माँ लक्ष्मी की आराधना

 

माँ लक्ष्मी की आराधना  – हिंदी पंचांग के अनुसार के अनुसार इस वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन के दिन ही माँ लक्ष्मी जयंती का पर्व भी मनाया जायेगा। मुख्यतः यह पर्व दक्षिण भारत की तरफ अधिक मनाया जाता है। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को लक्ष्मी जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा 24 मार्च को सबह 9 बजकर 54 मिनट से आरम्भ होकर 25 मार्च को 12 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो रही है।

माँ लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहुर्त 

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माँ लक्ष्मी की आराधनाइस वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 व 25 मार्च दोनों ही दिन पड रही है इसलिए उदय तिथि के अनुसार 25 मार्च को लक्ष्मी जयंती व लक्ष्मी पूजन का समय इस दिन सुबह 6 बजे से लेकर सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इस दिन विधि विधान से माँ लक्ष्मी का पूजन करने से जातक को सुख़-समृधि का आशीर्वाद प्राप्त होता है माँ लक्ष्मी की कृपा उस पर सदैव बनी रहती है। 

द्वापर में माता लक्ष्मी जी ने भगवान कृष्ण जी की पत्नी के रूप में अवतार लिया व श्री हरि जी की पत्नी पद्मा के रूप में भी अवतार हुआ। परन्तु लक्ष्मी जी के जन्म से ही सदैव उन्हें धन की देवी के रूप में ही पूजा जाता है। 

श्री अष्ट लक्ष्मी स्त्रोत

माँ लक्ष्मी को रूठने पर मनाने के उपाय श्री अष्ट लक्ष्मी स्त्रोत

मंत्र व पूजा 

माँ लक्ष्मी की आराधना से आप माँ लक्ष्मी को रूठने पर मनाने के उपाय ज्योतिष शास्त्र के के अनुसार कर सकते हैं। माँ लक्ष्मी के अष्टरुपों की नियमित रूप से आराधना करना शुभ फलदायक माना गया है। अष्टलक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है। आपके घर में लक्ष्मी जी का स्थाई वास बना रहता है। और यह परिवार की समृधि के लिए शुभ माना जाता है। माँ लक्ष्मी जी की पूजा के लिये शुक्रवार का दिन शुभ माना जाता है चतुर्थी, नवमीं व चौदस तिथि को कृष्णपक्ष को छोड़कर अतः शुक्लपक्ष में  शुभ तिथि से माता लक्ष्मी के अष्टस्त्रोत के पाठ करने के साथ श्री यंत्र को अपने घर या दूकान में स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करतें है। तो निश्चित ही आपके व्यापार में वृद्धि व धन में बढोतरी होती है।

परिवारिक और व्यापारिक क्षेत्रों में समृधि और वृद्धि के लिये अष्टलक्ष्मी स्त्रोत और श्री यंत्र कि पूजा विशेष लाभकारी है। श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ माना गया है। पूजा में श्वेत वस्तुओं दही, खीर आदि का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है। माँ लक्ष्मी जी की पूजा करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें। लाल कपडे पर दक्षिणावर्ती शंख को विष्णु जी व लक्ष्मी जी के संमुख रखें और पूर्ण विधि-विधान से व्रत एवं पूजा को शुक्रवार के दिन से प्रारम्भ करते हुए नियमित रूप से करें।

इसका प्रारम्भ करते समय इसकी संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए और संख्या पूरी होने पर उद्धापन अवश्य करना चाहिए प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए। जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है। लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए।

