स्वर विज्ञान के चमत्कार इडा, पिंगला व सुषुम्ना नाडी

 

इडा, पिंगला, और सुषुम्ना नाडी विचार के अनुसार स्वर विज्ञान के चमत्कार के बारे में बताया गया है। इन नाडियों का सही चलना और ध्यान रखने से हम अपने कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। यह ज्ञान हमें सफलता के शिखर तक पहुंचा सकता है। [divinepanchtatva.]()

आइये जानते है स्वर विज्ञान को  divinepanchtatva.com  में   यह ज्ञान पहली बार माता पार्वती और भगवान शिव के संवाद से प्रकट हुआ। शिवस्वरोदय – में माता पार्वती ने बहुत ही सरलता से अपनी बात भगवान शिव के सामने रखीं थी: –

स्वर विज्ञान के चमत्कार

स्वर विज्ञान के चमत्कार: इडा, पिंगला, और सुषुम्ना नाडी के कार्य ईश्वर के कथन अनुसार। इस दस्तावेज़ में, हम स्वर विज्ञान की महत्वपूर्ण तीन मुख्य नाडियों – इडा, पिंगला, और सुषुम्ना – के कार्य और उनके ईश्वरीय महत्व को जानेंगे। यह विषय गंभीरता से प्रस्तुत किया गया है, जो स्वर विज्ञान के गहरे संदर्भ में एक सामर्थ्यपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत करता है।

स्वर विज्ञान के चमत्कार  इडा, पिंगला व सुषुम्ना नाडी के कार्य भगवान शिव के कथन अनुसार-

स्वर विज्ञान के चमत्कार – माता पार्वती नें भगवान शिव से कहा हे प्रभु आपने अंनत ज्ञान प्रदान कियें इस धरती-धरा पर ऋषि-मुनियों ने उसको प्रसारित भी किया है। लोग उसकी साधन भी करते हैं। लकिन जरुर कुछ ऐसे विद्यायें हैं। जो आपके अंदर परम चेतना है। से इस श्रष्टि में प्रकट नहीं हुई है। चुकिं वह प्रकट नहीं हुई है। तो उसे किसी ऋषि-मुनि ने भी उसको धारण नहीं किया है। क्योंकि जो चीज भगवान शिव से प्रकट होती है। ऋषि-मुनि भी उसे धारण करते हैं। अपनी साधनाओ और समाधि के तप से आज ऐसा ज्ञान प्रकट कीजिये जो सर्वसिद्धि को देने वाला है। माता पर्वती ने ये नहीं कहा “मोक्ष सिद्धिकर्मज्ञानम मं प्रभु।। क्योंकि मोक्ष के लियें तो बहुत सारे ज्ञान हैं और तप के साधन योग दियें हुवें हैं

देव देव महादेव कृपां क्रत्वा मामोपरि

सर्व सिद्धि करं ज्ञानं कथयस्व मम प्रभो

देवी ने कहा :

 हे महादेव ज्ञानप्रदान करें जो सर्व पूर्णता प्रदान करता है!

श्रुदु त्वं कथितं देवी देहस्तं ज्ञानमुक्तमम्।

येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रणीयते”।।

सुनो, हे देवी, जैसा कि मैं तुम्हें शरीर के भीतर स्थित सर्वोच्च ज्ञान बताता हूं, जिसके उचित ज्ञान मात्र से व्यक्ति सर्वज्ञ बन जाता है।

ब्रह्माण्डखण्डपिण्डद्याः स्वरेणैव हि -निर्मितः। 

सृष्टिसंहारकर्ता च स्वरसाक्षणमहेश्वरः ॥20॥

शिवस्वरोदय

अर्थात् ब्रह्माण्ड तथा उसके खंड, पिंड आदि (सूर्य, आदि चन्द्र) स्वरों का निर्माण होता है।  स्वर साक्षात भगवान शिव का स्वरूप है, जो सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाले हैं। शिवस्वरोद्य के सन्दर्भ से यह निष्कर्ष निकाला गया है। कि स्वर-शास्त्र में परमपिता भगवान ‘शिव’ को ‘स्वर’ शब्द से अधिकृत किया गया है;  अर्थात् स्वर ही साक्षात् ‘शिव’ है।

