजन, पालन, संहार |
कर्म | संचित, प्रारब्ध, क्रियामान |
मूल रंग | लाल, पीला, नीला |
संगीत के मूल बीज | सा, पा, सा |
लोक | पृथ्वी, आकाश, पाताल |
हम शरीर के तीन दोषों को लेतें हैं – वात, पित्त, कफ नीचें देखें कि इन तीनों से कितने क्रमचय बन सकते हैं :
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- 1 मुख्यत: वात, पित्त, कफ कम
- 2 वात कम, मुख्यत: पित्त, कफ कम
- 3 वात कम, पित्त कम, मुख्यत: कफ
- 4 वात और पित्त समान, कफ कम
- 5 वात और कफ समान, पित्त कम
- 6 कफ और पित्त समान, वात कम
- 7 वात, पित्त और कफ समान
यह संख्या 7 के उद्गम को भी दिखाता है और साथ ही यह भी दिखता की ३मेन से 7 कैसे निकला। इसलिए अथर्वेद के मन्त्र में 3 के साथ साथ 7 को भी महत्ता दी गयी है। यह हमारे 7 चक्रो को दिखाता है
यो अक्रन्दयत् सलिलं महित्वा योनिं कृत्वा त्रिभुजं शयानः
वत्सः कामदुघो विराजः स गुहा चक्रे तन्वः पराचैः॥
यह त्रिभुज उद्गम स्थल है जो की मूल उर्जाओं को प्रवाहित कर रहा है। अगले मन्त्र में कहा गया है।
यानि त्रीणि बृहन्ति येषां चतुर्थं वियुनक्ति वाचम्
ब्रह्मैनद् विद्यात् तपसा विपश्चिद्यस्मिन्नेकं युज्यते यस्मिन्नेकम् ॥
इस श्लोक में त्रिकोण की तीनों मुख्य उर्जाओं से चतुर्थ अर्थात शरीरकी उत्त्पति की बात कही गयी है।
उपयुर्क्त वर्णन से यह स्पष्ट है कि प्रकृति त्रिगुणात्मक है और सब कुछ इन तीनो पर ही आधारित है फिर ये चाहे ज्योतिष हो या वास्तु, दोनों का उद्गम त्रिभुज से ही है। यद्यपि यह विषय ज्योतिष पर नहीं है फिर भी यहां यह देखना उचित रहेगा की ज्योतिष में प्रयोग होने वाली कुंडली किस प्रकार से त्रिभुज पर आधारित है। यह जानना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वास्तु भी, ज्योतिष का ही अंग है।
जीवन का आरंभ शिव और शक्ति के त्रिभुज या पुरुष और प्रकृति के त्रिभुज के मिलन से हुआ है:
दो प्रमुख उर्जायें
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- ईशान कोण: उत्तर और पूर्व के मध्य
- आग्नेय कोण: पूर्व तथा दक्षिण के मध्य
- नैऋृत्य कोण: दक्षिण तथा पश्चिम के मध्य
- वायव्य कोण: पश्चिम तथा उत्तर के मध्य
इन दो त्रिभुजो के मिलन से निम्नांकित आकृति प्राप्त होती है:
कुंडली
शिव और शक्ति का मिलन
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण ये दोनों त्रिभुज दो उर्जाओं के प्रतीक हैं जिनमें एक उर्ध्वगामी और दूसरी अधोगामी है। उर्धुव्गामी अग्नि के समान जो हमेश ऊपर की और जाती है और अधोगामी पानी की बूंद के समान। इस शिव और शक्ति के त्रिभुज के मिलन से जो 12 बिंदु बने वे कुंडली की 12 राशियों एवं 12 भावों के प्रतीक हैं जिनके द्वारा जीवन के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन किया जाता है।
इसी चित्र द्वारा ग्रहों के उच्च और निम्न स्थान भी समझे जा सकते हैं (गृह का उच्च और निम्न स्थान सिर्फ उर्जाओं के मिलन के स्थान पर ही हो सकता है।)
`इसी प्रकार वास्तु का उद्गम भी त्रिभुज से ही हुआ है उसे समझने के लिए पहले निम्नांकित चित्र से समझे
