मासिक धर्म संबंधी मिथक: इससे निपटने की रणनीतियाँ
मासिक धर्म संबंधी मिथक: इससे निपटने की रणनीतियाँ पर चर्चा करेंगे। और हम पूरा प्रयास करेंगें कि आयुर्वेद और अन्य सनातन धार्मिक शास्त्रों के माध्यम से इस समस्या का निवारण कर पायें। महिलओं में मासिक चक्र 21दिन से 45दिन तक का चक्र हो सकता है सामान्य तौर पर मासिक चक्र 28 से 35दिन का होता है सामान्य तौर इसका समय निर्धारित नहीं होता है परन्तु 11 से 17वर्ष की आयु से शरू होती है चलिये आज के विश्लेषण को शुरू करते हैं। इसके पहले हमने दुनियाँ भर के विभिन्न मतों और संस्कृतियों में मासिक-धर्म से जुड़ी मान्यताओं और प्रचलनों पर विचार किया था। हमने देखा कि यहूदी, इस्लाम, तथा ईसाई जैसे संगठित मतों के साथ-साथ उत्तरी अमेरिकी, अफ़्रीकी, और यहाँ तक कि साइबेरियाई मूल निवासी कबीलों में भी मासिकधर्म को अशुद्धि से जोड़ने तथा मासिक-धर्मी स्त्रियों को किसी-न-किसी तरह से अलग-थलग रखने की मान्यता है।
दूसरी और हमारी मातायें और बहनें पूछती है की क्या मासिक धर्म के दौरान वो इतनी अशुद्ध हो जाती है कि भगवान उन्हें देखना भी पसंद नहीं करते? आखिर मंदिर के दरवाजे इस सिचुएसन के दौरान उनके लिए क्यों बंद हो जाते हैं? और अगर वो मंदिर ना भी जाए तो क्या उन्हें प्रसाद ग्रहण करने का भी अधिकार नहीं दिया जा सकता? प्रसाद तो भगवान का है और भला भगवान किसी का बुरा क्यों चाहेंगे? उनका ये भी सवाल है कि आज आधुनिक युग में तो मासिक धर्म से असुद्धि ना फैले, इसके लिए व्यवस्था है, सैनिटरी नैपकिन्स है। दूसरी तरफ मासिक धर्म को स्त्रियों के जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव माना गया है पीरियड्स को मैच्योरिटी से जोड़ा जाता है लेकिन दूसरी तरफ मंदिरों में जाना भी वर्जित है पिछले कई वर्षों में सनातन धार्मिक शास्त्रों में स्त्रियों को लेकर बहुत से विषय इस प्रकार तोड़-मरोड़कर या आधे-अधूरे प्रस्तुत किए गए हैं जैसे कि –
तो क्या आज भी स्त्रियों को मंदिर जाने से रोका जाना चाहिए? और क्या गायत्री मंत्र जैसे पवित्र मंत्र जो ब्रह्म और मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं वो एक रजस्वला स्त्री के मुख में पढ़कर अपवित्र हो जाएंगे? दोस्तों आप सभी का https://divinepanchtatva.com/ में स्वागत है। दोस्तों, पिछले कई वर्षो से कई बहनों ने और ऐसी कई चीजों पर प्रश्न किया है की क्या सच में स्त्री को या बालिका को पूजा नहीं करनी चाहिए? बाल नहीं धोने चाहिए, नाखून नहीं काटना चाहिए, यहाँ तक की नहाना भी नहीं चाहिए। तो आज हम इस विषय को शुरू करते हैं
(Menstruation) महिलओं में मासिक धर्म को लेकर सनातन धर्म के विचार