 स्वरे च सर्व त्रैलोक्यं स्वरात्मस्वरूपकम् ||16||

शिवस्वरोदय

अर्थात् स्वर से ही त्रिलोक प्रतिष्ठित है। तथा स्वर ही ‘आत्मस्वरूप’ है।  स्वर को जानने से आत्मा का बोध होता है।  इस कथन में भी परमपिता भगवान को ‘स्वर’ की संज्ञा दी गई है, उनकी खोज से आत्मबोध के आधार पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।  जब ‘ब्रह्माण्डीय स्वर’ साक्षात भगवान (शिव, ओंकार, अजन्मा, अज्ञानी, अनंत, निराकार, अनादि, सर्वशक्तिमान) आदि का ही स्वरूप हैं। तो ब्रह्माण्डीय स्वर की उत्पत्ति और विनाश की बात करना निरर्थक है यह ब्रह्मांडीय स्वर भी परमेश्वर की भाँति अनादी और सनातन है।

स्वर विज्ञान के चमत्कार:

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स्वर विज्ञान

स्वर विज्ञान के चमत्कार:  भगवान शिव के कथन द्वारा इस संसार की सारी उपलब्धियां उसको प्राप्त हों जिसे हम बोलतें है। मान-सम्मान, वैभव,लक्ष्मी और पुत्र-पोत्रादी की प्राप्ति करते हुए जीवन में परमशांति परमसुख प्राप्त करते हुए जीवन में वह परम मोक्ष को भी प्राप्त हो जाये।

मतलब ज्ञान का ऐसा उद्देश्य दोनों धारायें जो हमारे दो पंख होते हैं। सांसारिक और अध्यात्म यह दो धाराएँ है जिन से हम चलते हैं हमारे दो पैर हैं। अगर एक पैर कट जाये तो जीवन चल नहीं सकता ।

माता पार्वती का जो गूढ़ प्रश्न था संसार में हमारे जीवन का जो भी अभाव है। की परिपूर्णता कैसे हो तब भगवान शिव ने इस विद्या को बताया जिसे स्वरोदय, व स्वरशास्त्र कहते हैं – इसमें नानाप्रकार की साधनाये हैं। सूक्ष्म साध्ना व गुप्त विद्याये हैं। जिसके माध्यम से आप हर चीज प्राप्त कर सकते हैं। और जो भी हमने प्रारब्ध में प्राप्त किया है। हर आदमी प्रारब्ध ही लेकर चलता है। इसलिए ही उसके जीवन में उतर-चढ़ाव होता है। कोई सफलता को प्राप्त करता है। तो कोई असफलता को – तब भगवान शिव ने कहा है। की यह ऐसी विद्या है। जिससे व्यक्ति अपने प्रारब्ध से भी पर जा सकता है कालार्थो वाचनाये व्यक्ति काल के बंधन से मुक्त हो सकता है। संसार और आध्यात्म दोनों को ही प्राप्त कर सकता हैI हे पार्वती तुम्हारे अनुग्रह पर मैं इसको प्रकट करता हूँ जिसके साधन मात्र से ही सर्वसिद्धि की प्राप्ति होगी चाहे उसके भाग्य में न नहीं भी लिखा होगा वह सब कुछ प्राप्त कर सकता उसके सारे संकल्प सिद्ध होंगे और

स्वर विज्ञान के चमत्कार:

 

भगवान शिव ने विशेष साधनाओ को बताया जिससे आप भी प्रयोग कर सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं जैसे-

हमारी विकृतियाँ ही हमारे कष्ट का कारण हैं। –                                                                                          आपकी जो अन्दर की उर्जा है। जो प्रभावित हो रही है। आपके स्वास से और जो आप कार्य कर रहें है। वो अगर विपरीत स्वाभाव का है। फिर वो आपके उस कार्य के फल को पूरी तरह से नष्ट कर देंगी और फिर आप कष्ट में पड़ जाते हो और यह कई स्तरों पर होगा, यह शरीर के स्तर, मन के स्तर, समाज के अलग-अलग स्तर पर होता है। जैसे आजकल की अनेक बीमारियाँ जो की स्वर के अनुकूल होने से ही उत्पन्न होती हैं-