भुत | वर्तमान | भविष्य | ||||
उत्पत्ति जल |
जीवन जीवन
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भविष्यअग्नि
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जल | पृथ्वी | अग्नि |
ये नाम कैसे दिये गये :
हम सबसे स्थूल तत्व अर्थात पृथ्वी से आरंभ करते हैं। पृथ्वी में अन्य चारो तत्वों की विशेषता उपस्थित है इस प्रकार दक्षिणा वर्ती घूमते हुये हम अगले तत्व जल, की ओर बढ़ने पर देखते हैं की यहाँ जल प्रचुर मात्र में उपलब्ध है चूँकि अन्य तत्वों की अपेक्षा पृथ्वी में जल पहले से उपलब्ध है और यह जल तत्व की ओर बढ़ता है अत: इस क्षेत्र में जल तत्व की प्रचुरता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भूखंड पर ग्रहों की स्थापना करना : वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
ग्रहों के आधार पर विभाजन:
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण – पंच-महाभूत तत्वों के आधार पर विभाजन समझने में सरल हैं परन्तु अब कुछ जटिल विभाजन व उनकी विभिन्न विशेषताओं पर द्रष्टि डालेंगें।
अधिकतम सकारत्मक उर्जा समभाव अक्ष से उत्तर-पूर्व(ईशान) कोण की और अधिकतम नकारात्मक उर्जा दक्षिण-पश्चिम (नैऋॆत्य) कोण की और है। ईशान कोण सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण है व नैऋॆत्य कोण पक्ष नकारात्मक उर्जा से।
किसी भी प्लाट या नक़्शे में जो रेखा ईशान में बृहस्पति के स्थान से नैऋॆत्य(SW) में राहू के स्थान का मिलान करती है वह आध्यत्मिक उर्जा के अक्ष को प्रदर्शित करती है। ईशान कोण(NE) बुद्ध और (East)सूर्य से घिरा बृहस्पति का, सबसे अधिक अलौकिक उर्जा के प्रवेश का स्थान है।
किसी भी प्लाट में पूर्व से पश्चिम को जोड़ने वाली रेखा भौतिक अक्ष को दर्शाती है। भौतिक अक्ष सूर्य के पूर्व से पश्चिम की और गमन पथ से मेल खाता है जहाँ सूर्य से शनि तक की यात्रा दिखाई देती है। इस अक्ष पर एक और मुख्य प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक इंद्र व सम्पूर्ण जगत को भौतिक उर्जा प्रदान करने वाले सूर्य हैं और दूसरी ओर एक अन्य प्राकृतिक शक्ति के प्रतीक वरुण व शरीर में नसों के कारक शनि है।
ग्रह:-वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
आइये अब भूखंड पर ग्रहों को स्थान देते हैं। पूर्व तथा वायु कोण एक दुसरे के परिपूरक हैं। इस स्थान के लिए सर्वोच्च संबंधित ग्रह सूर्य है।
जैसे की सौर प्रणाली के एक ओर सूर्य तथा दूसरी ओर शनि (वैदिक ज्योतिष के अनुसार) स्थित है, और इसलिए, इसी क्रम में सूर्य अथवा पूर्व के विपरीत शनि अथवा पश्चिम है। अतः शनि आकाश तत्व के पास हुआ। अब तक हमने दो सीमाओं पर सूर्य तथा शनि अंकित कर दिये हैं।
शेष ग्रहों में, अग्नि तत्व के स्थान के लिए सर्वोत्तम ग्रह मंगल गृह को माना गया है।