दोस्तों सनातन धर्म में स्त्रियों का मासिक धर्म या पीरियड्स कभी भी (टैबू)निषिद्ध नहीं रहा है। इन्फैक्ट सनातन धर्म में मासिक धर्म को पुरुषों के ब्रह्मचर्य जितना सम्माननीय और पवित्र माना गया है जहाँ पुरुष ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करते हुए जीवन को रचने वाले सीड्स को प्रिजर्व करते हैं, वहीं एक स्त्री, एक रजस्वला महिला इस बात का प्रतीक होती है की उसने भी ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जीवन को रचने वाले सीड्स का त्याग कर दिया है। तो पुरुषों में संयम और स्त्रियों में त्याग यानी पुरुषों में ब्रह्मचर्य और स्त्रियों में मासिक धर्म के संतुलय है और सनातन धर्म में बहुत पवित्र कर्म है। अब ये तो दार्शनिक बात हो गई लेकिन धरातल पर भी आपको ऐसे कई प्रमाण मिल जाएंगे जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि स्त्रियों का जो मासिक धर्म है सनातन धर्म में टैबू(निषेध) ना होकर एक पवित्र घटना है। हिंदू मत, जिसे सनातन धर्म के नाम से भी जाना जाता है, यह देश, उसकी सभ्यता, और उसकी पहचान की बुनियाद है। और इस वजह से देश भर में फलने-फूलने वाली सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, और मज़हबी मान्यताओं की जड़ में ‘धर्म’ का ही भाव है। जो संसार, समाज, और पूरे ब्रह्मांड को संचालित करता है, शाब्दिक अर्थों में धर्म वही है। ‘धर्म’ की इसी विचारधारा से जुड़ी सोच, आदर्श, एवं रीति-रिवाजों में मासिक-धर्म से जुड़ी मान्यताएँ भी शामिल हैं। हाँ, यह सच है की इन मान्यताओं में कुछेक विकृतियाँ आ गयी हैं। पर दूसरी ओर यह भी सच है कि उन्हीं मान्यताओं में से कुछ अभी भी अपने पुरातन और सनातन रूप में विद्यमान हैं। इस विरोधाभास को दूर करना अनाज को भूसे से अलग करने के समान है, पर हाँ थोड़ी समझ और विवेक की ज़रूरत है।
इन्फैक्ट आज भी आपको भारत में दक्षिण भाग के कई गांवों में देखने को मिल जाएगा कि जब भी किसी बालिका का पहला पीरियड आता है तो उसको सेलिब्रेट किया जाता है और केवल घर पर ही नहीं बल्कि पूरे गांव में पब्लिकली उसका सेलिब्रेशन होता है और एक 2 दिन का सेलिब्रेशन नहीं होता। एक हफ्ते और 16 दिन तक ये चलता है। तो अगर सनातन धर्म में मासिक धर्म को एक नीच प्राकृतिक कर्म से देखा जाता तो इस तरह का सेलिब्रेशन किया ही क्यों जाता? अब ये सेलिब्रेशन करते क्यों हैं? इसको तो हम आगे समझेंगे। इस में उससे पहले एक प्रमाण और देख लेते है जो मासिक धर्म की पवित्रता की पुष्टि करता है। दोस्तों अगर आपको गुवाहाटी के कामाख्या देवी मंदिर के विषय में पता है तो आपको पता होगा की वहाँ पर ऐसी मान्यता है कि जून के महीने में देवी माँ वहाँ पर मेंसुरेट करती है और उसको सेलिब्रेट करने के लिए 1000, 2000 10,000 श्रद्धालु नहीं बल्कि 10,00,000 से भी ज्यादा श्रद्धालु पहुंचते हैं। अब जिस धर्म में इस प्रकार से मासिक धर्म को पूजा जाता है। देवी स्वयं रजस्वला हो जाती है। वहाँ पर स्त्रियों के मासिक धर्म को लेकर इस प्रकार की संकीर्ण भावनाएँ कैसे पैदा हो सकती है? क्योंकि सनातन धर्म में