माँ लक्ष्मी धन-संपदा व ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। माँ लक्ष्मी के बारे में कहा जाता है इनका स्वभाव चंचला है परन्तु यह वहाँ निवास करती हैं, जो स्थान इनके मन के अनुकूल हो अर्थात आपका निवास साफ़-सुथरा व सुसज्जित हो, वैसे तो लक्ष्मी जी किसी एक स्थान पर ज्यादा समय तक स्थिर नहीं रहती है। फिर भी कुछ विचारधारा के अनुसार जिसे व्यक्ति समझना नहीं चाहता है। की माँ लक्ष्मी जिस घर में अपनी कृपा दृष्टि बना लें, वहां लक्ष्मी का ही निवास मान लिया जाता है। माँ लक्ष्मी का स्थाई रूप से घर में निवास बनाये रखने के लिये पूर्ण दायित्त्व घर के सदस्यों पर ही है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार क्योंकि घर के सदस्यों का कर्तव्य है की वे —

    1. अपने घर में सोहार्दपूर्ण व्यवाहर बनाये रखें, और
    2. घर के बाहर व घर के अंदर स्त्रियों का सम्मान करें,
    3. कन्याओं के पैर छुकर आशीर्वाद लें कुछ पैसे अवश्य दान दें, 
    4. अपने घर के बड़े-छोटों को उचित सम्मान दें,
    5. गाय की सेवा करें,
    6. सुंदर व आरामदायक जूत्ते पहने, 
    7. फटे-कटे-जल्रे वस्त्र न पहनें स्वच्छ व सुंदर वस्त्र पहने
    8. खास कर शुक्रवार को इत्र लगायेंl
    9. खीर का उपयोग करें व दान करें,   
    10. चांदी के गिलास में पानी पीयें। 
    11. अच्छी वाणी का प्रयोग करें।

माँ लक्ष्मी का प्रबल शत्रु एवं प्रतिद्वंदी दरिद्रता है। दरिद्रता अपने सहयोगी कर्ज के माध्यम से घुसपैठ करने को हमेशा तत्पर रहती है। दरिद्रता के सहयोगी कर्ज को ज्यादा समय तक रुकने का मौका मिला तो लक्ष्मी घर से पलायन कर जाती है। लक्ष्मी अर्थात धन हमेशा से ही जीवन का अनिवार्य अंग रहा है। धन की अनिवार्यता पर स्वयं भर्तृहरि महाराज ने भी कहा है कि…

यस्यार्था: तस्य मित्राणि यस्यार्था: तस्य बांधव:।

यस्यार्था: स पुमांलोके यस्यार्था: स च जीवति।।

अर्थात जिसके पास धन है मित्र भी उसी के हैं। जिसके पास धन है भाई भी उसी के हैं। जिसके पास धन है पुरुषार्थ भी उसी के पास है। जिसके पास धन है जीवन भी उसी के पास है। अर्थात धन के अभाव में कुंठा व अभाव के अलावा कुछ नहीं।

समुद्र मंथन के समय जब रत्न निकले तो इनके बीच कुछ उपरत्न आदि भी निकले। इन्हीं में से एक देवी अलक्ष्मी भी थीं। कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र से वारुणी यानी मदिरा लेकर निकलने वाली स्त्री ही अलक्ष्मी थीं, मदिरा को भगवान विष्णु की अनुमति से दैत्यों को दे दिया गया। वहीँ दुसरी मान्यताओं के मुताबिक अलक्ष्मी की उत्पत्ति भी समुद्र से हुई थी, इस कारण उन्हें लक्ष्मी की बड़ी बहन कहा जाता है।       

देवी अलक्ष्मी का विवाह उद्दालक नाम के मुनि से हुआ था। जब मुनि देवी अलक्ष्मी को लेकर अपने आश्रम गए तो अलक्ष्मी ने उस आश्रम में प्रवेश करने से माना कर दिया। जब मुनि ने इसका कारण पूछा तो देवी अलक्ष्मी ने बताया कि वे किन घरों में निवास करती हैं और कैसे जगहों पर वे प्रवेश भी नहीं करतीं। देवी अलक्ष्मी के द्वारा बताई गई बातों से धन हानि के कारणों और उनसे बचाव के बारे में आसानी से जाना जा सकता है। 