जहाँ तक दक्षिण तथा अग्नि का सम्बन्ध है, यहाँ पर दुविधा की स्थिति बिलकुल नहीं है, क्योंकि सूर्य पूर्व से दक्षिण होते हुये पश्चिम की और चलता है। सूर्य अपने चरम बिंदु यानि ठीक दोपहर को जब वह दक्षिण में होता है, तब सर्वाधिक ताप बिखेरता है इसलिए सूर्य के बाद मंगल ही सबसे गर्म अग्नि तत्व वाला ग्रह बचता है जिसे दक्षिण अथवा अग्नि तत्व वाले शीर्ष पर स्थापित करते हैं इस स्थल को यम स्थान भी कहा जाता है।
सूर्य की और से पहला आंतरिक ग्रह बुद्ध है।
और इसे मुख्य त्रिभुज के भूमि शीर्ष पर स्थापित किया गया है। इसकी दिशा उत्तर को माना गया है।
शुक्र ग्रह अब क्रम को परिवर्तित करते हुये, सूर्य से दक्षिणावर्ती की और चलतें हैं। अगला आंतरिक ग्रह शुक्र है इसे दक्षिण-पूर्व में स्थापित करते हैं।
अगला बाह्य गृह बृहस्पति है। इसे वामवर्ती दिशा की ओर जाते हुये उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में स्थापित करते हैं।
गृहारंभ में शुभवार
( सोम, बुध, गुरु, शुक्र, तथा शनि) गृहारंभ हेतु शुभ होते हैं। रविवार तथा मंगलवार को वास्तुशास्त्र: वेदों के अनुसार वास्तु शास्त्र छोड़कर शेष सभी वार।
सूर्य संक्रमण के अनुसार वास्तुपुरुष के मुख का ज्ञान –
राहू का मुख स्थिति देख कर ही नींव खुदवाने का कार्य करें – भूमि-पूजन व नींव आरम्भ
वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण (सौर सिंह मास) आदि तीन-तीन मासों में क्रमशः पूर्व आदि दिशाओं में वास्तुपुरुष (राहू)का मुख होता है। जिस दिशा में राहू का मुख हो उसी दिशा में गृह का मुख भी करना चाहिये। वास्तु पुरुष का मुख जिस दिशा में हो उससे यदि भिन्न दिशा में गृह का द्वार बना दिया जाय तो दुःख, शोक तथा भय उत्पन्न होता है।
गृहारंभ के लिए चंद्र्मासों का फल – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
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- यदि चैत्रमास में नया घर बनाना प्रारंभ किया जाय तो कर्त्ता को रोग उत्पन्न होता है।
- वैशाख में नवीन घर आरम्भ करने से धन-रत्नों की प्राप्ति होती है।
- ज्येष्ठ्मास में नया घर आरम्भ करने से मृत्युतुलय कष्ट देता है।
- आषाढ़मास में नया घर बनाना प्रारम्भ करने से भृत्य एवं रत्न हानि होती है।
- श्रावण मास में गृहआरम्भ करने से मित्रो का लाभ होता है।
- भाद्रपद में गृहआरंभ हानि प्रद होता है।
- आश्विन मास नवीन गृह बनाने में लड़ाई-झगडा करता है।
- कार्तिक में नूतन गृह बनाने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- मार्गशीर्ष धनवृद्धि करता है।
- पौषमास में नूतन गृह आरम्भ से चोरों का भय होता है।
- माघ में अग्नि भय तथा,
- फाल्गुन में लक्ष्मी वृद्धि कारक होता है।
घर निर्माण में सौरमासों का फल – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
सूर्य का 12 राशियों में फल –
- मेष राशि के सूर्यों में गृहारंभ शुभफलदायक होता है।
- वृष के सूर्य में धनवृद्धि होती है।
- मिथुन के सूर्य में घर बनाने से मृत्यु(या मृत्युतुल्य कष्ट) होता है।
- कर्क के सूर्य में घर बनाना शुभ फल देता है ।
- सिंह का सूर्य घर में नौकर-चाकरों की सुविधा देता है।