सेक्शुअल एनर्जी को बहुत पवित्र और प्योर माना जाता है। जबकि अगर आप वेस्ट में देखे या दूसरे धर्मों पंथों में देखें तो वहाँ पर इन एनर्जी उसको एक सीन की तरह देखा जाता है। और इसलिए सनातन धर्म के पूर्वजों की फोर्वर्ड थिंकिंग को झुठलाने के लिए दबाने के लिए और गलत तरह से प्रेज़ेंट करने के लिए बार बार प्रयास किए गए हैं? जब बाहरी इन्वेडर्स हुए मुगल आये पोर्चुगीस आये चाहे ब्रिटिशर्स आये तो बालिकाओं के प्रथम मासिक धर्म को, जो धूमधाम से मनाया जाता था, इस प्रथा को बंद करना पड़ा क्योंकि कोई भी माता पिता ये नहीं चाहता था कि उसकी बेटी मच्योर हो गयी है। ये बात आक्रांताओं को पता चले, इसलिए गुलामी के वर्षों में विदेशियों के खौफ से मासिक धर्म को मनाने के आयोजन खत्म कर दिए गए।
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लेकिन इसको मनाने के पीछे एक बहुत बड़ी साइकोलॉजी छिपी हुई है। समाज और माता पिता का दायित्व होता था कि जब प्रथम मासिक धर्म आए तो बालिका का जो अनुभव हो वो आनंद में ही हो, जिससे आगे आने वाले मासिक धर्मों में ये जो आनंदमयी अनुभव है इनकी स्मृति या बच्चे को पीड़ा से दूर रखें। आज भी अगर आप देखे तो किसी बहन बेटी के साथ अगर उसके शुरुआती पीरियड्स में कुछ गलत अनुभव हो जाता हैं तो उसको आजीवन पीड़ा उठानी पड़ती है और वो आजीवन पीरियड्स को एक श्राप की तरह देखती है और इसीलिए इस प्रथा को हमारे सनातन धर्म के दूरदर्शी मुनियों ने शुरू की थी, जिसे कालांतर में समाप्त करना पड़ा और आज आप देखिये दूसरे धर्म, पंथ और देशों की जो कन्जर्वेटिव सोच है वो सनातन धर्म में घुस गई है। अब दोस्तों आपको केवल यह बताया जाएगा कि आपके धर्म की स्त्रियों को मैंसुरेशन के समय मंदिर नहीं जाने दिया जाता, पूजा नहीं करने दिया जाता, लेकिन आपको पूरी बात कोई नहीं बताएगा।
मासिक धर्म के दौरान खुद की देखभाल करें?
- सफाई का रखें ध्यान।
- वेजानिल पार्ट और आस-पास अच्छे से सफाई रखें।
- सेनेटरी पैड यूज़ करें, खुद को गिला ना रखें जायदा समय तक, रैशेज से बचें।
- 6-8 गिलास पानी पियें।
- जब पीरियड्स को सही करने की बात आती है तो अदरक की चाय जादुई काम करती है अदरक में एक जिंजरोल नामक यौगिक होता है जो शरीर में सुजान को कम करता है जो आगे चल कर पीरियड्स शुरूकरने में मदद करता है।
- हल्दी का सेवन करें, इसे दूध में मिला कर पियें और मिश्रण को शक्तिशाली बनाने के लिए इसमें गुड मिलाये।
- विटामिन C पीरियड्स के दौरान बहुत आवश्यक है विट C में एस्कोर्बिक एसिड होता है और यह पीरियड्स को नियमित करने में मदद ककर सकते हैं।
- जंक फ़ूड से दूर रहें, हेल्दी डाइट लें।
- ग्रीन वेजिटेबल्स, सलाद, ग्रीन टी, केला, पपीता, ड्राई फ्रूट्स आदि लें।
- योग प्राणायाम, हलकी एक्सरसाइज़ करें।
- डाक्टर से सलाह लें, दर्द और तकलीफ में, टेंशन और स्ट्रेस से बचें 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें रेस्ट करें।
- Disclaimer: इस आर्टिकल में दिए गए तरीकों को केवल सुझावों के रूप में लें।
डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरुर लें।
सामान्य मासिक धर्म की अवधी क्या होती है?