शास्त्रों में अनेक छोटी-छोटी बातें मिलती हैं जिन पर ध्यान ना दिया जाए तो व्यक्ति कर्ज में आ जाता है। लक्ष्मी उनसे मुंह मोड़ लेती है लक्ष्मी का अभाव अर्थात धन का ना होना ही कर्ज का प्रमुख कारण है। हम यदि इन बातों पर ध्यान दें तो कर्ज़ का दैत्य हमे ज्यादा समय तक अपने पाश में नहीं बांध सकता। नीचे कुछ ऐसे ही कारण है जिनके कारण लक्ष्मी हमसे रुष्ट हो जाती है।

माँ लक्ष्मी को रूठने पर मनाने के उपाय

  1. मंगलवार को कर्ज लेने पर लक्ष्मी रुष्ट हो जाती है तथा कर्ज का निवास घर में स्थाई रूप से हो जाता है।
  2. बुधवार को ऋण (कर्ज) देने पर लक्ष्मी अप्रसन्न होती है बार-बार ऐसा करने पर वह उस घर को त्याग देती है।
  3. कमल पुष्प, बिल्वपत्र को लांघने अथवा पैरों से कुचलने पर लक्ष्मी रुष्ट होकर अपना निवास उस घर से बदल देती है जहां ऐसा होता है।
  4. ईशान कोण में शौचालय एवं रसोई घर बना लेने से लक्ष्मी उस घर से मुंह मोड़ लेती है यही वह अवसर होता है जब कर्ज दबे पांव घर में प्रवेश कर लेता है कर्ज को फलने फूलने में उसके साथ ही रोग में हानि विशेष सहयोग करते हैं।
  5. ब्रह्म स्थान में जूठन गंदगी तथा गड्ढा करने वालों को लक्ष्मी कभी माफ नहीं करती है वह अपनी कृपा दृष्टि से अति शीघ्र वंचित कर देती है।
  6. जो निर्वस्त्र होकर स्नान करता है नदियों तालाबों के जल में मल मूत्र त्यागता है उसको लक्ष्मी अपने शत्रु कर्ज की दया पर छोड़ देती है।
  7. जो अनावश्यक भूमि भवन की दीवारों पर लिखता है कुत्सित अन्न को खाता है उस पर भी लक्ष्मीकृपा नहीं करती है।
  8. जो पैर से पैर रगड़ कर धोता है अतिथियों का सम्मान नहीं करता है याचकों को दुत्कारता है पशु पक्षियों को चारा चुगा नहीं डालता है। गाय पर प्रहार करता है ऐसे व्यक्ति को लक्ष्मी तुरंत छोड़ देती है।
  9. जो संध्या समय घर प्रतिष्ठान में झाड़ू लगाता है जो प्रातः एवं संध्या काल में धूपबत्ती से ईश्वर की आराधना नहीं करता है जहां तुलसी के पौधे की उपेक्षा अनादर होता है उसको लक्ष्मी उसके दुर्भाग्य के हाथों में सौंप देती है।
  10. जिस घर में परस्पर कलह रहता हो महिलाओं का अनादर होता हो माता-पिता की उपेक्षा होती हो उस व्यक्ति से लक्ष्मी अपनी दृष्टि फेर लेती है।
  11. जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद भी सोता रहता है उस पर लक्ष्मी की कृपा दृष्टि नहीं होती ऐसे लोग सामान्यतः अकर्मण्य तथा काम से जी चुराने वाले होते हैं। ये व्यक्ति श्रम साध्य कार्यों से दूर भागते हैं कर्म के अभाव में लक्ष्मी अपनी कृपा की वर्षा कैसे करें।
  12. देवी देवताओं की तस्वीर मूर्ति की तरफ पैर करके सोता हो उस पर तो निश्चित रूप से किसी भी देवता की कृपा नहीं हो सकती है।
  13. मजबूर एवं अभावग्रस्त की हंसी उड़ाने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी अपनी कृपा से वंचित कर देती है।
  14. जिस व्यक्ति की नियत में खोट हो अर्थात सामर्थ के होते हुए भी किसी से लिया गया धन ना लौटाता हो उस व्यक्ति को लक्ष्मी की कृपा से वंचित होने से साक्षात विष्णु भी नहीं रोक सकते हैं।
  15. जो व्यक्ति बिना पुरुषार्थ के धनी बनने हेतु झूठ चोरी बेईमानी जुआ सट्टा इत्यादि का सहारा लेता है उसे तो लक्ष्मी बिना कोई अवसर दिए तुरंत दरिद्रता के हवाले कर देती है।
  16. जो व्यक्ति किसी भी प्रकार के व्यसन को अपनाता है तो वह निरंतर लक्ष्मी से दूर होता चला जाता है इसमें नशा उत्पन्न करने वाले व्यसन अत्यंत घातक माने गए हैं इसे लक्ष्मी धन का अपव्यय तो होता ही है साथ ही शरीर भी अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है।
  17. ऐसे अनेक कारण हैं जो देखने में भले ही साधारण लगते हो परंतु व्यवहार में हम इसका मूल्यांकन करें तो धीरे-धीरे कर्ज तथा विपत्ति की ओर धकेलने में इन कारणों का प्रमुख हाथ होता है।  