 

ईडा नाडी और पिंगला नाडी व सुषुम्ना

स्वर विज्ञान के चमत्कार:

 

 

भोजन करते समय नाडी का रखें ध्यान –

पिंगला नाडी(दाहिना स्वर) को हम सूर्य नाडी भी कहतें हैं।

अगर आप भोजन गलत नाडी(स्वर) से करेंगें तो आप बहुत कम समय में ही बहुत सी बिमारियों से ग्रसित हो जायेंगें । भोजन हमेशा दाहिने स्वर (right nostril) में करना चहिये जब आपकी स्वास दाहिने स्वर (पिंगला नाड़ी) में चलती है। पिंगला नाडी में आप भोजन करेंगे तो भोजन के पाचन रस को शरीर ग्रहण कर लेता है। पिंगला में जो होता है। वह परिपूर्णता से होता है। शरीर को पता है। कौन से रस को ग्रहण करना है। मन को कितनी आवश्यकता है। और प्राण को कितना उत्पन्न करना है। शरीर के सप्त धातु कितने बनाने है। उन सभी का अलग-अलग भाग सही रूप से होता है  पिगंला नाडी में भोजन करने के बाद गैस, एसिडिटी, बदहजमी आदि विकारो से मुक्त हो सकते हैं क्योंकि पिंगला नाडी भोजन के पाचन आदि का प्रबन्धन कार्य करती है। पिंगला नाडी को चलाने के लिए कुछ देर अगर आप इडा नाडी को दबायेंगें और जोर-जोर से पीन्गला से साँस लेंगे तो यह स्वतः पिंगला नाडी चलने लगेगी।

ईडा नाडी को चन्द्र नाडी (बायाँ स्वर)(Left Nostril) भी कहतें हैं।

बायाँ स्वर(चन्द्र नाड़ी) लेकिन वहीँ भोजन आप बायें स्वर से करेंगें तो यह अनेक कष्टों का कारण बनेगा क्योंकिं जो ईडा नाडी है। वो वाम नाडी है। वो इस शरीर की धारा है। चंद्र नाडी का कार्य शरीर को आराम पहुचना है रक्त संचार करना आदि है। इडा नाडी हमारे शरीर में मांस मज्जा अस्थि पिंजर आदि को के निर्माण में सहायक है पाचन का जो सिस्टम है उसको नियंत्रित करना नहीं है। वो उसका काम ही नहीं है। वो दुसरे काम को जानती है।

इडा नाडी  शरीर में (Rejuvenation or Healing) क्षतिपूर्ति इत्यादि नयी-नयी कोशिकायें बनाने का कार्य करती है। अब उसको काम दूसरा दोगे जो उसको मालूम ही नहीं है। वह इस कार्य को करने में असमर्थ है फिर भोजन पेट में पड़ा सड़ेगा उसके बाद गैस, एसिडिटी, कांसटीपेसन इत्यादि की समस्याएँ आयेंगी पेट का सिस्टम बिगड़ जायेगा क्योंकि पेट का सम्बन्ध मणिपुर चक्र से है। यहीं भोजन से रस बनने की प्रक्रिया शरू होती है। यहीं से सारी उर्जायें बनती है। और पुरे शरीर में प्रवाहित होतीं हैं।यहीं वो विद्यायें है। जिन्हें आप साध लें तो स्वास्थ्य के स्तर पर अस्पताल में जो आपके पैसे खर्च होने से बचेंगें और वहीँ आप जीवन पर्यंत स्वस्थ्य रह सकेंगें और अपने शरीर को अपनी चेतन अवस्था में छोड़ सकते है। आप को  इस में सिद्धि मिल जायेगी।

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गृहप्रवेश व शुभ कार्य करते समय नाड़ी का ध्यान रहे