आपके अंतिम मासिक धर्मको रजोनिवृत्ति कहा जाता है।
महिलाओं में रजोनिवृत्ति होने की औसत आयु 50 से 52 वर्ष है। कुछ
महिलाओं में 60 वर्ष की आयु की देरी तक भी रजोनिवृत्ति हो सकती है।
अपने मासिक धर्म के दौरान अक्सर ध्यान देने योग्य बातें –
हर किसी का धर्म अलग-अलग होता है। आपका मासिक धर्म चार से आठ दिनों तक बना रह सकता है। अधिकांश महिलाओं में कुल मिलाकर 80 मिली से कम रक्तस्राव होता है। रक्तस्राव कम मात्रा से लेकर अत्यधिक मात्रा में हो सकता है। आपके मासिक धर्म में प्रवाह पहले तीन दिनों में अधिक और अंत की ओर हल्का हो सकता है। आपके मासिक धर्म के दौरान रंग भी बदल सकता है। यह चमकदार लाल से लेकर गहरे भूरे रंग तक अलग हो सकता है। रक्त के कुछ छोटे-छोटे थक्के निकलना सामान्य बात है। यदि थक्के अक्सर निकलते हैं या इनका आकार एक सिक्के से बड़ा हो जाता है, तो अपने डॉक्टर से बात करें। मासिक धर्म की अपनी विशिष्ट गंध हो सकती है। यदि आप गंध के बारे में चिंतित हैं, तो अपने डॉक्टर से बात करें।
सुश्रुतसंहिता के अनुसार रजस्वला परिचर्या
अगर आपको पूरी बात जाननी है तो आपको आयुर्वेद की सुश्रुतसंहिता की रजस्वला परिचर्या को पढ़ना पड़ेगा। रजस्वला परिचर्या एक सूची है जो यह निर्धारित करती है की एक मेंसुरेटिंग स्त्री को या एक रजस्वला स्त्री को क्या क्या काम नहीं करना चाहिए? इस लिस्ट में स्त्री को ज्यादा बोलने, हंसने, शोरगुल में रहने से मना किया जाता है। उसके बाद दिन में सोने बाल झाड़ने काजल लगाने या फिर नहाने से भी मना किया जाता है। लेकिन इस लिस्ट में कहीं भी स्त्री को पूजा ना करने या फिर मंदिर ना जाने के बात नहीं की गई है। लेकिन फिर भी आपको स्नान करने से मना किया जा रहा है तो बिना स्नान किए हुए सनातन धर्म में मंदिर जाना उचित नहीं माना जाता है। इसलिए ये बात इम्प्लिसिट है की अगर आप स्नान नहीं करेंगे तो मंदिर कैसे जाएंगे या फिर पूजा कैसे करेंगे? अब दोस्तों ये जो बातें दी गई है, ये ऐसे ही नहीं दे दी गई है। ये आयुर्वेद के नियमों के अनुरूप है पर इस पर हम विस्तृत चर्चा करने वाले हैं जिससे आपको समझ में आएगा की ये बातें क्यों प्रेस्क्राइब की गयी है और अगर आप देखे ये सभी हमारे धर्म की ऐसी वैज्ञानिक रीतियां रही हैं जिनकी वजह से जो भारतीय महिलाओं में पीरियड्स को लेकर बीमारिया है वो वेस्ट की महिलाओं से काफी कम रही है। ये जो स्टडी है इसका लिंक www.mythrispeaks.org पर आपको इस स्टडी के लिए जीतने भी रिसर्च पेपर रेफर किए गए हैं। वो सब भी मिल जाएंगे और दोस्तों, यही कारण है कि हम जैसे जैसे अपनी भारतीय संस्कृति से दूर जाते जा रहे हैं
मासिक धर्म से जुड़े मिथकों का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव
हमारे देश की जो महिलाएं है उनमे मासिक धर्म से रिलेटेड जो बीमारियां हैं जैसे कि पीसीओडी पॉलीसिस्टिक और पीसीओएस पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। आज हर 10 भारतीय बालिकाओं में एक बालिका को पीसीओएस की प्रॉब्लम है। जिन स्त्रियों या बालिकाओं में पीसीओडी की प्रॉब्लम होती है, उनमें जरूरत से ज्यादा मेल हार्मोन टेस्टॉस्टोरोन प्रोड्यूस होने लगता है, जिसकी वजह से उन्हें (Menstruation) में प्रॉब्लम आने लगती है। अगर आप भी पीसीओडी की समस्या से जूझ रही है।
