संतान सप्तमी व्रत 2023 (Santan Saptami Vrat)

संतान सप्तमी व्रत 2023

संतान सप्तमी व्रत 2023 (Santan Saptami Vrat)

संतान सप्तमी व्रत 2023: का व्रत माताएं संतान प्राप्ति व अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए रखती है। इस व्रत के दिन भगवान् शिव व माता पार्वती जी की पूजा की जाती है इसकी जानकारी आपको हम नीचे दे रहे है। इसे ध्यान से पढिये

संतान सप्तमी कब मनाई जाती हैं (Santan Saptami Day)

हिंदी पंचांग के अनुसार यह व्रत भादो मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता हैं। कुछ स्थान और लोगो के अनुसार इस व्रत को ललिता सप्तमी भी कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष में संतान सप्तमी मानाने की तिथि की अलग अलग दिन हो सकती है।

संतान सप्तमी व्रत कब है 2023 (Santan Saptami 2023 Date and Time)
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष संतान सप्तमी का त्यौहार 22 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस साल संतान सप्तमी व्रत पूजा के मुहूर्त का समय इस प्रकार है –

त्यौहार व  पर्व संतान सप्तमी
शुभ तिथि भाद्प्रद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को
2023 में कब है 22 सितंबर
पूजा का शुभ मुहुर्त 07 बजकर 35 मिनट से सुबह 09 बजकर 10 मिनट के बीच एवं

दोपहर में 01 बजकर 55 मिनट से शाम 05 बजकर 05 मिनट तक

 

संतान सप्तमी 2023 शुभ मुहूर्त, एवं तिथि (Santan Saptami Shubh Muhurt, Tithi)

सप्तमी तिथि 21 सितंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 22 सितंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 35 मिनट से सुबह 09 बजकर 10 मिनट के बीच होता हैं। समय अवधि 01 घंटा 35 मिनट इसके अलावा दोपहर में 01 बजकर 55 मिनट से शाम 05 बजकर 05 मिनट तक भी संतान सप्तमी की पूजा की जा सकती है।

संतान सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता हैं (Santan Saptami Mahatva)
संतान सप्तमी व्रत स्त्रियाँ पुत्र प्राप्ति की इच्छा हेतु रखती हैं। यह व्रत संतान के समस्त दुःख, व कष्टों के निवारण के उद्देश्य से किया जाता हैं। संतान की सुरक्षा का भाव लिये स्त्रियाँ इस व्रत को पुरे विधि विधान के साथ धारण करती हैं। इस व्रत पुरुष व माता अर्थात माता पिता दोनों मिलकर संतान प्राप्ति व संतान के सुख की कामना के लिए करतें हैं।

संतान सप्तमी व्रत विधि (Santan Saptami Vrat Vidhi)
  • भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवर्त हो कर माता-पिता संतान प्राप्ति  के लिए अथवा उनके उज्जवल भविष्य की कामना के लिए इस व्रत का प्रारंभ करते हैं।
  • इस व्रत की पूजा को दोपहर तक पूरी कर ली जाये, तो उत्तम माना जाता हैं।
  • प्रातः स्नान कर, स्वच्छ कपड़े पहनकर चौकी बनाकर उस पर भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा रखी जाती हैं।
  • शिव पार्वती की पूजा विधि-विधान से की जाती हैं।
  • इनकी पूजा कर उन्हें चढ़ाया गया प्रसाद ही ग्रहण किया जाता है, और पूरे दिन व्रत रखा जाता है।

 

संतान सप्तमी पूजा विधि (Santan Saptami Puja Vidhi)
  • शिव पार्वती जी की प्रतिमा का स्नान कराकर चन्दन का लेप लगाया जाता हैं। अक्षत, श्री फल, नारियल, सुपारी, फल-फुल आदि अर्पण किये जातें हैं धुप-दीप प्रज्वलित कर भोग लगाया जाता हैं।
  • संतान की रक्षा का संकल्प लेकर भगवान शिव को डोरा बांधा जाता हैं।
  • बाद में इस डोरे को अपनी संतान की कलाई में बाँध दिया जाता हैं।
  • इस दिन भोग में खीर, पूरी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं. भोग में तुलसी का पत्ता रख उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखा जाता हैं।
  • परिवार जनों के साथ मिलकर आरती की जाती हैं। भगवान के सामने संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा हेतु प्रार्थना की जाती हैं।
  • बाद में उस भोग को प्रसाद स्वरूप सभी परिवार जनों एवं आस पड़ोस में वितरित किया जाता हैं।

संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat Katha)

पूजा के बाद कथा सुनने का महत्व सभी हिन्दू व्रत में मिलता हैं। संतान सप्तमी व्रत की कथा पति पत्नी साथ मिलकर सुने, तो अधिक प्रभावशाली माना जाता हैं। इस व्रत का उल्लेख श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर किया था. उन्होंने बताया यह व्रत करने का महत्व लोमेश ऋषि ने उनके माता पिता (देवकी वसुदेव) को बताया था. माता देवकी के आठ पुत्रो को कंस ने मार दिया था, जिस कारण माता पिता के जीवन पर संतान शोक का भार था, जिससे उभरने के लिए उन्हें संतान सप्तमी व्रत करने को कहा गया –
लोमेश ऋषि द्वारा संतान सप्तमी की व्रत कथा
अयोध्या का राजा था नहुष, उसकी पत्नी का नाम चन्द्र मुखी था चन्द्र मुखी बड़ी दुखी: रहा करती थी किन्तु उसने संतान सप्तमी का व्रत किया और संतान का सुख़ प्राप्त हुआ, आगे की कथा – चन्द्र मुखी की एक सहेली थी, जिसका नाम रूपमती था, वो उनके नगर के ब्राह्मण की पत्नी थी. दोनों ही सखियों में बहुत प्रेम था. एक बार वे दोनों सरयू नदी के तट पर स्नान करने गयी, वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ संतान सप्तमी का व्रत कर रही थी. उनकी कथा सुनकर इन दोनों सखियों ने भी पुत्र प्रप्ति के लिए इस व्रत को करने का निश्चय कर लिया, लेकिन घर आकर वे दोनों भूल गई. कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई और दोनों ने पशु योनी में जन्म लिया।
कई जन्मो के बाद दोनों ने मनुष्य योनी में जन्म लिया, इस जन्म में चन्द्रवती का नाम ईश्वरी एवम रूपमती का नाम भूषणा था. इश्वरी राजा की पत्नी एवं भुषणा ब्राह्मण की पत्नी थी, इस जन्म में भी दोनों में बहुत प्रेम था. इस जन्म में भूषणा को पूर्व जन्म की कथा याद थी, इसलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रताप से उसे आठ पुत्र प्राप्त हुए, लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया, इसलिए उसकी कोई संतान नहीं थी. इस कारण उसे भूषणा ने इर्षा होने लगी थी. उसने कई प्रकार से भुषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की, लेकिन उसके भुषणा के व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रो को कोई क्षति ना पहुँची। थक हार कर ईश्वरी ने अपनी इर्षा एवं अपने कृत्य के बारे में भुषणा से कहा और क्षमा भी माँगी. तब भुषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी के व्रत को करने की सलाह दी. ईश्वरी ने पुरे विधि विधान के साथ व्रत किया और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार संतान सप्तमी के व्रत का महत्व जानकर सभी मनुष्य पुत्र प्राप्ति एवं उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से इस व्रत का पालन करते हैं।

FAQ
Q : संतान सप्तमी कब है ?
Ans : हिंदी पंचांग के अनुसार 22 सितंबर को।
Q : संतान सप्तमी कब मनाया जाता है ?
Ans : भाद्प्रद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन।
Q : संतान सप्तमी के दिन किसकी पूजा की जाती है ?
Ans : विष्णु, शिव एवं पार्वती जी की पूजा की जाती है।
Q : संतान सप्तमी के व्रत के दिन क्या – क्या खाया जाता है ?
Ans : संतान सप्तमी के व्रत के दिन माताएं पुआ का भोग लगाती है और उसी को खाती है. इसके अलावा कुछ भी नहीं खाती है।
Q : संतान सप्तमी व्रत क्यों रखा जाता है ?
Ans : महिलाएं पुत्र प्राप्ति व अपने पुत्र की लंबी आयु एवं सुख समृद्धि के लिए इस दिन व्रत करती है।
Q : संतान सप्तमी व्रत पूजा विधि क्या है ?
Ans : इसकी जानकारी ऊपर दी हुई है।

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