- कन्या का सूर्य रोगकारक तथा
- तुला का सूर्य सुखदायक होता है।
- वृश्चिक के सूर्य में बनाया गया घर-धनधान्य देनेवाला कहा गया है। व
- धनु के सूर्य में मान-हानि होती है।
- मकर का सूर्य गृह-निर्माण में धन-लाभ कराता है।
- कुम्भ के सूर्य में रत्न-लाभ होता है।
- मीन के सूर्य में घर बनाया जाये तो कर्ता को बुरे-बुरे स्वप्न आते हैं।
धनु – मीन – मिथुन – कन्या (द्विस्वाभाव राशियों) का सूर्य गृह-निर्माण में दोष-कारक होते हैं।
सूर्य की राशि | नया घर बनाने का फल | विधि निषेध |
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मेष | शुभप्रद | प्रशस्त |
वृष | धनवृद्धि | प्रशस्त |
मिथुन | मरण | अशुभ |
कर्क | शुभफल | प्रशस्त |
सिंह | भृत्यवृद्धि | प्रशस्त |
कन्या | रोगकारक | अशुभ |
तुला | सुखप्रद | प्रशस्त |
वृश्चिक | धनधान्य | प्रशस्त |
धनु | महाहानि | अशुभ |
मकर | धनलाभ | प्रशस्त |
कुम्भ | रत्नलाभ | प्रशस्त |
मीन | दु;स्वप्न | अशुभ |
सूर्य मास का फल —
सौरमान से ज्येष्ठ मास, उर्ज्ज्मास(कार्तिक), माघ सिंह (भाद्रपद) – ये मास गृह-निर्माण में शुभ फलदायक होतें हैं ।
तपमास (माघ), तपस्य (फाल्गुन), माधव (वैशाख), नभ (श्रावण), इष (आश्विन), उर्ज (कार्तिक),
–वैदिक सौर-मासों में गृह-निर्माण पुत्र-पौत्र व धनदायक होता है।
यदि मकान घास – फुश – पत्ते – लकड़ी आदि का बनाना है तो निषिद्ध मास में भी शुभ दिन देखकर बनाया जा सकता है। परन्तु पत्थर – इंट आदि से बनने वाले घरों को निन्दित मासों में नहीं बनाना चाहिये।
गृह-निर्माण में कर्ता के लिए गोचरादि बल की आवश्यकता – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
गृह-निर्माणकर्ता को घर बनाते समय ग्रहों का गोचर बल अष्टकवर्ग शुद्धि तथा वामवेध का विचार करना चाहिये। इस कार्य में करता को जन्मपत्रिका देखकर दशान्तर्दशा का भी विचार अवश्य कर लेना चाहिये। यदि यह सम्भव न हो तो निर्माण कर्ता के लिए सूर्य तथा चंद्रमा का बल अवश्य ही देख लें।
1.यदि कर्ता के लिए सूर्य गोचर प्रथम भाव में अशुभ हो तो स्वयं को पीड़ा होती है।
2.यदि चंद्रमा पीड़ित हो तो पत्नी पीड़ित होती है।
3.यदि शुक्र गोचर में अशुभ हो तो उसमें गृह-निर्माण करने से लक्ष्मी का नाश होता है।
4.यदि गुरु गोचर में अशुभ हो तो सुख-संपत्ति का नाश होता है।
5.बुद्ध से पुत्र-पौत्र पीड़ित होतें है।
6.मंगल गोचर में प्रतिकूल हो तो ग्रहारम्भ करने पर भ्रातावर्ग को पीड़ा होती है।
7.यदि शनि प्रतिकूल हो तो दासवर्ग को पीड़ा होती है।
विद्वानो ने सभी के लिए सूर्य का बल विचारने की अनिवार्यता कही है। वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
गृहनिर्माण के लिए गोचर में रवि शुद्धि देखना अनिवार्य है। इसी प्रकार जन्म कुंडली में उस समय जो दशा-अन्तर्दशा का स्वामी ग्रह हो वह भी गोचर में निर्बल नहीं होना चाहिये। —-
यदि सूर्य पीड़ित हो तो उस समय में ग्रहारम्भ नहीं करना चाहिये।
गोचर में जन्म राशि का सूर्य हो तो उदर(पेट) रोग करता है।