तो हम आपको रिकमेंड करेंगें की आप हाउ टू फाइट पीसी ऑडि बुक को पढ़े। इसमें न केवल आपको पीसीओडी और पीसीओएस के विषय में समझाया गया है।बल्कि घरेलू उपाय, नेसेसरी, लाइफ स्टाइल, चेंज और इलाज के बारे में भी बताया गया है। और अपनी समस्या वो अच्छी तरह से समझ कर इसका लाभ भी उठा सकती है। दोस्तों अब आयुर्वेद के माध्यम से समझते हैं। कि मासिक धर्म के समय स्त्रियों को बहुत से काम करने से क्यों रोका जाता है। आयुर्वेद में शरीर के दो भाग होते है। एक स्थूल शरीर और दूसरा सूक्ष्म शरीर है। अब स्थूल शरीर है जो हमे माता पिता से मिला है। जिसको हम अनाज फल सब्जी आदि खाकर डेवलप करते है दूसरा शरीर जो माना गया है। सूक्ष्म शरीर अब सूक्ष्म शरीर क्या करता है यह हमारे स्थूल शरीर को गति और सक्रियता देता है मतलब आयुर्वेद में ये माना गया है सूक्ष्म शरीर वो कारण जिससे हमारा ह्रदय स्पंदन करता है। हमारी कोशिकाएँ सक्रीय रहती है तो इस प्रकार से शरीर को दो प्रकार से देखा गया है स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर I अब आयुर्वेद में तीन दोष पाये जाते है इन तीन दोषों के नाम है वात,पित्त,कफ पहला वात क्या करता है सूक्ष्म शरीर के अन्दर जितनी भी गतियाँ है या मोशनस है उनको वात कंट्रोल करता है जैसे शरीर में खून का संचार हो गया या मलमूत्र की जो गति है उनको कंट्रोल करता है आपके शरीर के अन्दर जो वायु की गतियाँ है चाहे आगमन हो या निर्गमन हो उन्हें वात कंट्रोल करता है उसके बाद पित्त आता है पित्त आपकी सूक्ष्म शरीर की ऊष्मा को नियंत्रण करता है जैसे जहाँ आपको गर्मी चाहिये (digestion) के लिए उसको पित्त कंट्रोल करता है जो आपने अनाज खाया है फल, सब्जियां खायीं है उन से एनर्जी (produce) करना तो इस प्रकार की जो क्रियाए है जहाँ पर तापमान तत्व को नियंत्रित करना होता है उसे पित्त निर्देशित करता है और वहीँ पर जो तीसरा दोष है वो है कफ है जो आपके शरीर के अंदर स्थिरता और पोषण के लिए आवश्यक है और साथ में ये वात और पित्त इन दोनों को भी बैलेंस करता है अब वात और पित्त को दोष क्यों बोला जाता है क्योंकि इनके बीच का जो संतुलन हैझ में आ जायेगा I अब जब एक स्त्री मासिक धर्म पर होती है उसके शरीर का वात और पित्त प्राक्रतिक रूप से बढ़ जाते हैं अगर वो बिगड़ जाएँ तो आपके शरीर में रोग उत्पन्न होते है इसलिए इनको त्रिदोष बोला जाता है अब आपको ये चीजे समझ में आगयी है तो रजस्वला परिचर्या में जो भी कार्य एक मेंसुरटिंग स्त्री को करने से माना किये गए हैं उनके पीछे का विज्ञान भी सम क्यों बढ़ जाते हैं क्योंकि अब शरीर को एक नयी एक्टिविटी को हैंडल करना होता है इसमें वात क्यों बढ़ता है क्योकिं वात मोशन का कार्य करता है और जो नेचुरल ब्लड फ्लो है वो बढ़ जाता है। तो शरीर के अन्दर वात को बढ़ना पड़ता है इन क्रियाओं में एनर्जी की भी जरुरत होती है इसलिए पित्त भी बढ़ जाता है