   

श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पूजन विधि

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माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय –  श्री अष्ट लक्ष्मी – स्त्रोत का पाठ करने के लिए घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए तथा उत्तर की दिशा में माता लक्ष्मी व गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए।  वास्तु के अनुसार घर के दक्षिण पूर्व स्थान पर घर में रसोई बनाये या वहां पर रेड लैंप रखे या सुबह श्याम दिया जलाएं, साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए उन्हें प्रणाम करना चहिए, इसके पश्चात उक्त मंत्र बोलना चाहिए। पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी कि कथा का श्रवण भी किया जा सकता है। माँ लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाना चाहिए और धूप, दीप, गंध और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए।

माँ लक्ष्मी के 8 रूप माने जाते है। हर रूप विभिन्न कामनाओ को पूर्ण करने वाला है। नवरात्रि दिपावली और हर शुक्रवार को माँ लक्ष्मी के इन सभी रूपों की वंदना करने से असीम सम्पदा और धन की प्राप्ति होती है।

॥ श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः ॥ माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय

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आदि लक्ष्मी: या महा लक्ष्मी:

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माँ लक्ष्मी का सबसे पहला अवतार जो ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है।

मंत्र

सुमनोवन्दितसुन्दरि माधवि चन्द्रसहोदरि हेममयि

मुनिगणकाङ्क्षितमोक्षप्रदायिनि मञ्जुलभाषिणि वेदनुते ।

पङ्कजवासिनि देवसुपूजिते सद्गुणवर्षिणि शान्तियुते

जय जय हे मधुसूदनकामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

 

वीरा धैर्यलक्ष्मीः

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जीवन में कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए, लड़ाई में वीरता पाने ले लिए शक्ति प्रदान करती है।

मंत्र

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जय वरवर्णिनि वैष्णवि भार्गवि मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमयि

सुरगणविनुते अतिशयफलदे ज्ञानविकासिनि शास्त्रनुते ।

भवभयहारिणि पापविमोचिनि साधुसमाश्रितपादयुगे

जय जय हे मधुसूदनकामिनि धैर्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

 

गजलक्ष्मीः

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माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय

उन्हें गज लक्ष्मी भी कहा जाता है, पशु धन की देवी जैसे पशु और हाथियों, वह राजसी की शक्ति देती है ,यह कहा जाता है गज – लक्ष्मी माँ ने भगवान इंद्र को सागर की गहराई से अपने खोए धन को हासिल करने में मदद की थी। देवी लक्ष्मी का यह रूप प्रदान करने के लिए है और धन और समृद्धि की रक्षा करने के लिए है।