द्वितीय राशि का सूर्य धननाश्क होता है।
जन्म से चौथा सूर्य भयकारक व
पाचवां सूर्य संतान को कष्ट करता है।
जन्मराशि से छठा सूर्य शत्रु नाशक अर्थात शुभ होता है।
सातवाँ सूर्य स्त्री को कष्ट दायक,
आठवां सूर्य भयकारक
नौवां सूर्य धर्म नाशक,
दशम राशि का सूर्य जातक को कर्मठ तथा सक्रीय बनता है, अथ शुभ होता है।
ग्यारवाहा सूर्य भी लक्ष्मी कारक होने से शुभ फल देता है।
बारवाह: सूर्य धन हानि करता है।
जो गृह सूर्य के समीप हो शत्रु राशिगत, वक्री, अतिचारी, गृह्गोचर, उल्कापात से दृष्ट होनें पर भी उनकी पूजा करके ही गृहारंभ करना चाहिये।
गृहनिर्माण में त्याज्य तिथियाँ –वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
गृह-निर्माण में कृष्ण-पक्ष की षष्ठी तिथि से लेकर शुक्ल-पक्ष की षष्ठी पर्यन्त तिथियाँ त्याग दें। इसी प्रकार गण्डनक्षत्र, सूर्यसंक्रांति का दिन, मासदग्ध तिथियाँ, वारद्ग्ध तिथियाँ, भद्राकरण, व्यतिपात, तथा वैधृतियोग इन सबको त्याग देना चाहिये।
जो नक्षत्र गृह-निर्माण में कहे नहीं गए हैं, उन् नक्षत्रो को भी गृह-निर्माण में त्याग देना अवाश्यक है। जैसे –- क्रकचयोग, दग्धयोग, वज्रयोग, शूल, व्याघात, विष्कम्भ, गण्ड एवं परिघयोगों को भी त्याग देना चाहिये। इसी प्रकार अमावस्या रिक्त्ताद के साथ उत्पातादि से दूषित नक्षत्र को त्याग देना चाहिये।
अशुभ तिथियाँ के दुष्प्रभाव
प्रतिपदा - दरिद्रता(प्रथमा विशेषकर शुक्लपक्ष)
चतुर्थी - धन हरण
अष्टमी - निर्माण करने में उच्चाटन
नवमी - शस्त्राघात
चतुर्दशी - पुत्र और पत्नी आदि की हानि
अमावस्या - राजभय
यदि रिक्त्ता तिथि (4/9/14) चौथ, नवमी, चौदस में गृहारंभ किया तो दरिद्रता होती है। (शुभ कार्य वर्जित)
गृहारंभ हेतु शुभ नक्षत्रों का कथन – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
- मृदु नक्षत्र – अश्विनी, चित्रा, मूल, रेवती, रेवती
- ध्रुवनक्षत्र – रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद, – स्वाति, पुष्य, धनिष्ठा, शतभिषा, हस्त, मूल तथा पुनर्वसु नक्षत्रो एवं शुभवार को गृहारंभ करना चाहिये।
विभिन्न लग्नो के फल (विश्वकर्मा प्रकाश 3/47
मकर, वृश्चिक, कर्क | हानि |
मेष, तुला, धनु | निर्माण में देरी |
कन्या, मीन, मिथुन | धन लाभ |
कुम्भ, सिंह, वृषभ | सफलता |
गृहनिर्माण हेतु नक्षत्र चयन –
गृहआरंभ के जो नक्षत्र है, उनमें से जो शुभ नक्षत्र हैं उनका चयन करें
- नक्षत्रो का (न्यास) गृहारंभ कृत्तिकादी सात नक्षत्रों को पूर्व दिशा में,
- मघादि सात नक्षत्रों को दक्षिण में, अनुराधादि सात नक्षत्रों को पूर्व दिशा में, तथा
- धनिष्ठादि सात नक्षत्रों को उत्तर दिशा में स्थापित करना चाहिये
- अग्र भाग के नक्षत्रों का चंद्रमा हो तो स्वामी के लिए भय होता है,
- पृष्ठ नक्षत्रों में चंद्रमा होने से कर्मकर्ता का नाश होता है।
- दक्षिण दिशा के नक्षत्रों में चंद्रमा हो तो धनदायक होता है।
- उत्तरदिशा के नक्षत्रों का चंद्रमा सुख़ संपत्ति दायक होता है।