स्वर विज्ञान के चमत्कार : गृहप्रवेश, नया बिजनेस, जब आप शुरू करतें है। तो आपका सोम्य स्वर चलना चाहिये अर्थात बांया इडा नाडी स्वर चले तो गृह प्रवेश के बाद घर में रहने वाले सभी सदस्य सदैव सुख़-शांति से रहेंगे। क्योंकि तब उस काल खंड में जो आपकी नाडी आप के स्वर में प्रवाहित हो रही है। उस काल खंड में चल रही नाडी उस कार्य को प्रभावित करेगी क्योंकि उससे एक सूक्ष्म-संस्कार बनता है और पुरे ब्रह्माण्ड में भी संस्कार बन रहा है। और पुरे ब्रह्माण्ड में वैसी परिस्तिथियां प्रकट होती है। और परिस्थितियां बनेगी वैसी जैसे संस्कार बनेंगे तो अगर नाडी उलटी है तो कार्य के विपरीत है। तो संस्कार भी वैसे ही बनेंगे श्रष्टि की जितनी शक्तियाँ हैं। वो उस कार्य को विध्वंस करने में लग जायेंगी लेकिन अगर वही कार्य अनुकूल नाडी और तत्त्व में किया जाये तो आपको सुख़-शांति और सिद्धि मिलेगी इस विद्या के माध्यम से आपको पता चलता है की कब किस कार्य को सम्पादित करना है। अगर कार्य और उर्जा का सम्बन्ध सही नहीं सम्पादित हो रहा है। तो आप उस उर्जा को बदल सकते हैं। श्रष्टि कि उर्जाओ के साथ एकीकृत कर सकते है। एक सूक्षम संस्कार का निर्माण कर सकते हैं किसी भी काम का अंतिम परिणाम उसके आरंभ पर निर्भर करता है इस प्रकार से आप सर्वसिद्धि का लाभ प्राप्त कर सकतें हैं —-

ईडा नाड़ी

स्थायी कार्य चंद्र स्वर(SWAR) में किए जाने चाहिए, गृहप्रवेश में सभी यही सोच रखते है। की अपना दाहिना(Right) पैर ही घर में रखें परन्तु स्वरशास्त्र में शुभ कार्य गृह प्रवेश में चन्द्रस्वर(ईडा नाडी)में बायें पैर से ही परिवार के सदस्यों को प्रवेश करना चाहिये।

जैसे विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि ऐसे कार्य चन्द्रस्वर इडा नाडी में उत्तम माने जाते हैं।

पिंगला नाडी (सूर्य स्वर)

स्वर विज्ञान के चमत्कार इडा, पिंगला व सुषुम्ना नाडी

पिंगला नाड़ी

उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर(SWAR) उत्तम कहा जाता है। दाहिने नथुने से श्वास ठीक आ रही हो अर्थात सूर्य स्वर(SWAR) चल रहा हो तो परिणाम अनुकूल मिलने वाला होता है। युद्ध की स्तिथि में युद्ध पर जाने में सूर्य नाडी को उत्तम माना गया है यानि जब आप युद्ध में जाने के लियें घर से निकलें तो आपका सूर्य स्वर चलना चाहिये। अगर आपको कोई भारी काम करना हो तो भी इस नाडी के चलते ही अपना कार्यशुरू करें ।

 

सुषुम्ना नाड़ी

कुछ समय के लिए दोनों नाड़ियां चलती हैं। अत: प्राय: शरीर संधि अवस्था में होता है. इस समय पारलौकिक भावनाएं जागृत होती हैं। संसार की ओर से विरक्ति, उदासीनता और अरुचि होने लगती है। इस समय में परमार्थ चिंतन, ईश्वर आराधना आदि की जाए, तो सफलता प्राप्त हो सकती है। यह काल सुषुम्ना नाड़ी का होता है, इसमें मानसिक विकार दब जाते हैं। और अध्यात्मिक भाव का उदय होता है।स्वर विज्ञान के चमत्कार आपको ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने में भी सहायक हो सकते हैं इस समय आपका विस्तार ब्रह्मांडीय व्यवस्था में सप्त तल पर पहुचता है इस समय जब आप 108 बार एक माला जाप करते हैं  तो सुषुम्ना नाडी के चलने पर वह 1008 गुना हो जाता है। 