इसलिए ऐसे सभी कार्यो को वर्जित बताया गया है मासिक धर्म के दौरान जिससे आपका वात और पित्त डिस्टर्ब हो जातें हों जैसे कि नहानें को वर्जित बताया गया है एक रजस्वला महिला को नहाना नहीं चाहिये क्यों नहीं नहाना चहिये क्योंकि पित्त प्राक्रतिक रूप से बढ़ा हुआ है आप नहा कर उसके Against काम करे I घरों में भी खाना खाने के तुरंत बाद नहाने को माना किया जाता है क्योंकि digestion के लिए पित्त बढ़ जाता है आपका जो temperature है पेट के digestion के लिए बढ़ता है। इसलिए नहा कर उसके अगेंस्ट नहीं जाना चहिये इसलिए रजस्वला परिचर्या में नहाना वर्जित हैI
मासिक धर्म के दौरान ऐसी बात लिखी गयी है और इसी दौरान मेहँदी लगाने से भी मना किया जाता है क्योंकि मेहँदी एक कुलिंग इफ़ेक्ट छोडती है और पित्त को डिस्टर्ब कर सकती है इसलिए मेहँदी लगाने को भी मासिक धर्म के दौरान एक रजस्वला महिला को मना करते हैं अब ज्यादा तेज से हँसना जोर-जोर से बातें करना शोर शराबे में रहना ये सब से भी वात असुन्तुलित होता है और वात का प्रकोप बढ़ जाता है इसलिए स्त्रीयों को मासिक धर्म में शांत जगह पर रहने को कहा जाता है अब बाल क्यों नहीं झाड़ना चाहिये, नाख़ून क्यों नहीं काटना चाहिये, जब मेंसुरेसन के दौरान बाल रूखे और रफ हो जाते है और झड़ने लगते है इसलिए आपको बाल को झाड़ने से माना करते हैं ऐसा होता क्यूँ है क्योंकि वात दोष है वो आपके नर्वस सिस्टम और स्केल्टन सिस्टम को नियंत्रित करता है वात आप में बढ़ जाता है तो आपकी bones की नेचुरल डेंसिटी घट जाती है और ब्रिटल(भंगुर) हो जाती है इसीलिए आपको नाख़ून काटने से मना किया जाता है ये वो समय होता है जब ज्यादा एक्टिविटी नहीं करने दी जाती है क्योंकि आपकी (bones)हड्डियाँ भंगुर(brital) होती है और इंजुरी(injuri) होने का खतरा होता है इसलिए आपको नाख़ून काटने और बाल झाड़ने से मना किया जाता है अब इस लिस्ट में मंदिर न जाना तो नहीं लिखा है लेकिन इसके पीछे एक कॉमन सेंस है अगर आप नहीं नहायें है तो आप किस प्रकार मंदिर जायेंगे या पूजा करेंगें तो एक कारण तो ये हो सकता है लेकिन मंदिर न जाने के पीछे एक कारण और है मंदिरों में भी उर्जा का संचार होता है और ये उर्जा तंत्र और आगम शास्त्रों में दिये गए चक्र विद्या के अनुसार प्रतिष्ठित की जाती है जो आपके अन्दर के वात और पित्त के संतुलन को बिगाड़ सकती है वैसे भी देखिये अगर आप मंदिर हो कर आइये तो आपके अन्दर एक स्पंदन महसूस होता है। आपको आपके अन्दर एक हायर स्टेट ऑफ़ कांसिसनेस का अनुभव होता है इसलिए ये ऊर्जायें रजस्वला स्त्री के वात और पित्त को डिस्टर्ब न करदें जिसके कारण मासिक धर्म के समय उनको पीड़ा ना उठानी पड़े इसलिए उनको मंदिर जाने से मना किया जाता है। अब बहुत सी बहनों के मन में यह प्रश्न आ रहा होगा की जब मासिक धर्म के समय बहुत ढेर सारे कार्य नहीं करने दिए जा रहे जैसे नहाने नहीं दिया जा रहा है, सोने नहीं दिया जा रहा है, बहुत तेजी से बात नहीं करने दी जा रही है मंदिर नहीं जाने दिया जा रहा है तो उन्हें करना क्या चाहिये तो सनातन धर्म में मासिक धर्म के