- लग्न तथा नक्षत्र दोनों से विचारा गया चंद्रमा शीघ्र फल देता है
गृहनिर्माण में चंद्रमा की दिशा का फल
गृहनिर्माण में चन्द्रमा सम्मुख तथा पृष्ठ पर शुभ नहीं होता हैं। उसमें तो चंद्रमा वाम(उत्तर) या दक्षिण होना चाहिये। विमर्श – गृहारंभ हेतु — रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी,
द्वार चौखट स्थापना —
द्वार व चौखट के लिए अश्विनी, तीनो उत्तरा, हस्त, पुष्य, श्रवण, मृगशिरा, रेवती, और रोहिणी आदि नक्षत्र शुभ हैं।
स्तंभ निर्माण हेतु प्रशस्त नक्षत्र
स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा,(गान्धर्व), पूर्वाफाल्गुनी, तथा रोहिणी — नक्षत्रो में स्तम्भोंच्छ्राया (स्तंभ, खम्बे, pillar की स्थापना) आदि करना चाहिये।
धनिष्ठादि पंचक का विचार
धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती इन पांच नक्षत्रो में स्तंभ (खम्बे या pillar) की स्थापना नहीं करनी चाहिये। परन्तु शिलान्यास किया जा सकता है।
किन्तु इन पांच नक्षत्रो अर्थात पञ्चक में सूत्रधार ( राजमिस्त्री, कारीगर) को बुलाकर शिलान्यास तथा चारदीवारी आदि का निर्माण कर सकता है।
विमर्श – धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपद, तथा रेवती ये नक्षत्र तो ऊपर दिये शुभ नक्षत्रों के अनुसार गृहारंभ हेतु प्रशस्त कहे गये हैं। अतः घर पर छाया करने, चौखट-बाजू, पटना आदि लगाने में ही पंचक वर्जित होता है। नींव बनाने में पंचक का विचार नहीं है।
गृहारंभ में शुभ तिथियाँ – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
गृहारंभ में द्वितीय, तृतीया, षष्ठी, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, तथा पूर्णिमा — ये तिथियाँ शुभ होती हैं। (नंदा प्रथमा को छोड़कर , तीनो रिक्ता, जया, अष्टमी को छोड़कर , पूर्ण अमावस्या को छोड़कर)
गृह-प्रवेश का संक्षिप्त वर्णन — वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
चैत्र तथा पौष इन सौरमासों को छोड़कर पंचांग शुद्ध, दिवस को अथवा किसी महोत्सव वाले दिन गृह-प्रवेश करना चाहिये। अषाढ़ व मार्गशीर्ष में मध्यम माना जाता है। चैत्र मास में धन हानि की संभावना रहती है। जहाँ दो मालिक हो घर जीर्णोगृह हो तो मास दोष नहीं होता। (विश्वकर्मा प्रकाश व राजवल्लभ मंडन के अनुसार)
उत्तरायण का समय सदा ही शुभ कार्यो के लिये उत्तम समय माना गया है। गृह प्रवेश के लिए गुरु और शुक्र गृह बलवान होने चाहियें
नवीन घर के गृह प्रवेश शुभ मास — माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, और अषाढ़ माह कहे गये हैं चैत्र शुभ नहीं माना गया है।
पुराने घर में गृह प्रवेश शुभ मास — उपयुर्क्त मासों के अतिरिक्त कार्तिक, मार्गशीर्ष, और श्रावण पर भी विचार किया ज सकता है।
राशि के अनुसार – कर्क, कन्या, कुम्भ राशि के सूर्य के समय गृह प्रवेश, ग्राम प्रवेश, और नगर प्रवेश शुभ नहीं है।
गृह प्रवेश हेतु शुभ नक्षत्र –
नवीन घर के लिये – मृदु और ध्रुव नक्षत्र अर्थात, मार्गशीर्ष, रेवती, चित्रा, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराअषाढ़, उत्तराभाद्रपद, और रोहिणी