मंत्र

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जयजय दुर्गतिनाशिनी कामिनी सर्वफलप्रद शास्त्रमये |

रथगज तुरगपदादी समावृत परिजनमंडित लोकनुते ||

हरिहर ब्रम्हा सुपूजित सेवित तापनिवारिणी पादयुते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनी गजलक्ष्मी परिपालय माम् ||

 

विजय लक्ष्मी: या जया लक्ष्मी:

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विजया लक्ष्मी का मतलब है जीत। विजय लक्ष्मी जीत का प्रतीक मणि जाती है और उन्हें जाया लक्ष्मी भी कहा जाता है। वह एक लाल साड़ी पहने एक कमल पर बैठे, आठ हथियार पकडे हुए रूप में दिखाई गयी है ।

मंत्र

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कमलनिवासिनि सद्गतिदायिनि विज्ञानविकासिनि काममयि

अनुदिनमर्चितकुङ्कुमभासुरभूषणशोभि सुगात्रयुते ।

सुरमुनिसंस्तुतवैभवराजितदीनजानाश्रितमान्यपदे

जय जय हे मधुसूदनकामिनि विजयलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

 

आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी :

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माँ लक्ष्मी का सबसे पहला अवतार जो ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है।

मंत्र

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सुमनसवन्दित सुन्दरि माधवी चन्द्र सहोदरीहेममये |

मुनिगणमंडित मोक्षप्रदायिनी मंजुलभाषिणीवेदनुते ||

पंकजवासिनी देवसुपुजित सद्रुणवर्षिणी शांतियुते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनी आदिलक्ष्मी सदापलीमाम ||

 

धन लक्ष्मी :

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धन और वैभव से परिपूर्ण करने वाली लक्ष्मी का एक रूप भगवान विष्णु भी एक बारे देवता कुबेर से धन उधार लिया जो समय पर वो चूका नहीं सके , तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज मुक्त करवाया था।

मंत्र

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धिमिधिमी धिंधिमी धिंधिमी धिंधिमी दुन्दुभी नाद सुपूर्णमये |

घूमघूम घुंघुम घुंघुम घुंघुम शंखनिनाद सुवाद्यनुते ||

वेदपूराणेतिहास सुपूजित वैदिकमार्ग प्रदर्शयुते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनी धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम ||

 

धान्य लक्ष्मी :

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धान्य का मतलब है संपदा  : मतलब वह धन-धान्य की दात्री है।

मंत्र

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अहिकली कल्मषनाशिनि कामिनी वैदिकरुपिणी वेदमये |

क्षीरमुद्भव मंगलरूपिणी मन्त्रनिवासिनी मन्त्रनुते | |

मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पाद्युते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनी धान्यलक्ष्मी सदा पली माम||

 

सनातना लक्ष्मी :

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सनातना लक्ष्मी का यह रूप बच्चो और अपने भक्तो को लम्बी उम्र देने के लिए है। वह संतानों की देवी है। देवी लक्ष्मी को इस रूप में दो घड़े , एक तलवार , और एक ढाल पकड़े , छह हथियारबंद के रूप में दर्शाया गया है ; अन्य दो हाथ अभय मुद्रा में लगे हुए है एक बहुत ज़रूरी बात उनके गोद में एक बच्चा है।

मंत्र

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अहिखग वाहिनी मोहिनी चक्रनि रागविवर्धिनी लोकहितैषिणी

स्वरसप्त भूषित गाननुते सकल सूरासुर देवमुनीश्वर ||

मानववन्दित पादयुते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनी संतानलक्ष्मी त्वं पालयमाम ||

 

विद्या लक्ष्मी

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माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय

 