दौरान एक जगह पर मौन बैठकर साधना करने को महत्व दिया गया है क्योंकि जिस स्त्री को मासिक धर्म होता है। रजस्वला बोला जाता है। यानि की जो रज है उसका हाश है। क्षय हो रहा है। तो ये जो रज है एक्टिविटी को डिनोट करता है जैसे प्रकृति के तीन गुणों में रज,सत,तम के बारे में आपने सुना है ये रज एक्टिविटी मोशन को प्रदर्शित करता और शरीर से ये रज निकल रहा है। इसलिए आप भारी महसूस करती है और इसलिए अपने अन्दर आलस्य और थकान को महसूस करती हैं। अब ऐसे में आप के शरीर में सत और तम दो गुण बचते हैं सनातन धर्म के अनुसार आप सत गुण की तरफ बढ़ें, रज की अनुपस्थिति में आप बहुत आसानी से सत और तम की तरफ जा सकती हैं सबसे अच्छी साधना जो होती है वो आपके मासिक धर्म के दौरान होती है क्योंकि उसमे रज आपको लीव कर जाता है तो आप एक्टिविटी से दुर चली जाती हैं जो एक साधना के समय में सबसे बड़ा डिस्टर्बेंस होता है। इसलिये आप देखियेगा की मासिक धर्म के दौरान मौन रह कर साधना करने में आपका ध्यान आसानी से लग जायेगा पर (Menstruation) स्त्रियों में एक श्राप ना होकर एक वरदान ही है। ये scientifically भी proven है क्योंकि अगर आप देखे तो पुरुषो को कड़ी मेहनत और साधना करनी पड़ती है। शरीर को मेंटेन करने के लिए वहीँ पर मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के जो बॉडी टोक्सिन है वो आसानी से शरीर से निकल जाते है। और यही वज़ह स्त्रियाँ जो होती है वों पुरुषों से अधिक आयु तक जीती है। और स्त्रियों में जो हृदय आदि के रोग है वों पुरुषो की अपेक्षा कम होते हैं तो मासिक धर्म धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से स्त्रियों के लियें वरदान ही है। और इसी मे हमारी मातायें बहनें रजस्वला परिचर्या का भी पालन कर लें तो उन्हें पीड़ा आदि से भी मुक्ति मिले क्योंकि आयुर्वेद में भी मासिक धर्म के दौरान होने वाली पीड़ा को साधारण नहीं माना गया है। वहाँ पर ये बताया गया है की अगर आपके त्रिदोष जो है वात पित्त कफ यें तीनो संतुलित होंगें तो आपको पीड़ा बिलकुल भी नहीं होगी।
हम आशा करतें है कि इस पोस्ट को जो भी मातायें बहनें और मेरे भाई देख रहें होंगें उनको सनातन धर्म में मासिक धर्म को लेकर जो भी समस्यायें दी गई हैं उनके विषय में जो प्रश्न उठते हैं उनके उत्तर मिल गयें होंगें।
FAQ –
Ques – मासिक धर्म कितने वर्ष तक होता है?
Ans – आपके अंतिम मासिक धर्मको रजोनिवृत्ति कहा जाता है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति होने की औसत आयु 50 से 52 वर्ष है। कुछ महिलाओं में 60 वर्ष की आयु की देरी तक भी रजोनिवृत्ति हो सकती है।
Ques – मासिक धर्म क्या होता है?
Ans – जब हरेक महीने आपकी योनि से रक्तस्राव होता है, तो यह मासिक धर्म होता है। मासिक धर्म शरीर के मासिक चक्र का प्राकृतिक हिस्सा होते हैं। मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के शरीर में निकलने वाले हॉर्मोन आपके गर्भाशय के अस्तर को अलगकर योनि से बाहर निकाल देते हैं। मासिक धर्म में रक्त, श्लेष्म और गर्भाशय के अस्तर की कुछ कोशिकाएँ होती हैं।