विपरीत स्वर –

स्वर विज्ञान के चमत्कार : क्रोधी पुरुष के पास जाना है। तो जो स्वर(SWAR) नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर(SWAR) की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए. ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को आपका अविचलित स्वर(SWAR) का शांत भाग शांत बना देगा और मनोरथ की सिद्धि होगी।

गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर(SWAR) से ही वार्ता करनी चाहिए. कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है। लेकिन स्वर(SWAR) विपरीत चल रहा होता है। ऐसे समय स्वर(SWAR) बदलने के प्रयास करने चाहिए. स्वर(SWAR) को परिवर्तित कर अपने अनुकूल करने के लिए कुछ उपाय कर लेने चाहिए. जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें. इस तरह कुछ ही देर में स्वर(SWAR) परिवर्तित हो जाएगा।

पहले स्वर(SWAR) देखें और जिस तरफ स्वर(SWAR) चल रहा हो उस तरफ से कपड़े पहनना शुरू करें और साथ में यह मंत्र बोलते जाएं – ॐ जीवं रक्ष: इससे दुर्घटनाओं का खतरा हमेशा के लिए टल जाता है। हमने अपने अल्प ज्ञान से आपको यह जानकारी प्रदान की है। अगर आप इस पोस्ट में और कुछ जोड़ना चाहते है। तो कृपया हम से संपर्क कर सकते हैं। हम इस विषय पर आगे और भी जानकारी आपसे साझा करते रहेंगे।

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FAQ –

प्रश्न – स्वर शास्त्र क्या है?

उत्तर – स्वर विज्ञान के चमत्कार  स्वर शास्त्र सनातन प्राचीन ज्ञान है जो भगवान शिव के द्वारा माता पार्वती जी को ज्ञात हुआ उसके बाद यह ज्ञान सभी के द्वारा प्रयोग कर इसका लाभ लिया गया। आपने सभी ऋषि- मुनियों को एक विशेष मुद्रा में बैठे देखा होगा जो दर्शाती है। के वो सभी अपने सांसो पर ध्यान लगाये बैठे होते हैं। जिसे इडा, पिंगला, व सुषमना नदी कहते हैं।

प्रश्न – घर से निकलते समय कौन सा स्वर चलना चाहिए?

उत्तर – स्वर विज्ञान के चमत्कार  घर से निकलने से पहले आप अपना स्वर भली प्रकार से जाँच परख लें उसके बाद वही पैर आगे बढ़ा कर घर के दरवाजे से निकले तो आपकी यात्रा में कोई भी परेशानी नहीं होगी और आपके कार्य में भी सफलता मिलेगी।

प्रश्न – स्वर कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर –स्वर विज्ञान के चमत्कार    स्वर तीन प्रकार के होते हैं। इडा, पिंगला और सुषमना इनको हम अपनी नासिका के छिद्रों के नीचे चलती हुई सांसो को हाथो से स्पर्श करके महशुस कर सकते है की कोन सी नासिका से हवा बह रही है। अगर दाहिने नासिका से हवा निकल रही हो तो यह पिंगला नाडी चल रही है अगर बांयी नासिका से हवा चल रही है तो इडा नाडी चल रही है। गर हवा दोनों नासिका छिद्र से चल रही हो तो सुषमना नदी चल रही है।

प्रश्न – रात में सोते समय कोन सी नाडी चलनी चाहिये ?

उत्तर –स्वर विज्ञान के चमत्कार   रात में सोते समय पुरुष की दाहिनी नाडी पिंगला चलनी चाहिये और स्त्री की इडा नाडी यानि की बांयी नासिका से हवा निकलती हो चलनी चाहिये। स्त्री बांयी और व पुरुष दायीं और करवट से सोयें तु उपयुक्त नाडी चलेगीं।

 

 

 

 

 

 

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