विद्या धन अर्थात शिक्षा के साथ साथ ज्ञान भी है। माँ सरस्वती का अनुसरण करते हुए कमाया गया धन शुभ व शुद्ध लक्ष्मी जी के स्वरूप को प्रदान करना, यह रूप हमें ज्ञान , कला , और विज्ञान की शिक्षा प्रदान करती है जैंसा माँ सरस्वती देती है। विद्या लक्ष्मी को कमल पे बैठे हुए देखा गया है  उनके चार हाथ है , उन्हें सफेद साडी में और दोनों हाथो में कमल पकड़े हुए देखा गया है  और दूसरे दो हाथ अभया और वरदा मुद्रा में है।

मंत्र

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प्रणत सुरेश्वरी भारती भार्गवी शोकविनासिनी रत्नमये |

मणिमयभूषित कर्णविभूषण शांतिसमवृत हास्यमुखे ||

नवनिधिदायिनी कलिमहरिणी कामित फलप्रद हस्त युते |

जय जय हे मधुसुदन कामिनीविद्यालक्ष्मी सदा पालय माम ||

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धनलक्ष्मीः

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धिमिधिमिधिन्धिमिदुन्दुमदुमदुमदुन्दुभिनादविनोदरते

बम्बम्बों बम्बम्बों प्रणवोच्चारशङ्खनिनादयुते ।

वेदपुराणस्मृतिगणदर्शितसत्पदसज्जनशुभफलदे

जय जय हे मधुसूदनकामिनि धनलक्ष्मि परिपालय माम् ॥

।इति श्रीअष्टलक्ष्मीस्तुतिः सम्पूर्णा।

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6 शुक्रवार तक करें ये काम

माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय  लगातार 6 शुक्रवार तक मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगा कर उसे छोटी कन्याओं में प्रसाद के रूप में बांट दें,  ऐसा करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है।

भगवान शिव के कथन अनुसार – लक्ष्मी जी की आराधना

माँ लक्ष्मी को रूठने पर मानाने के उपाय – महालक्ष्मी के अनंत नाम और अनंत महिमाएं हैं, लेकिन यहां माता महालक्ष्मी के कुछ शुभ नाम हैं, जिनके बारे में भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा था कि जो कोई भी इन नामों का पाठ करेगा, उसे माता लक्ष्मी की निरंतर भक्ति का आशीर्वाद मिलेगा और उसे सभी धन और संपत्ति प्राप्त होंगी।

भगवान शिव ने कहा: जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर उसके इन शुभ नामों का उच्चारण करेगा, अर्थात।  लक्ष्मी, श्री, कमला, विद्या, माता, विष्णुप्रिया (विष्णु की प्रिय), सती, पद्मालया (कमल को अपना निवास स्थान मानती हैं), पद्महस्ता (हाथ में कमल लिए हुए), पद्माक्षी (कमल-नेत्र वाली), लोकसुंदरी, भूतानाम ईश्वरी (प्राणियों को नियंत्रित करने वाली), नित्या, सह्या (शाब्दिक, सहनीय), सर्वगता (सर्वव्यापी), शुभा (शुभ), विष्णुपत्नी, महादेवी, क्षीरोदतनया (दूधिया सागर की पुत्री), रमा, अनंता (अंतहीन), लोकमाता (संसार की माता),  भू, नीला, सर्वसुखप्रदा (सभी सुख देने वाली), रुक्मिणी, सीता, शुभा (शुभ), सर्ववेदवती (सभी वेदों को धारण करने वाली), सती, सरस्वती, गौरी, शांति, स्वाहा (देवताओं को अर्पित की जाने वाली आहुति), स्वधा (मृत पूर्वजों को अर्पित की जाने वाली आहुति), रति, नारायणी, विष्णु की सनातन सुंदर पत्नी जो उन्हें कभी नहीं छोड़ती, वह धन और दोषरहित धन-धान्य प्राप्त करती है।

पद्म महापुराण

माता महालक्ष्मी के इन शुभ नामों का जाप करें और खुश रहें।

 

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