पुराने घर के लिये — पुष्य, स्वाति, धनिष्ठा, एवं शतभिषा के साथ मृदु व ध्रुव नक्षत्र उत्तम हैं।
गृह-निर्माण से पूर्व इन सभी बातो का ध्यान रखना बहुत जरुरी है:
–भूमि-पूजन व नींव आरम्भ इस ब्लॉग में आप जान सकते है की प्लाट में कोन से महीने में कोन सी दिशा में नींव खुदवान शुभ है —
- गृह आरम्भ मृदु नक्षत्र – (अश्विनी, चित्रा, मूल, रेवती) , ध्रुवनक्षत्र, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा , उत्तराभाद्र, स्वाति, पुष्य ,धनिष्ठ, शतभिषा, हस्त, मूल तथा पुनर्वसु ।
- शुभ मास – पौष, वैशाख (बैसाख), अग्रहायण, फाल्गुन, श्रावण, कार्तिक, माघ और भाद्रपद
- शुभ वार – सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार(रविवार, मंगलवार छोड़कर)
- शुभ तिथि – द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी त्रयोदशी तथा पूर्णिमा
- शुभ लग्न – वृषभ, मिथुन, सिंह, कन्या, वृषिका, धनु और कुंभ
- नींव पूजन या शिलान्यास के लिए शुभ नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्र, और रोहिणी,
- गृह निर्माण के लिए शुभ नक्षत्र – मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, शतभिषा, धनिष्ठा, हस्त और पुष्य
घरों पर पड़ने वाली वृक्षों की छायाँ के दोष – वास्तु शास्त्र व ज्योतिष विद्या ज्योतिष के अनुसार गृहनिर्माण
घर पर वृक्षों की पड़ने वाली छाया के दोष कुछ इस प्रकार बताये गयें हैं। बांसों के झुरमुट से पड़ने वाली छाया भवनों को दुगनी दूषित करती है। पुन्नाग अथवा सुपारी के वृक्षों की छाया तिगुनी और दूध वाले वृक्षों की छाया चतुर्गुनी भवनों को दूषित करती है।
इसी तरह आँवले के पेड़ की छाया, व पूर्ण पेड़ की छाया सात गुणी, और शिवलिंग की भवन पर पड़ने वाली छाया आठ गुना हानिकारक होती है।
इन छायाओं को छोड़कर ही घर बनायें क्योंकि यह एक धुर्व सत्य मानकर चलें कि वृक्षों की और देव स्थल, मंदिरों की छाया घरों पर नहीं पड़े। ऐसे में छायाओं को त्याग कर ही घर बनायें। जिन वृक्षों की छाया घरों की छत्तों, बाल्कनियो और फर्श पर पड़ती हो वह वास्तु शास्त्र के अनुसार अवश्य ही त्याग ने योग्य हैं।
परन्तु जो छाया उन घरों और हवेलियों से नीचे ही रह जाती है, वह रहने योग्य शुभ माने जातें हैं। जिस घर में आक, अशोक, केतकी, बीजपुरक(बीजोरा), के वृक्ष हों उन घरों में कभी वृद्धि, सुख़, सम्पन्नता, आदि नहीं बढ़ते हैं।
दाड़िम, हल्दी, श्वेता, गिरिकर्णिका आदि वृक्षों को अपनी भलाई चने वाले व्यक्ति कभी भी अपने गृह के द्वार के पास रोपण न करें। खर्जूर, दाडम, केला, करौंदा, और बीजोरा जिन घरों में उगते हों वें कभी व्रद्धी नहीं पाते। कड्वेंवृक्ष, काँटों वाले वृक्ष , सुनहरे पुष्पों वाले, कनेर के वरक्स भी घर के पास नहीं रोपण करें,
बरगद, उदुम्बर, पलाश, और सुपाड़ी, के वृक्ष घरों के पास हों तो वें अशुभ फल ही देतें हैं क्योंकि इनके रहते हवेली और घरों में संपन्नता की वृद्धि नहीं होने देता।